Thursday, 25 September 2025

दोष-दर्शन का मनोविज्ञान: क्यों कुछ लोग दूसरों को गिराकर खुद को उठाते हैं...


"जिस मनुष्य के पास कोई अच्छा गुण नहीं होता वह दूसरों में कमियां निकालकर और उनकी बुराई करके खुद को महान बनाने की कोशिश करता है।"

यह वाक्य सिर्फ एक सामाजिक अवलोकन नहीं है; यह मानवीय असुरक्षा (Insecurity) के मनोविज्ञान का एक गहरा सत्य है। समाज में अक्सर ऐसे लोग मिलते हैं जो लगातार दूसरों की आलोचना करते हैं, हर बात में दोष निकालते हैं और उनकी बुराई करके एक तरह का अस्थायी अहंकार (Ego) संतुष्टि प्राप्त करते हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि वे ऐसा क्यों करते हैं? क्या यह वास्तव में उन्हें महान बनाता है, या इसके पीछे कोई गहरी कमजोरी छिपी है?

मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से, यह व्यवहार 'कमज़ोरी का परित्याग (Projection of Weakness)' कहलाता है। जिस व्यक्ति के पास अपने अंदर सकारात्मक गुणों की कमी होती है, या जो अपनी असफलता और सीमाओं से डरा हुआ होता है, वह अपनी कमियों को दूसरों पर थोप कर या उनकी आलोचना करके अस्थायी रूप से बेहतर महसूस करने का प्रयास करता है।

