बचपन की शामें, दादी-नानी की गोद और दूरदर्शन पर आती रामायण या महाभारत की कहानियाँ... ये हर भारतीय के जीवन का एक अभिन्न हिस्सा रही हैं। उस समय, वे मात्र कथाएँ थीं—एक सुंदर कहानी जिसमें नायक जीतता है और खलनायक हारता है। लेकिन जैसे-जैसे समय का पहिया घूमा, जीवन के सुख-दुख और उतार-चढ़ाव देखे, तो महसूस हुआ कि वे पृष्ठ केवल शब्द नहीं, बल्कि जीवन के गूढ़ रहस्यों और सार्वभौमिक सत्य को अपने भीतर समेटे हुए हैं।
आज, जब हम बाजार में 'लीडरशिप' पर किसी पश्चिमी गुरु की किताब या 'रिलेशनशिप' पर किसी अंतर्राष्ट्रीय लेखक का पॉडकास्ट खोजते हैं, तो एक कड़वा सच सामने आता है: हमारे अपने ही घर की अलमारियों में, गीता प्रेस द्वारा प्रकाशित वह आध्यात्मिक ज्ञान का ख़ज़ाना धूल खा रहा है, जिसे हमारे पूर्वजों ने पीढ़ी दर पीढ़ी सँजोया था।
विदेशी 'सेल्फ-हेल्प' बनाम भारतीय 'शाश्वत दर्शन'..
आज के दौर में, लोग विदेशी लेखकों द्वारा लिखी गई 'सेल्फ-हेल्प', 'पर्सनल फाइनेंस' या 'नेतृत्व' की किताबें बड़े चाव से पढ़ते हैं। इन किताबों में दी गई सलाह अक्सर परिस्थितिजन्य और अल्पकालिक होती है, जो किसी ख़ास समाज या आर्थिक मॉडल पर आधारित होती है।
इसके विपरीत, हमारी श्रीमद्भगवद्गीता, रामायण, और श्रीमद्भागवतम् में दिया गया ज्ञान शाश्वत (Eternal) है। ये ज्ञान आज से पाँच हज़ार साल पहले भी प्रासंगिक था, और पाँच हज़ार साल बाद भी रहेगा। क्योंकि ये मनुष्य के मूल स्वभाव, धर्म (कर्तव्य), कर्म और चेतना के स्तर पर बात करता है।
गीता प्रेस, गोरखपुर जैसी संस्थाओं ने दशकों तक इस अमूल्य ज्ञान को अत्यंत कम मूल्य पर हर घर तक पहुँचाने का महान कार्य किया। फिर भी, आज इनके ग्रंथों की बिक्री कम हो रही है और विदेशी किताबों का चलन बढ़ रहा है। यह प्रवृत्ति न केवल हमारी सांस्कृतिक विरासत से दूरी है, बल्कि जीवन को संचालित करने वाले उन मौलिक सिद्धांतों की उपेक्षा भी है, जो हमारे धर्मग्रंथों में कूट-कूट कर भरे हैं।
नेतृत्व (Leadership): राम, कृष्ण और युधिष्ठिर की कसौटी..
ये ग्रंथ केवल पूजा-पाठ की वस्तुएँ नहीं हैं, बल्कि मानव व्यवहार और नेतृत्व कला (The Art of Leadership) के विश्वविद्यालय हैं।
1. राम: मर्यादा और त्याग का नेतृत्व
रामायण, एक आदर्श राजा और नेता की कहानी है। भगवान राम का जीवन कर्तव्य (Dharma), त्याग (Sacrifice) और मर्यादा के सिद्धांतों पर टिका है। एक सच्चा नेता कैसा होता है? जो निजी स्वार्थ से ऊपर उठकर अपने वचन और जनता के हित को सर्वोपरि रखे। राम का वनवास जाना, लक्ष्मण का बिना प्रश्न किए अनुसरण करना, और भरत का सिंहासन को राम की चरण पादुका मानकर शासन करना—यह सब एक आदर्श संगठनात्मक संस्कृति (Ideal Organizational Culture) और विश्वास आधारित नेतृत्व का उत्कृष्ट उदाहरण है।
2. कृष्ण: प्रबंधन और रणनीति का नेतृत्व
महाभारत और गीता, युद्ध के मैदान में जीवन के परम प्रबंधन (Ultimate Management) को सिखाती हैं। अर्जुन जब मोह और विषाद से ग्रसित होकर हथियार डाल देता है, तब भगवान कृष्ण उसे केवल उपदेश नहीं देते, बल्कि उसे कर्मयोग का दर्शन देते हैं।
* निर्णय लेना (Decision Making): कृष्ण हर जटिल परिस्थिति में सही समय पर सही निर्णय लेने की कला सिखाते हैं।
