Friday, 26 September 2025

एक उज्ज्वल कल का निर्माण: सतत विकास के आयामों की त्रिवेणी...


मानव सभ्यता ने पिछले दो सदियों में अभूतपूर्व प्रगति की है। हमने आसमान छूती इमारतें बनाई हैं, तकनीकी चमत्कार किए हैं, और जीवन को पहले से कहीं अधिक आरामदायक बनाया है। लेकिन इस विकास की एक भारी कीमत चुकानी पड़ी है—पर्यावरण का विनाश, संसाधनों का अत्यधिक शोषण और बढ़ती सामाजिक असमानता। इसी विकट स्थिति ने एक नए विचार को जन्म दिया, जो हमारे भविष्य की आधारशिला है: सतत विकास (Sustainable Development)। यह केवल एक नारा नहीं है, बल्कि एक ऐसा दर्शन है जो हमारे ग्रह पर जीवन को सुरक्षित और समृद्ध बनाने के लिए एक संतुलित दृष्टिकोण प्रदान करता है।

सतत विकास: वर्तमान की आवश्यकता और भविष्य की जिम्मेदारी..

सतत विकास की सबसे स्वीकृत परिभाषा ब्रुंडलैंड रिपोर्ट (Brundtland Report), जिसका शीर्षक हमारा साझा भविष्य (Our Common Future) था, में दी गई थी। इसके अनुसार, "सतत विकास वह विकास है जो भविष्य की पीढ़ियों की अपनी ज़रूरतों को पूरा करने की क्षमता से समझौता किए बिना वर्तमान की ज़रूरतों को पूरा करता है।"
यह परिभाषा एक सरल लेकिन शक्तिशाली विचार पर टिकी है: हमें इस तरह से प्रगति करनी होगी कि हम अपने बच्चों और उनके बच्चों के लिए पृथ्वी को रहने योग्य बनाए रखें। यह एक नाजुक संतुलन है, एक त्रिकोण है जिसके तीन कोने परस्पर जुड़े हुए हैं और एक-दूसरे पर निर्भर हैं। ये तीन कोने ही सतत विकास के तीन मूलभूत आयाम हैं।

सतत विकास के तीन मूलभूत आयाम...