1. शून्य आत्म-सम्मान का 'अहंकार बूस्टर' (Ego Booster for Zero Self-Esteem)
वह व्यक्ति जो दूसरों में कमियां ढूंढता है, वह अपने अंदर की शून्यता को भरने की कोशिश कर रहा होता है।
 * असुरक्षा का आधार: आलोचना करने वाला व्यक्ति अक्सर खुद को अपर्याप्त (Inadequate) महसूस करता है। उसके पास ऐसी कोई उपलब्धि या कौशल नहीं होता जिस पर वह गर्व कर सके।
 * तुलना का घातक खेल: जब वह किसी और की बुराई करता है, तो वह क्षण भर के लिए महसूस करता है, "कम से कम मैं इस व्यक्ति से तो बेहतर हूँ।" यह तुलनात्मक श्रेष्ठता (Comparative Superiority) का एक धोखा है। वह स्वयं को ऊपर उठाने के बजाय, दूसरों को नीचे गिराकर खुद को उस काल्पनिक स्तर पर स्थापित करता है।
 * अस्थायी राहत: यह 'अहंकार बूस्टर' (Ego boost) सिर्फ कुछ समय के लिए काम करता है। जैसे ही आलोचना का प्रभाव खत्म होता है, उसकी अंतर्निहित असुरक्षा वापस आ जाती है, और उसे फिर से 'डोज़' की तलाश होती है—यानी, किसी और की बुराई करने की ज़रूरत महसूस होती है।
2. कमियां निकालना क्यों बन जाता है 'पहचान'?
जो लोग लगातार दूसरों की आलोचना करते हैं, उनकी मानसिकता एक 'फिक्स्ड माइंडसेट' (Fixed Mindset) की ओर झुकी होती है, जहाँ वे मानते हैं कि गुण जन्मजात होते हैं, और मेहनत से नहीं बदले जा सकते।
 * विकास का डर: ऐसे लोग मेहनत करके नए गुण सीखने या खुद को बेहतर बनाने से डरते हैं। यह प्रयास, विफलता और असुविधा की मांग करता है।
 * आसान रास्ता: दूसरों में कमियां खोजना और उनकी बुराई करना एक आसान, निष्क्रिय रास्ता है। इसके लिए किसी वास्तविक प्रयास या विकास की आवश्यकता नहीं होती। यह किसी की प्रगति को रोकने के लिए पत्थरों को हटाने के बजाय, उसकी गति पर सवाल उठाने जैसा है।
 * ध्यान भटकाना (Diversion): जब कोई व्यक्ति लगातार दूसरों के दोषों पर ध्यान केंद्रित करता है, तो वह अनजाने में अपना ध्यान अपनी कमियों से हटा देता है। यह एक मानसिक रक्षा तंत्र (Mental Defense Mechanism) है ताकि उसे अपनी ज़िम्मेदारियों और असफलताओं का सामना न करना पड़े।
3. सामाजिक और मनोवैज्ञानिक प्रभाव: दर्पण में अपना प्रतिबिंब
आलोचना करने वाले व्यक्ति का व्यवहार न केवल दूसरों को, बल्कि उसे खुद को भी प्रभावित करता है:
क. सामाजिक अलगाव (Social Isolation):
 * कोई भी व्यक्ति ऐसे इंसान के पास नहीं रहना चाहता जो लगातार नकारात्मकता फैलाता हो। आलोचना और बुराई एक तरह की ज़हरीली ऊर्जा है जो अंततः उसे समाज से अलग-थलग कर देती है।
 * परिणाम यह होता है कि वह खुद को अकेला पाता है, और इस अकेलेपन से उपजी निराशा उसे और अधिक आलोचनात्मक बना देती है—एक दुष्चक्र (Vicious Cycle) शुरू हो जाता है।
ख. 'प्रोजेक्शन' का सिद्धांत (The Theory of Projection):
 * मनोविज्ञान में, प्रोजेक्शन वह क्रिया है जिसमें एक व्यक्ति अपनी अवांछनीय भावनाओं या इच्छाओं को दूसरे व्यक्ति पर थोप देता है।
 * उदाहरण के लिए, एक व्यक्ति जो ईर्ष्या करता है लेकिन इसे स्वीकार नहीं करना चाहता, वह यह कहकर दूसरों की आलोचना कर सकता है कि "वह व्यक्ति बहुत अहंकारी है" या "वह धोखेबाज है"। असल में, यह ईर्ष्या, अहंकार या धोखे का डर उसके अपने भीतर होता है, जिसे वह दूसरों पर आरोपित करके खुद को सांत्वना देता है।
ग. नार्सीसिज्म (Narcissism) और नियंत्रण की इच्छा:
 * कुछ मामलों में, निरंतर आलोचना नार्सीसिस्टिक प्रवृत्ति का हिस्सा हो सकती है। ऐसे लोग खुद को असाधारण रूप से श्रेष्ठ मानते हैं और दूसरों को अपने से नीचे साबित करने के लिए आलोचना का इस्तेमाल करते हैं।
 * यह उन्हें नियंत्रण (Control) की भावना देता है। वे दूसरों की भावना को ठेस पहुँचाकर या उन्हें छोटा महसूस कराकर यह सुनिश्चित करते हैं कि वे सामाजिक पदानुक्रम में उनसे ऊपर हैं।

निष्कर्ष: गुणों का निर्माण या कमियों का दमन?

सच्ची महानता का मार्ग आंतरिक निर्माण से होकर जाता है, न कि बाहरी दमन से।
अगर हमें वास्तव में महान बनना है, तो हमें दूसरों की बुराई करने में अपनी ऊर्जा बर्बाद करने के बजाय, उस ऊर्जा को नए कौशल सीखने, अच्छे गुण विकसित करने और सकारात्मक योगदान देने में लगाना चाहिए। जब हम अपने जीवन को सफलता, करुणा और विनम्रता जैसे गुणों से भरते हैं, तो हमें खुद को महान साबित करने के लिए किसी को नीचा दिखाने की ज़रूरत नहीं पड़ती—हमारे गुण ही हमारी पहचान बन जाते हैं।

सवाल और सोच
अगर कोई व्यक्ति लगातार दूसरों की आलोचना कर रहा है, तो आप उसे यह महसूस कराने के लिए एक सकारात्मक कार्य क्या कर सकते हैं कि आत्म-सुधार, दोष-दर्शन से ज़्यादा संतोषजनक होता है?

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