Monday, 11 August 2025

जीविका (BRLPS) में प्रशिक्षण अधिकारी के कार्य एवं दायित्व...


बिहार के गाँवों में अगर आज आप कहीं महिला स्वयं सहायता समूह (SHG) की बैठक में जाएँ, किसी किसान को आधुनिक खेती करते देखें, या किसी गाँव की महिला को बैंक लोन के कागजों को आत्मविश्वास से भरते देखें, तो समझ लीजिए कि इसके पीछे कहीं न कहीं एक प्रशिक्षण अधिकारी की मेहनत छुपी है।

यह पद किसी सरकारी फाइल के पन्ने पर सिर्फ एक designation नहीं, बल्कि एक ऐसा जिम्मा है जो गाँवों में आर्थिक, सामाजिक और मानसिक बदलाव लाने की रीढ़ है। जीविका (BRLPS) के अंतर्गत काम करने वाला प्रशिक्षण अधिकारी एक साथ शिक्षक, मार्गदर्शक, योजनाकार, प्रेरक और समस्या समाधानकर्ता होता है।

उनका काम सिर्फ “कक्षा लेकर” खत्म नहीं हो जाता, बल्कि वे पूरी प्रक्रिया के डिजाइनर, आयोजक, और गुणवत्ता के प्रहरी होते हैं। आइए, इसे विस्तार से समझते हैं।


1. पद और दायरा — ज़िले से गाँव तक

प्रशिक्षण अधिकारी का पद जिला स्तर पर होता है। वे IBCB थीम (Institution Building & Capacity Building) के तहत कार्य करते हैं, लेकिन जरूरत पड़ने पर अन्य थीम—जैसे माइक्रोफाइनेंस, लिवलीहुड्स, सोशल डेवलपमेंट—में भी योगदान देते हैं।

उनका मुख्य कार्य है:

  • CBO (Community Based Organization) जैसे SHG, VO, CLF को प्रशिक्षित करना

  • CBO कैडर (बुक कीपर, कम्युनिटी कोऑर्डिनेटर, कम्युनिटी रिसोर्स पर्सन आदि) को उनकी भूमिका में दक्ष बनाना

  • जीविका कर्मी — AC (Area Coordinator), CC (Community Coordinator), BPM (Block Project Manager) को ट्रेनिंग देना

  • Resource Pool तैयार करना और उन्हें प्रशिक्षित करना ताकि वे आगे गाँव-गाँव में प्रशिक्षण दे सकें

यानी, वे सिर्फ खुद प्रशिक्षण नहीं देते, बल्कि प्रशिक्षकों की एक पूरी टीम तैयार करते हैं


2. प्रशिक्षण आवश्यकताओं की पहचान — बदलाव की पहली सीढ़ी

प्रशिक्षण अधिकारी का पहला काम है यह समझना कि “कहाँ, किसे और क्या सिखाना है।”

इसके लिए वे:

  • गाँवों में सर्वेक्षण करते हैं

  • समूह चर्चा (FGD) आयोजित करते हैं

  • CBO और कर्मियों से बातचीत करते हैं

  • डेटा विश्लेषण करते हैं

उदाहरण:
अगर किसी CLF की बुक-कीपिंग सही नहीं हो रही, तो इसका मतलब है कि उनके बुक कीपर को रिकॉर्ड मेंटेनेंस और फाइनेंशियल मैनेजमेंट पर प्रशिक्षण की जरूरत है।

यह चरण किसी डॉक्टर के मरीज़ की जांच जैसा है—बिना सही diagnosis के सही इलाज संभव नहीं।


3. स्थानीय संदर्भ में प्रशिक्षण सामग्री तैयार करना

एक बार जरूरत तय हो जाने पर, प्रशिक्षण अधिकारी मॉड्यूल और सामग्री तैयार करते हैं।

इनकी खासियत है:

  • स्थानीय भाषा और बोली में होना

  • उदाहरण, कहानियाँ और रोल-प्ले शामिल करना

  • चार्ट, पोस्टर, वीडियो और मोबाइल ऐप का प्रयोग

  • तकनीकी विषयों को सरल तरीके से समझाना

उदाहरण के लिए, वित्तीय साक्षरता सिखाने में वे असली बैंक पासबुक, चेकबुक, या लेन-देन के slips का उपयोग करते हैं, ताकि प्रतिभागी सिर्फ सुनें नहीं बल्कि देखकर सीखें।


4. योजना से संचालन तक — हर कदम पर सक्रिय भूमिका

प्रशिक्षण अधिकारी के लिए कोई भी प्रशिक्षण “ऑटो-पायलट मोड” में नहीं चलता। वे खुद:

  • स्थान और तारीख तय करते हैं

  • प्रतिभागियों की सूची बनाते हैं

  • संसाधनों की व्यवस्था करते हैं

  • सत्र का संचालन करते हैं

कई बार उन्हें ToT (Training of Trainers) सत्र भी आयोजित करने पड़ते हैं, जिससे प्रशिक्षित लोग अपने गाँव में जाकर औरों को सिखा सकें।

इस तरह, वे सिर्फ मछली नहीं देते, बल्कि मछली पकड़ना सिखाते हैं


5. असर की निगरानी और सुधार

प्रशिक्षण खत्म होने के बाद असली परीक्षा शुरू होती है—क्या सीखी हुई चीज़ें जमीन पर लागू हुईं या नहीं?

