Sunday, 7 September 2025

शिक्षित बेरोज़गारी: एक अदृश्य नरक और उससे बाहर निकलने का रास्ता...


आज की दुनिया में, जहाँ शिक्षा को सफलता की कुंजी माना जाता है, वहाँ शिक्षित होना और फिर भी बेरोजगार रहना किसी नरक से कम नहीं है। यह एक ऐसी स्थिति है जहाँ डिग्री और ज्ञान तो होते हैं, लेकिन उन्हें इस्तेमाल करने का कोई अवसर नहीं मिलता। यह सिर्फ आर्थिक समस्या नहीं है, बल्कि यह मानसिक और सामाजिक रूप से भी व्यक्ति को तोड़ देती है। अक्सर, इस "नरक" का निर्माण हम खुद ही कर लेते हैं, और इसका कारण है हमारी अपनी सोच और अपेक्षाएँ।

जब सपने हकीकत से बड़े हो जाते हैं...

बहुत से शिक्षित बेरोजगारों की सबसे बड़ी समस्या यह होती है कि वे शुरू से ही बहुत ऊँचे पद और बड़ी सैलरी की उम्मीद रखते हैं। वे मानते हैं कि सालों की पढ़ाई और डिग्री का मतलब सीधे मैनेजर या उच्च अधिकारी की कुर्सी है। यह सोच उन्हें छोटी शुरुआत करने से रोकती है। वे एक ऐसे जाल में फंस जाते हैं, जहाँ वे हर उस नौकरी को ठुकरा देते हैं जो उनकी "डिग्री" के अनुरूप नहीं लगती।
यह वही गलती है जो कई महत्वाकांक्षी लोग करते हैं। वे भूल जाते हैं कि हर बड़ी सफलता की शुरुआत एक छोटे कदम से होती है। सचिन तेंदुलकर ने भी क्रिकेट की दुनिया में कदम रखने से पहले गली में बैटिंग की थी। धीरूभाई अंबानी ने एक पेट्रोल पंप पर काम करके अपने सफर की शुरुआत की थी। हर कामयाब इंसान ने सीढ़ी का पहला पायदान पार किया है। अगर आप सीधे छत पर कूदना चाहेंगे, तो आप सिर्फ गिरेंगे और चोट खाएंगे।

अहंकार और अवास्तविक अपेक्षाओं का बोझ...

शिक्षित बेरोजगारों का अहंकार उन्हें छोटे पदों पर काम करने से रोकता है। उन्हें लगता है कि यह उनकी प्रतिष्ठा के खिलाफ है। वे सोचते हैं, "मैं इतना पढ़ा-लिखा हूँ, क्या मैं यह मामूली काम करूँगा?" यह सोच उनके अंदर एक खोखलापन पैदा करती है। वे अपने दोस्तों और रिश्तेदारों के सामने अपनी बेरोजगारी छिपाने की कोशिश करते हैं, जिससे उनके ऊपर सामाजिक दबाव और भी बढ़ जाता है।
यह अहंकार उन्हें सीखने और अनुभव हासिल करने के महत्वपूर्ण अवसर से वंचित कर देता है। एक छोटा काम भी आपको बहुत कुछ सिखा सकता है—जैसे टीम में काम करना, समय पर काम पूरा करना, और नई चीजें सीखना। ये सारे अनुभव बाद में आपके करियर में बहुत काम आते हैं।

सक्रियता की कमी और प्रतीक्षा का रवैया...