* अनासक्त कर्म (Detached Action): 'कर्म किए जा, फल की चिंता मत कर' (कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन) - यह आधुनिक 'फ़ोकस ऑन प्रोसेस, नॉट रिजल्ट्स' (Focus on Process, Not Results) का मूल मंत्र है।
* उद्देश्य की स्पष्टता (Clarity of Purpose): युद्ध क्यों लड़ना है? धर्म की स्थापना के लिए। यह आज की कॉर्पोरेट दुनिया में विजन और मिशन की स्पष्टता के समान है।
रिश्ते (Relationships) और त्याग (Sacrifice) का दर्शन
ये कहानियाँ हमें सिखाती हैं कि जीवन ब्लैक एंड वाइट नहीं, बल्कि ग्रे (धुंधला) होता है।
1. त्याग का सौंदर्य
* देवव्रत (भीष्म): अपने पिता की ख़ुशी के लिए जीवन भर ब्रह्मचर्य का पालन करने का भीष्म का संकल्प सिखाता है कि बड़े लक्ष्य के लिए व्यक्तिगत सुख का बलिदान कितना ज़रूरी हो सकता है।
* सीता: अग्निपरीक्षा से गुजरकर भी अपने सतीत्व और धर्म को बनाए रखने का उनका संघर्ष, जीवन के सबसे कठिन अनुभवों में भी अपने मूल्यों (Values) को न छोड़ने का पाठ पढ़ाता है।
2. रिश्ते: जटिलता और संतुलन
महाभारत में धृतराष्ट्र का अपने पुत्र मोह (Blind love) में धर्म से विमुख होना दिखाता है कि व्यक्तिगत मोह कैसे एक पूरे साम्राज्य को विनाश की ओर ले जा सकता है। वहीं, विदुर की निष्पक्ष सलाह और उनका धर्म-आधारित स्टैंड सिखाता है कि सही और गलत के बीच संघर्ष होने पर हमेशा सत्य का पक्ष लेना चाहिए, भले ही वह आपके अपने परिवार या संगठन के ख़िलाफ़ क्यों न हो।
आधुनिक समस्याओं का प्राचीन समाधान
आज की दुनिया तनाव (Stress), अनिश्चितता (Uncertainty), और उद्देश्यहीनता (Lack of Purpose) से जूझ रही है।
* जब कोई युवा अपनी करियर चॉइस को लेकर भ्रमित होता है, तो उसे गीता का स्वधर्म (One's Own True Duty) का सिद्धांत रास्ता दिखाता है।
* जब कोई व्यक्ति असफलता से टूट जाता है, तो भगवद्गीता उसे सिखाती है कि आत्मा अमर है और कर्म का चक्र चलता रहता है, इसलिए क्षणिक परिणामों से विचलित न हों।
* जब कॉर्पोरेट जगत में नैतिकता का संकट आता है, तो रामायण हमें मर्यादा पुरुषोत्तम के सिद्धांत याद दिलाती है।
निष्कर्ष:
रामायण, महाभारत और श्रीमद्भागवतम् केवल धार्मिक कथाएँ नहीं हैं। ये मानव मनोविज्ञान (Human Psychology), नैतिकता (Ethics), प्रबंधन (Management), और सार्वभौमिक नेतृत्व (Universal Leadership) के प्राइमरी टेक्स्ट हैं। वे जीवन के हर प्रश्न—जैसे डर, क्रोध, लोभ, कर्तव्य, और मृत्यु—का उत्तर देती हैं।
विदेशी लेखकों की किताबें पढ़कर हमें तात्कालिक समाधान मिल सकते हैं, लेकिन हमारे स्वयं के धर्मग्रंथों को पढ़ने से हमें स्थायी दर्शन (Permanent Philosophy) मिलता है, जो जीवन को उसकी संपूर्णता में समझने की शक्ति प्रदान करता है।
जरूरत है कि हम इन ग्रंथों को केवल धार्मिक अनुष्ठान या कहानियों के संग्रह के रूप में न देखें, बल्कि उन्हें जीवन जीने की कला (Art of Living) और व्यक्तिगत विकास (Personal Development) की सबसे पुरानी और सबसे सच्ची किताबों के रूप में अपनाएँ। जब हम यह करेंगे, तब हमें महसूस होगा कि जो ज्ञान हम बाहर ढूंढ रहे हैं, वह सदियों से हमारे ही घरों में 'राम-नाम' की तरह उपस्थित है।
क्या आप जानना चाहेंगे कि गीता के कुछ खास श्लोक आधुनिक मैनेजमेंट की किन समस्याओं का समाधान करते हैं?
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