सतत विकास को आमतौर पर तीन मुख्य स्तंभों या आयामों पर आधारित माना जाता है, जिन्हें अक्सर "ट्रिपल बॉटम लाइन" (Triple Bottom Line) दृष्टिकोण भी कहा जाता है: आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय। इन तीनों आयामों के बीच सामंजस्य स्थापित करना ही वास्तविक सतत विकास है।
1. पर्यावरणीय आयाम (The Environmental Dimension)
यह सतत विकास की सबसे महत्वपूर्ण और मूल जड़ है। इसका उद्देश्य प्राकृतिक संसाधनों और पारिस्थितिक तंत्रों का संरक्षण करना है ताकि वे भविष्य में भी मानव जीवन को सहारा दे सकें।
 * संसाधनों का विवेकपूर्ण उपयोग: इसका अर्थ है पानी, खनिज और जीवाश्म ईंधन जैसे गैर-नवीकरणीय संसाधनों (Non-Renewable Resources) के उपयोग को कम करना और नवीकरणीय ऊर्जा (Renewable Energy) जैसे सौर और पवन ऊर्जा पर निर्भरता बढ़ाना।
 * प्रदूषण नियंत्रण: वायु, जल और भूमि प्रदूषण को न्यूनतम स्तर पर लाना। इसमें हानिकारक उत्सर्जन को कम करना और अपशिष्ट प्रबंधन (Waste Management) की आधुनिक और कुशल तकनीकों को अपनाना शामिल है।
 * जैव विविधता का संरक्षण: जंगल, वन्यजीव और समुद्री जीवन की रक्षा करना, क्योंकि ये ग्रह के पारिस्थितिक संतुलन के लिए अनिवार्य हैं।
 * जलवायु परिवर्तन से निपटना: ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करके ग्लोबल वार्मिंग (Global Warming) के हानिकारक प्रभावों को सीमित करना, जो मानवता के लिए सबसे बड़ी चुनौती है।
पर्यावरणीय स्थिरता सुनिश्चित करती है कि आर्थिक और सामाजिक विकास उन पारिस्थितिक सीमाओं के भीतर हो जिन्हें हमारा ग्रह सहन कर सकता है।
2. सामाजिक आयाम (The Social Dimension)
सतत विकास का सामाजिक आयाम लोगों की भलाई (Well-being), समानता और न्याय पर केंद्रित है। इसका लक्ष्य एक ऐसे समाज का निर्माण करना है जहाँ सभी को अवसर मिलें और कोई भी पीछे न छूटे।
 * गरीबी उन्मूलन और भूख की समाप्ति: सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) का केंद्र बिंदु गरीबी को सभी रूपों में समाप्त करना और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना है। कोई भी विकास तब तक टिकाऊ नहीं हो सकता जब तक कि समाज का एक बड़ा हिस्सा बुनियादी ज़रूरतों से वंचित रहे।
 * स्वास्थ्य और शिक्षा: सभी के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएँ सुनिश्चित करना। एक शिक्षित और स्वस्थ आबादी ही आर्थिक विकास और नवाचार में योगदान दे सकती है।
 * लैंगिक समानता और सामाजिक न्याय: समाज में महिलाओं और पुरुषों को समान अवसर प्रदान करना, तथा जाति, धर्म या नस्ल के आधार पर किसी भी प्रकार के भेदभाव को समाप्त करना। सामाजिक समावेश (Social Inclusion) विकास की नींव है।
 * मानवाधिकार और सुशासन: पारदर्शिता, भागीदारी और जवाबदेही के साथ एक ऐसा शासन स्थापित करना जो सभी नागरिकों के मानवाधिकारों की रक्षा करे। सामाजिक स्थिरता के लिए समुदायों के बीच शांति और सुरक्षा आवश्यक है।
सामाजिक आयाम यह सुनिश्चित करता है कि आर्थिक लाभ और पर्यावरणीय सुरक्षा का फल समान रूप से वितरित हो।
3. आर्थिक आयाम (The Economic Dimension)
आर्थिक प्रगति आवश्यक है, लेकिन सतत विकास में इसे "विकास की कीमत पर नहीं" बल्कि "पर्यावरण और समाज के अनुरूप" होना चाहिए। यह आयाम एक ऐसी आर्थिक प्रणाली बनाने पर केंद्रित है जो लचीली, समावेशी और दीर्घकालिक हो।
 * टिकाऊ आर्थिक वृद्धि: ऐसी आर्थिक नीतियां अपनाना जो रोज़गार सृजित करें और सभी के लिए मर्यादित कार्य (Decent Work) सुनिश्चित करें, लेकिन साथ ही प्राकृतिक संसाधनों के क्षरण का कारण न बनें।
 * संसाधन दक्षता: उत्पादन और उपभोग के पैटर्न को बदलना, ताकि कम संसाधनों का उपयोग करके अधिक मूल्य उत्पन्न किया जा सके। चक्रीय अर्थव्यवस्था (Circular Economy) की अवधारणा इसमें महत्वपूर्ण है, जहाँ कचरे को कम किया जाता है और संसाधनों को पुनर्चक्रित किया जाता है।
 * निवेश और वित्तपोषण: ऐसी परियोजनाओं और नवाचारों में निवेश को बढ़ावा देना जो पर्यावरण के अनुकूल हों (जैसे हरित प्रौद्योगिकी) और सामाजिक रूप से जिम्मेदार हों।
 * आय असमानता को कम करना: धन और आय के वितरण को अधिक न्यायसंगत बनाना, ताकि आर्थिक विकास का लाभ समाज के सबसे निचले तबके तक पहुँचे।
यह आयाम सुनिश्चित करता है कि पर्यावरणीय लक्ष्यों और सामाजिक समानता को समर्थन देने के लिए पर्याप्त संसाधन और क्षमता उपलब्ध हो।

निष्कर्ष: एक एकीकृत दृष्टिकोण की अनिवार्यता..

सतत विकास इन तीनों आयामों की त्रिवेणी है। यह न तो केवल आर्थिक विकास पर जोर देता है (जैसा कि अतीत में हुआ), न ही यह केवल पर्यावरण पर ध्यान केंद्रित करता है (जैसा कि कुछ कट्टरपंथी आंदोलन करते हैं)। यह एक ऐसी विकास यात्रा है जिसमें पृथ्वी, लोग और लाभ (Planet, People, and Profit) एक साथ आगे बढ़ते हैं।
यह चुनौती हमारे सामने है: क्या हम एक ऐसे भविष्य का निर्माण कर सकते हैं जहाँ हमारी वर्तमान ज़रूरतों को पूरा करने के लिए हमें भावी पीढ़ियों के सपनों को गिरवी न रखना पड़े? 2030 के सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) के माध्यम से, दुनिया ने इस चुनौती का सामना करने का संकल्प लिया है। प्रत्येक व्यक्ति, प्रत्येक व्यवसाय और प्रत्येक राष्ट्र को इस एकीकृत दृष्टिकोण को अपनी दैनिक जीवनशैली और नीति निर्माण का हिस्सा बनाना होगा।

इस लेख से संबंधित एक सवाल:

पर्यावरणीय, सामाजिक और आर्थिक—सतत विकास के इन तीनों आयामों में से आप भारत जैसे विकासशील देश के लिए सबसे बड़ी तात्कालिक चुनौती किसे मानते हैं, और क्यों?
आप सतत विकास के उद्देश्यों को हिंदी में समझने के लिए यह वीडियो देख सकते हैं: (हिंदी) Objectives of Sustainable Development in Hindi।

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