Saturday, 13 September 2025

आप एक विचारक हैं या मात्र एक दोहराने वाले?...


आज के इस डिजिटल युग में, जब जानकारी और विचारों का सैलाब हर पल हम पर बरसता है, तब यह सवाल और भी प्रासंगिक हो जाता है: क्या हम सचमुच सोचते हैं, या बस दूसरों के विचारों को दोहराते रहते हैं? जिद्दू कृष्णमूर्ति का यह कथन हमें सोचने पर मजबूर करता है, "हमारे दिमाग का अधिकांश हिस्सा दूसरे लोगों के विचारों और पुस्तकों से भरा रहता है, और चूंकि हमारा दिमाग लगातार वही दोहराता रहता है जो दूसरे लोग कहते हैं, इसलिए हम विचारक नहीं बल्कि दोहराने वाले बन जाते हैं।" यह बात जितनी सरल है, उतनी ही गहरी भी।
जब हम पैदा होते हैं, हमारा मन एक खाली स्लेट की तरह होता है। धीरे-धीरे, हम अपने परिवार, समाज, शिक्षा, और अब तो सोशल मीडिया से भी, अनगिनत विचारों, धारणाओं और विश्वासों को ग्रहण करते हैं। हमें सिखाया जाता है कि क्या सही है, क्या गलत; क्या अच्छा है, क्या बुरा। हम इन विचारों को बिना किसी सवाल के स्वीकार कर लेते हैं और उन्हें अपनी पहचान का हिस्सा बना लेते हैं। इस प्रक्रिया में, हमारी अपनी मौलिक सोच की क्षमता कहीं खो जाती है।
ज्ञान और नकल में अंतर
स्कूल और कॉलेज में हम ज्ञान अर्जित करते हैं। हमें इतिहास, विज्ञान, गणित, साहित्य और अन्य विषयों के बारे में पढ़ाया जाता है। हमारा लक्ष्य परीक्षा में अच्छे अंक लाना होता है, और इसके लिए हमें किताबों में लिखी बातों को याद करके हूबहू लिखना होता है। यह एक तरह की नकल है। हम इसे ज्ञान समझ लेते हैं, लेकिन यह सिर्फ दूसरों द्वारा तैयार की गई जानकारी को दोहराना है। सच्चा ज्ञान तब आता है जब हम उस जानकारी को अपने जीवन में लागू करते हैं, उस पर सवाल उठाते हैं और उसे अपने अनुभवों के साथ जोड़कर एक नई समझ विकसित करते हैं।
कल्पना कीजिए, एक छात्र को आइंस्टीन के सापेक्षता के सिद्धांत के बारे में पढ़ाया जाता है। वह इसे याद कर लेता है और परीक्षा में लिख देता है। वह आइंस्टीन के विचारों को दोहरा रहा है। लेकिन अगर वही छात्र उस सिद्धांत पर गहनता से विचार करे, उस पर सवाल उठाए और खुद के प्रयोगों से उसे समझने की कोशिश करे, तो वह एक विचारक बन जाता है। वह केवल दोहराने वाला नहीं रहता।
सोशल मीडिया का दोहरा प्रभाव
आजकल, सोशल मीडिया हमारे जीवन का एक अभिन्न अंग बन चुका है। फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और व्हाट्सएप जैसे प्लेटफॉर्म्स पर हर मिनट लाखों विचार, मीम्स, और ओपिनियन शेयर किए जाते हैं। हम इन सब से घिरे रहते हैं। एक विषय पर हमारी अपनी कोई राय बनने से पहले ही, हम दर्जनों लोगों की राय पढ़ चुके होते हैं। अक्सर, हम उन्हीं विचारों को अपना लेते हैं जो हमें सबसे ज्यादा लाइक या शेयर मिलते हुए दिखते हैं, या फिर जो हमारे दोस्तों और परिचितों में लोकप्रिय होते हैं।
सोशल मीडिया पर एक ट्रेंड चल रहा होता है। अचानक, हर कोई उसी विषय पर बात करने लगता है, उसी हैशटैग का उपयोग करने लगता है, और वही राय दोहराने लगता है। हम दूसरों के कहे हुए शब्दों को अपने शब्दों में पिरोकर सोशल मीडिया पर पोस्ट करते हैं और सोचते हैं कि यह हमारा अपना विचार है। लेकिन क्या ऐसा सच में है?