वे:

  • फॉलो-अप विज़िट करते हैं

  • प्रतिभागियों से फीडबैक लेते हैं

  • परिणामों का आकलन करते हैं (जैसे लोन लेना, खेती की नई तकनीक अपनाना)

  • कमियों के आधार पर अगली बार प्रशिक्षण में सुधार करते हैं

यह सतत प्रक्रिया गुणवत्ता बनाए रखती है और सीख को स्थायी बनाती है।


6. CBO को आत्मनिर्भर बनाना

IBCB का मूल उद्देश्य है संगठन की क्षमता निर्माण। प्रशिक्षण अधिकारी:

  • CBO नेताओं को नेतृत्व कौशल, बैठक संचालन और वित्तीय प्रबंधन सिखाते हैं

  • रिकॉर्ड रखने और रिपोर्टिंग की आदत डालते हैं

  • उन्हें इस लायक बनाते हैं कि वे बिना बाहरी मदद के खुद अपनी समस्याओं का समाधान कर सकें

वे सफल कहानियों और अच्छी प्रथाओं को भी दस्तावेज़ कर बाकी संगठनों तक पहुँचाते हैं।


7. यात्रा और विविधता — सीमाओं से बाहर भी काम

प्रशिक्षण अधिकारी का काम सिर्फ अपने ज़िले तक सीमित नहीं होता।

  • कभी-कभी उन्हें दूसरे ज़िलों या राज्यों में भी प्रशिक्षण लेने या देने जाना पड़ता है

  • वे विभिन्न जिलों के अनुभव साझा करते हैं

  • नई पद्धतियाँ और मॉडल सीखकर अपने ज़िले में लागू करते हैं

इस तरह, वे ज्ञान के आदान-प्रदान के पुल की तरह काम करते हैं।


8. चुनौतियाँ — धूप, धूल और धैर्य की परीक्षा

उनके सामने कई कठिनाइयाँ आती हैं:

  • भौगोलिक कठिनाई — दूर-दराज़, पहाड़ी या नदी पार के गाँव

  • मौसम — बारिश में कीचड़ और टूटे रास्ते

  • सामाजिक मानसिकता — बदलाव के प्रति हिचक, खासकर महिलाओं की भागीदारी में बाधा

  • संसाधनों की कमी — सीमित बजट और सामग्री

  • भाषाई विविधता — एक जिले में कई बोलियाँ

लेकिन इन्हें पार करने का मंत्र है—धैर्य, लचीलापन और जज़्बा।


9. सफलता की कहानियाँ — बदलाव के गवाह

  • सुमित्रा देवी (गया) — बैंकिंग और उद्यमिता प्रशिक्षण के बाद डेयरी व्यवसाय शुरू कर, आज गाँव की कई महिलाओं को रोज़गार दे रही हैं।

  • रीना कुमारी (मुजफ्फरपुर) — सिलाई प्रशिक्षण के बाद खुद का केंद्र खोल, पाँच महिलाओं को काम दिया।

  • गोपाल जी (औरंगाबाद) — जैविक खेती अपनाकर उत्पादन और आय दोनों बढ़ाई।

इन कहानियों में एक अदृश्य सूत्र है—एक प्रशिक्षण अधिकारी की मेहनत और मार्गदर्शन।


10. आवश्यक गुण

सफल प्रशिक्षण अधिकारी में होते हैं:

  • प्रभावी संचार और प्रस्तुति कौशल

  • विश्लेषण और समस्या समाधान क्षमता

  • टीमवर्क और नेतृत्व गुण

  • नवाचार और लचीलापन

  • धैर्य और प्रेरणा देने की क्षमता


निष्कर्ष — बदलाव के अनसुने नायक

जीविका के प्रशिक्षण अधिकारी नींव के वे पत्थर हैं जो दिखते नहीं, पर पूरी इमारत उन्हीं पर टिकी होती है

वे योजनाओं को फाइल से निकालकर गाँव की ज़मीन तक पहुँचाते हैं, CBO को आत्मनिर्भर बनाते हैं, कर्मियों को दक्ष बनाते हैं, और बदलाव के बीज बोते हैं।

पोस्टर पर नाम न हो, अखबार में तस्वीर न छपे—फिर भी उनका काम गाँव के हर कोने में दिखाई देता है, हर उस महिला की मुस्कान में जो आत्मनिर्भर हुई, हर उस किसान की आँख में जो आत्मविश्वास से भरा है।






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