मानव जीवन विविध अनुभवों का संगम है, जहाँ सुख और दुःख, सफलता और असफलता एक-दूसरे के पूरक बनकर आते हैं। इन अनुभवों की शृंखला में 'अभाव' एक ऐसी वास्तविकता है जिसका सामना धनवान से लेकर निर्धन तक, प्रत्येक व्यक्ति को कभी न कभी करना पड़ता है। अभाव, यानी किसी वांछित वस्तु का न होना, न केवल भौतिक हो सकता है – जैसे रोटी, कपड़ा, मकान या धन-दौलत का अभाव – बल्कि यह भावनात्मक और अमूर्त भी हो सकता है, जैसे प्रेम, सम्मान, ज्ञान, स्वास्थ्य, अनुभव या समय का अभाव। पहली नज़र में अभाव निराशा, चिंता, हीनभावना और असंतोष का कारण बनकर मनुष्य को हताश कर सकता है, लेकिन भारतीय दार्शनिक परंपरा अभाव को एक विशिष्ट सकारात्मक महत्व प्रदान करती है। यह मानती है कि अभाव व्यक्ति के जीवन में एक प्रेरणास्रोत का कार्य करता है।
अभाव को केवल नकारात्मक प्रभाव डालने वाली शक्ति मानना जीवन के एक महत्वपूर्ण पहलू को अनदेखा करना है। यह सत्य है कि अभाव के कारण मन में नकारात्मक भाव उत्पन्न हो सकते हैं, परंतु इतिहास और हमारे आस-पास ऐसे अनेक सफल लोग हैं जिन्होंने अपने प्रारंभिक जीवन के अभावों को अपनी कमजोरी नहीं, बल्कि अपनी शक्ति बनाया। उन्होंने अभाव की पीड़ा से प्रेरणा ली और कठिन परिश्रम के बल पर उन्नति के उच्च शिखर पर पहुँचे।
यह एक शाश्वत सत्य है कि जिन्हें सब कुछ आसानी से मिल जाता है, वे अक्सर परिश्रम से जी चुराते हैं। ऐसे लोगों में जीवन के प्रति सहजता और समर्पण का भाव कम देखने को मिलता है। इसके विपरीत, अभाव से जूझने वाला व्यक्ति जीवन के सीमित साधनों में जीना सीखता है। यह अभाव ही है जो व्यक्ति के भीतर संतोष, धैर्य और सहनशीलता जैसे उत्तम गुणों के विकास में सहायक होता है। अभाव हमें सिखाता है कि जो कुछ भी हमारे पास है, उसका मोल समझें और अनावश्यक इच्छाओं पर नियंत्रण रखें।
भारतीय दर्शन अभाव को केवल "न होने" की स्थिति के रूप में नहीं देखता, बल्कि इसे आत्मिक विकास का एक अनिवार्य चरण मानता है। अभाव हमें दूसरों को दोष देने या उन पर ईर्ष्या करने जैसी दुर्गुणों से बचाता है। जब कोई व्यक्ति अभाव की परिस्थितियों को स्वीकार करके भी अपने लक्ष्य की ओर निरंतर कठिन परिश्रम करता है, तो वह अभाव के नकारात्मक प्रभावों से विचलित न होकर, उन परिस्थितियों को भी संतुलन बनाए रखने का एक अवसर मानकर आगे बढ़ता है।
अभाव, वास्तव में, आवश्यकता और प्राथमिकता के बीच अंतर करना सिखाता है। यह हमें यह समझने में मदद करता है कि जीवन में सच्चा सुख भौतिक संपदा की प्रचुरता में नहीं, बल्कि आंतरिक शांति और आत्मिक संतोष में निहित है। जब कोई व्यक्ति किसी चीज के अभाव में होता है, तो वह उसे प्राप्त करने के लिए अपनी पूरी शक्ति और रचनात्मकता का उपयोग करता है। यह संघर्ष उसे मजबूत बनाता है, उसके संकल्प को दृढ़ करता है और उसे जीवन के प्रति अधिक कृतज्ञ बनाता है।
इस प्रकार, अभाव एक कसौटी है, जो हमें परखती है और तराशती है। यह हमें सिखाता है कि जीवन की दौड़ में आगे बढ़ने के लिए साधन नहीं, बल्कि हमारी इच्छाशक्ति और दृढ़ संकल्प ही सबसे महत्वपूर्ण पूँजी है। अभाव की आग में तपकर ही मनुष्य कुंदन की तरह चमकता है। अभाव हमें सिखाता है कि कैसे सीमित संसाधनों के साथ अधिकतम परिणाम प्राप्त किए जा सकते हैं, जो आधुनिक प्रबंधन और जीवनशैली का भी एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है।
संक्षेप में, अभाव एक शिक्षक है जो हमें जीवन का सबसे मूल्यवान पाठ पढ़ाता है: संघर्ष जीवन का सार है, और सकारात्मक दृष्टिकोण से, अभाव भी सफलता की सबसे बड़ी प्रेरणा बन सकता है। यह हमें हमारी मानवीय क्षमताओं की याद दिलाता है और हमें एक अधिक संतुलित, संतोषी और कृतज्ञ जीवन जीने के लिए प्रेरित करता है।
सवाल:
आप अपने जीवन के किसी एक "अभाव" (भौतिक या अमूर्त) की पहचान करें और यह विश्लेषण करें कि उस अभाव ने आपको कौन-से तीन सकारात्मक गुण सिखाए और आपके जीवन के किस बड़े लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए प्रेरित किया?
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