विचारक कैसे बनें?
तो, अगर हम दोहराने वाले नहीं बनना चाहते हैं, तो क्या करें? विचारक बनने की यात्रा कोई आसान नहीं है, लेकिन यह निश्चित रूप से बहुत ही संतोषजनक है। यहाँ कुछ तरीके दिए गए हैं जो हमें इस दिशा में मदद कर सकते हैं:
 * सवाल पूछें: सबसे महत्वपूर्ण कदम है सवाल पूछना। हर उस बात पर सवाल उठाएँ जो आप सुनते हैं, पढ़ते हैं या देखते हैं। "ऐसा क्यों है?" "क्या यह सच है?" "इसका क्या प्रमाण है?" "क्या इसका कोई दूसरा पहलू भी है?" इन सवालों को पूछने से आपका दिमाग सक्रिय हो जाता है और आप चीजों को एक नए नजरिए से देखने लगते हैं।
 * अपनी राय बनाएं: दूसरों की राय पढ़ना या सुनना गलत नहीं है, लेकिन उस पर तुरंत भरोसा न करें। सभी पहलुओं को समझें, फिर अपनी खुद की राय बनाएं। यह जरूरी नहीं कि आपकी राय दूसरों से मिलती हो।
 * एकांत में समय बिताएं: शोर-शराबे से दूर, एकांत में बैठें और अपने विचारों को सुनें। अपने मन को शांत रखें और देखें कि क्या विचार उभर रहे हैं। यह एक तरह का ध्यान है, जो आपको खुद से जुड़ने और अपने अंदर के विचारों को पहचानने में मदद करता है।
 * अलग-अलग दृष्टिकोणों को समझें: एक ही विषय पर अलग-अलग राय वाले लोगों से बात करें। उनके दृष्टिकोणों को समझने की कोशिश करें, भले ही आप उनसे सहमत न हों। यह आपको एक संतुलित और व्यापक सोच विकसित करने में मदद करेगा।
 * अनुभव से सीखें: किताबें और जानकारी महत्वपूर्ण हैं, लेकिन जीवन का सबसे बड़ा शिक्षक हमारा अनुभव है। अपने अनुभवों से सीखें, गलतियों से सीखें, और हर एक घटना को एक सीखने के अवसर के रूप में देखें।
विचारक का महत्व
एक विचारक समाज के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है। वे पुरानी सोच को चुनौती देते हैं, नए विचारों को जन्म देते हैं, और समाज को प्रगति के पथ पर आगे बढ़ाते हैं। चाहे वह कोई वैज्ञानिक हो, दार्शनिक हो, या कोई साधारण व्यक्ति, एक विचारक ही होता है जो दुनिया में बदलाव लाता है।
हमारा दिमाग एक शक्तिशाली उपकरण है। इसे सिर्फ दूसरों के विचारों को संग्रहित करने और दोहराने के लिए नहीं बनाया गया है। इसका उपयोग मौलिक सोच, रचनात्मकता, और बुद्धिमत्ता के लिए किया जाना चाहिए।
तो, अगली बार जब आप किसी सोशल मीडिया पोस्ट को लाइक या शेयर करें, तो एक पल के लिए रुकें और खुद से पूछें: "क्या यह मेरा विचार है, या मैं बस इसे दोहरा रहा हूँ?" यह छोटा सा सवाल आपको दोहराने वाले से एक विचारक बनने की दिशा में पहला कदम उठाने में मदद करेगा।
जिद्दू कृष्णमूर्ति ने हमें एक आइना दिखाया है। यह हम पर निर्भर करता है कि हम उस आइने में सिर्फ अपने प्रतिबिंब को देखें, या फिर उसके पीछे छिपी हुई सच्चाई को भी पहचानें। आप एक विचारक हैं या मात्र एक दोहराने वाले? यह चुनाव आपका है।

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