Wednesday 11 September 2024

**उल्टी यात्रा*

**उल्टी यात्रा**

2024 से 1980 के दशक अर्थात बचपन की तरफ़ जो 40 को पार कर गये हैं या करीब हैं उनके लिए यह खास है...!!

मेरा मानना है कि दुनिया में ‌जितना बदलाव हमारी पीढ़ी ने देखा है हमारे बाद की किसी पीढ़ी को "शायद ही" इतने बदलाव देख पाना संभव हो।

हम वो आखिरी पीढ़ी हैं जिसने बैलगाड़ी से लेकर सुपर सोनिक जेट देखे हैं। बैरंग ख़त से लेकर लाइव चैटिंग तक देखा है और "वर्चुअल मीटिंग जैसी" असंभव लगने वाली बहुत सी बातों को सम्भव होते हुए देखा है।

हम वो पीढ़ी हैं जिन्होंने कई-कई बार मिट्टी के घरों में बैठ कर परियों और राजाओं की कहानियां सुनी हैं। ज़मीन पर बैठकर खाना खाया है। प्लेट में डाल-डाल कर चाय पी है।

हम वो लोग हैं जिन्होंने बचपन में मोहल्ले के मैदानों में अपने दोस्तों के साथ पारंपरिक खेल, गिल्ली-डंडा, छुपा-छिपी, खो-खो, कबड्डी, कंचे जैसे खेल खेले हैं।

हम आखरी पीढ़ी के वो लोग हैं जिन्होंने चांदनी रात में डीबरी, लालटेन या बल्ब की पीली रोशनी में होमवर्क किया है और दिन के उजाले में चादर के अंदर छिपा कर नावेल पढ़े हैं।

हम वही पीढ़ी के लोग हैं जिन्होंने अपनों के लिए अपने जज़्बात खतों में आदान-प्रदान किए हैं और उन ख़तो के पहुंचने और जवाब के वापस आने में महीनों तक इंतजार किया है।

हम उसी आखरी पीढ़ी के लोग हैं जिन्होंने कूलर, एसी या हीटर के बिना ही बचपन गुज़ारा है और बिजली के बिना भी गुज़ारा किया है।

हम वो आखरी लोग हैं जो अक्सर अपने छोटे बालों में सरसों का ज्यादा तेल लगा कर स्कूल और शादियों में जाया करते थे।

हम वो आखरी पीढ़ी के लोग हैं जिन्होंने स्याही वाली दावात या पेन से कॉपी किताबें, कपड़े और हाथ काले-नीले किए हैं। तख़्ती पर सेठे की क़लम से लिखा है और तख़्ती धोई है।

हम वो आखरी लोग हैं जिन्होंने टीचर्स से मार खाई है और घर में शिकायत करने पर फिर मार खाई है।

हम वो आखरी लोग हैं जो मोहल्ले के बुज़ुर्गों को दूर से देख कर नुक्कड़ से भाग कर घर आ जाया करते थे और समाज के बड़े बूढ़ों की इज़्ज़त डरने की हद तक करते थे।

हम वो आखरी लोग हैं जिन्होंने अपने स्कूल के सफेद केनवास शूज़ पर खड़िया का पेस्ट लगा कर चमकाया है!

हम वो आखरी लोग हैं जिन्होंने गुड़ की चाय पी है। काफी समय तक सुबह काला या लाल दंत मंजन या सफेद टूथ पाउडर इस्तेमाल किया है और कभी-कभी तो नमक से या लकड़ी के कोयले से दांत साफ किए हैं।

हम निश्चित ही वो लोग हैं जिन्होंने चांदनी रातों में, रेडियो पर BBC की ख़बरें, विविध भारती, ऑल इंडिया रेडियो, बिनाका गीत माला और हवा महल जैसे प्रोग्राम पूरी शिद्दत से सुने हैं।

हम वो आखरी लोग हैं जब हम सब शाम होते ही छत पर पानी का छिड़काव किया करते थे। उसके बाद सफेद चादरें बिछा कर सोते थे। एक स्टैंड वाला पंखा सब को हवा के लिए हुआ करता था।

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