मानव जीवन रिश्तों के बिना अधूरा है। माता-पिता का स्नेह, भाई-बहन का अपनापन, दोस्ती की मिठास और पति-पत्नी का साथ—ये सभी रिश्ते ही हमारी पहचान बनाते हैं। लेकिन जब इन रिश्तों में स्वार्थ की भावना घुल जाती है, तो उनका आधार हिलने लगता है। वहीं, निस्वार्थ भावनाएँ रिश्तों को गहराई और स्थायित्व देती हैं। यही कारण है कि कहा गया है—
“जहाँ प्रेम है, वहाँ विश्वास है, और जहाँ विश्वास है, वहाँ स्थायित्व है।”
रिश्तों में स्वार्थ की परछाई
आज के दौर में देखा जा रहा है कि रिश्ते अक्सर “लेन-देन” का रूप ले चुके हैं। कई लोग रिश्तों को निभाने की बजाय उनका उपयोग करते हैं। उदाहरणस्वरूप—
दोस्ती तब तक निभाई जाती है जब तक उसमें कोई व्यक्तिगत लाभ हो।
परिवार में भी कभी-कभी लोग केवल अपनी ज़रूरत के अनुसार ही जुड़ाव रखते हैं।
काम निकलने के बाद रिश्तों की अहमियत भूल जाना आम होता जा रहा है।
ऐसे रिश्ते लंबे समय तक नहीं टिकते, क्योंकि उनका आधार केवल स्वार्थ होता है। जैसे ही स्वार्थ समाप्त होता है, रिश्ता भी ढह जाता है।
निस्वार्थता ही रिश्तों की नींव
सच्चा रिश्ता वही है जिसमें प्यार, विश्वास और सहयोग की भावना हो। जब कोई व्यक्ति बिना स्वार्थ के किसी का साथ देता है, तब वह रिश्ता अमर हो जाता है। सोचिए—
माता-पिता का बच्चों के लिए समर्पण, क्या कभी किसी स्वार्थ पर आधारित होता है?
एक सच्चा मित्र तब काम आता है जब दुनिया साथ छोड़ देती है।
जीवनसाथी का सहयोग सुख-दुख में साथ निभाने की कसौटी है।
इन उदाहरणों से स्पष्ट है कि निस्वार्थ रिश्ते ही जीवन की ताक़त होते हैं।
आधुनिक समय और बदलती सोच
आज की भागदौड़ भरी ज़िंदगी में लोग अधिकतर स्वार्थ केंद्रित होते जा रहे हैं। सोशल मीडिया, भौतिकवाद और प्रतिस्पर्धा ने रिश्तों की आत्मीयता को कम कर दिया है। अब बहुत से लोग रिश्तों को निवेश और लाभ के समीकरण से देखते हैं।
लेकिन सवाल यह है कि क्या यही जीवन का उद्देश्य है? क्या हम इंसानी चोले को सिर्फ़ स्वार्थ की पूर्ति के लिए पाकर आए हैं?
रिश्तों को मजबूत बनाने के उपाय
1. विश्वास बनाएँ – किसी भी रिश्ते की नींव विश्वास है। धोखे से बचें।
2. प्यार और सम्मान दें – छोटे-छोटे स्नेह भरे शब्द रिश्तों को मधुर बनाते हैं।
3. सहयोग की भावना रखें – मुश्किल समय में बिना शर्त साथ दें।
4. क्षमा करना सीखें – छोटी-छोटी गलतियों को बड़ा न बनाएं।
5. समर्पण भाव अपनाएँ – यह सोचें कि "मैं रिश्ते के लिए क्या कर सकता हूँ" न कि "मुझे क्या मिलेगा।"
निष्कर्ष
रिश्ते केवल रक्त संबंधों से नहीं, बल्कि हृदय के संबंधों से जीवित रहते हैं। अगर उनमें स्वार्थ आ जाए तो वे खोखले हो जाते हैं, और अगर उनमें निस्वार्थता, प्रेम और सहयोग का रस भर दिया जाए तो वे जीवनभर महकते रहते हैं।
इसलिए, हमें यह याद रखना चाहिए—
“जहाँ स्वार्थ है, वहाँ अस्थिरता है।
जहाँ प्रेम है, वहाँ अनंत संभावनाएँ हैं।”
रिश्तों की यही संभावनाएँ हमें इंसान बनाती हैं। अगर हम कोशिश ही न करें, तो सचमुच यह इंसानी चोला व्यर्थ है।
👉 अब सवाल यह है कि आपके अनुसार रिश्तों में सबसे बड़ी कसौटी क्या होनी चाहिए—स्वार्थ, विश्वास या निस्वार्थ सहयोग?
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