मनुष्य का जीवन अनेक अनुभवों, संघर्षों और सीखों से बना होता है। ज्ञान प्राप्त करना मनुष्य की सबसे बड़ी शक्ति है। यही ज्ञान उसे अन्य प्राणियों से अलग बनाता है और ऊँचाई तक पहुँचने की क्षमता देता है। किंतु जब यही ज्ञान अहंकार का कारण बन जाता है, तो उसका मूल्य शून्य हो जाता है। इसके विपरीत यदि मनुष्य को अपने अहंकार का ज्ञान हो जाए, तो वह वास्तविक अर्थों में समझदार और विवेकी बन सकता है। इसलिए कहा जाता है कि “मनुष्य को ज्ञान का अहंकार होने से अधिक आवश्यक है अहंकार का ज्ञान होना।”
ज्ञान का अहंकार: विनाश की ओर ले जाने वाला मार्ग
ज्ञान जीवन को रोशन करता है, परंतु जब मनुष्य उसे अपनी श्रेष्ठता का साधन मानकर दूसरों को तुच्छ समझने लगता है, तब वही ज्ञान अभिशाप बन जाता है।
एक विद्वान व्यक्ति यदि अपने ज्ञान का दिखावा करता है और दूसरों को अज्ञानी मानकर नीचा दिखाता है, तो उसका ज्ञान व्यर्थ है।
महाभारत का उदाहरण लें—कौरवों के पास भी ज्ञान था, लेकिन दुर्योधन और शकुनि के अहंकार ने उस ज्ञान को अंधकार में बदल दिया और अंततः महायुद्ध हुआ।
इतिहास गवाह है कि जब-जब मनुष्य को अपने ज्ञान पर घमंड हुआ, तब-तब वह पतन की ओर गया।
ज्ञान का अहंकार मनुष्य की दृष्टि को संकीर्ण कर देता है। वह यह भूल जाता है कि ज्ञान असीम है और उसकी अपनी जानकारी मात्र एक बूँद है।
अहंकार का ज्ञान: आत्मबोध की ओर पहला कदम
जब मनुष्य को यह एहसास होता है कि उसके भीतर अहंकार पल रहा है, तब वह आत्मचिंतन करता है। यही आत्मचिंतन उसे सच्चे ज्ञान की ओर ले जाता है।
अहंकार का ज्ञान होने पर इंसान विनम्र बनता है।
उसे यह समझ आता है कि जीवन का उद्देश्य दूसरों को दबाना नहीं, बल्कि उनके साथ मिलकर आगे बढ़ना है।
ऐसा व्यक्ति अपनी सीमाओं और कमजोरियों को भी स्वीकार करता है और सुधार की राह पकड़ता है।
गौतम बुद्ध ने भी कहा था कि “अहंकार मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है।” लेकिन यदि हमें यह ज्ञात हो जाए कि हम अहंकारी हो रहे हैं, तो वही ज्ञान हमें परिवर्तन की ओर ले जाता है।
ज्ञान और अहंकार का संतुलन
ज्ञान बिना अहंकार के मनुष्य को आभा देता है, उसे विनम्र और महान बनाता है।
वहीं, ज्ञान के साथ अहंकार जुड़ जाए तो वह व्यक्ति को विनाश की राह पर ले जाता है।
अहंकार का ज्ञान होना, आत्मजागरूकता का द्योतक है। यह हमें रोकता है कि हम दूसरों को नीचा न दिखाएँ।
व्यावहारिक जीवन में उदाहरण
1. डॉक्टर और शिक्षक – यदि डॉक्टर अपने ज्ञान का अहंकार करने लगे तो रोगी उसका इलाज करने से डरेंगे, लेकिन यदि उसे अपने अहंकार का ज्ञान होगा तो वह विनम्र होकर रोगियों की सेवा करेगा। इसी प्रकार शिक्षक यदि विनम्र रहेगा तो शिष्य उससे प्रेरित होंगे।
2. साधु और संत – संतों का ज्ञान तभी प्रभावी होता है जब वे अहंकार से परे होते हैं। कबीर, तुलसी और विवेकानंद का प्रभाव इसलिए स्थायी है क्योंकि उनके भीतर ज्ञान था, लेकिन उसका अहंकार नहीं।
3. राजनीति और नेतृत्व – एक नेता यदि अपने पद और ज्ञान का अहंकार करता है तो जनता उससे दूर हो जाती है। लेकिन जो अपने अहंकार को पहचान कर विनम्र रहता है, वही सच्चा जननायक बनता है।
दार्शनिक दृष्टिकोण
भारतीय दर्शन में अहंकार को ‘अविद्या’ का परिणाम माना गया है। उपनिषदों में कहा गया है—“असतो मा सद्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय।” अर्थात् हमें अज्ञान और अहंकार के अंधकार से ज्ञान और विनम्रता के प्रकाश की ओर बढ़ना चाहिए।
ज्ञान हमें बाहरी दुनिया से परिचित कराता है।
अहंकार का ज्ञान हमें अपने भीतर झाँकने की शक्ति देता है।
यही कारण है कि आत्मज्ञान को सर्वोच्च ज्ञान कहा गया है।
आधुनिक संदर्भ में महत्व
आज की प्रतिस्पर्धात्मक दुनिया में शिक्षा, डिग्रियाँ और ज्ञान का भंडार होना आसान है, लेकिन उस ज्ञान का सही उपयोग तभी है जब उसमें अहंकार न हो।
तकनीकी ज्ञान वाले कई लोग अपने आपको श्रेष्ठ मानते हैं और दूसरों को कमतर समझते हैं।
वहीं, जो अपने अहंकार को पहचान लेते हैं, वही अच्छे टीम लीडर और सफल इंसान बनते हैं।
निष्कर्ष
ज्ञान का अहंकार मनुष्य को अंधा कर देता है, जबकि अहंकार का ज्ञान उसकी आँखें खोल देता है।
ज्ञान का अहंकार मनुष्य को दूसरों से दूर करता है।
अहंकार का ज्ञान मनुष्य को विनम्र बनाता है और समाज में सम्मान दिलाता है।
सच्चा ज्ञानी वही है, जो अपने भीतर के अहंकार को पहचानकर उसे नियंत्रित कर सके।
इसलिए यह पूर्ण सत्य है कि “मनुष्य को ज्ञान का अहंकार होने से अधिक आवश्यक है अहंकार का ज्ञान होना।” यही भाव जीवन को महान बनाता है और सच्चे अर्थों में मनुष्य को श्रेष्ठता प्रदान करता है।
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