बहुत से शिक्षित बेरोजगार नौकरी की तलाश में निष्क्रिय हो जाते हैं। वे सोचते हैं कि उनकी डिग्री खुद-ब-खुद उन्हें नौकरी दिलवा देगी। वे बस आवेदन भेजते हैं और इंतजार करते हैं कि कोई कंपनी उन्हें बुलाए। वे यह नहीं समझते कि आज के प्रतिस्पर्धी बाजार में सिर्फ डिग्री काफी नहीं है। आपको सक्रिय रहना होगा—नए कौशल सीखने होंगे, नेटवर्किंग करनी होगी, और अपने आप को लगातार बेहतर बनाना होगा।
आज की दुनिया में हर क्षेत्र में बदलाव हो रहा है। अगर आप अपने कौशल को अपडेट नहीं करेंगे, तो आप पीछे छूट जाएंगे। आप भले ही कंप्यूटर साइंस में स्नातक हों, लेकिन अगर आपको नई प्रोग्रामिंग भाषाएँ नहीं आतीं, तो आपकी डिग्री का कोई खास फायदा नहीं होगा।

खुद की जिम्मेदारी लेना...

यह मानना कि बेरोजगारी सिर्फ बाहरी कारणों की वजह से है, एक बड़ी गलती है। जबकि यह सच है कि देश में नौकरी की कमी है, लेकिन यह भी सच है कि कई लोग अपनी स्थिति के लिए खुद ही जिम्मेदार होते हैं। वे अपनी गलतियों को पहचानने के बजाय, सरकार, अर्थव्यवस्था या समाज को दोष देते रहते हैं।
अपनी स्थिति की जिम्मेदारी लेना ही इस नरक से बाहर निकलने का पहला कदम है। हमें यह समझना होगा कि हम खुद ही अपने सबसे बड़े दुश्मन हैं। जब हम यह मान लेंगे कि हमें अपनी सोच और आदतों में बदलाव लाना होगा, तभी हम सही दिशा में कदम बढ़ा सकते हैं।

इस नरक से बाहर निकलने के रास्ते...

 * अपनी सोच बदलें: सबसे पहले, इस बात को स्वीकार करें कि छोटी शुरुआत करना कोई शर्म की बात नहीं है। हर महान यात्रा एक छोटे कदम से शुरू होती है। अगर आपको आपकी पसंद की नौकरी नहीं मिल रही, तो कोई भी काम शुरू करें जो आपको अनुभव दे सके।
 * कौशल विकास पर ध्यान दें: अपनी डिग्री पर निर्भर न रहें। आज के दौर की जरूरतों को पहचानें और उनसे जुड़े नए कौशल सीखें। ऑनलाइन कोर्स, वर्कशॉप और सर्टिफिकेट प्रोग्राम इसमें आपकी मदद कर सकते हैं।
 * नेटवर्किंग करें: नौकरी पाने का सबसे अच्छा तरीका लोगों से जुड़ना है। अपने क्षेत्र के लोगों से मिलें, उनसे बात करें और उनसे सीखें। लिंक्डइन (LinkedIn) जैसी वेबसाइटें इसमें बहुत मददगार साबित हो सकती हैं।
 * लचीला बनें: अगर आपको अपने शहर में नौकरी नहीं मिल रही, तो दूसरे शहर या राज्य में जाने के लिए तैयार रहें। अगर आपको अपनी पसंद के क्षेत्र में नौकरी नहीं मिल रही, तो किसी और क्षेत्र में काम करने के लिए भी तैयार रहें।
 * उद्यमशीलता के बारे में सोचें: अगर नौकरी नहीं मिल रही, तो खुद का कुछ शुरू करने के बारे में सोचें। एक छोटा बिजनेस, एक फ्रीलांसिंग का काम या कोई भी ऐसा काम जो आपको आत्मनिर्भर बना सके।

शिक्षित बेरोजगारी का नरक एक हकीकत है, लेकिन यह कोई ऐसी जेल नहीं है जिसकी चाबी आपके पास न हो। यह एक अदृश्य दीवारों वाली जेल है, जिसे आपकी सोच ने बनाया है। इन दीवारों को तोड़ने की हिम्मत करें, और आप पाएंगे कि बाहर की दुनिया उतनी भी बेरहम नहीं है जितनी आपने सोच ली थी। अपनी काबिलियत पर भरोसा रखें, लेकिन इस बात को भी मानें कि बड़ी सफलता के लिए छोटे कदम जरूरी हैं।

No comments:

Post a Comment