भारत एक ऐसा देश है जहाँ हर परंपरा के पीछे न केवल धार्मिक आस्था जुड़ी होती है, बल्कि गहरा वैज्ञानिक आधार भी छिपा होता है। जनेऊ (यज्ञोपवीत) धारण करना भी ऐसी ही एक परंपरा है। सामान्यत: लोग इसे केवल ब्राह्मणों या पुजारियों से जोड़कर देखते हैं, लेकिन वस्तुतः यह जीवनशैली, अनुशासन और स्वास्थ्य से गहराई से जुड़ा हुआ है।
जनेऊ का अर्थ है – ‘यज्ञ का उपवीत’, अर्थात् यज्ञीय जीवन, पवित्रता और सतत ज्ञान की साधना का धागा। यह मात्र एक सूत नहीं, बल्कि धर्म, विज्ञान और स्वास्थ्य का त्रिवेणी संगम है।
अब सवाल यह है कि – शौच या मूत्र त्याग के समय इसे कान पर क्यों चढ़ाया जाता है?
आइए, इस रहस्य को भावनात्मक, धार्मिक और वैज्ञानिक तीनों दृष्टियों से समझते हैं।
🕉️ जनेऊ: पवित्रता का प्रतीक
हिंदू धर्मग्रंथों में जनेऊ को जीवन का नया अध्याय माना गया है। यह व्यक्ति को स्मरण कराता है कि वह अब केवल देह तक सीमित नहीं, बल्कि ज्ञान और आत्मिक उन्नति के पथ पर है।
शास्त्रों के अनुसार,
> "अग्निरापश्च वेदाश्च सोमः सूर्योनिलस्तथा।
सर्वे देवास्तु विप्रस्य कर्णे तिष्ठन्ति दक्षिणे।।"
अर्थात – अग्नि, जल, वेद, चंद्र (सोम), सूर्य और वायु जैसे देवता ब्राह्मण के दाहिने कान में निवास करते हैं।
यही कारण है कि शौच जैसे कार्य के समय, जब शरीर अपवित्र माना जाता है, तो जनेऊ को सिर या कान की ऊँचाई पर रख दिया जाता है।
🙏 भावनात्मक और धार्मिक कारण
1. पवित्रता की रक्षा – शौच या मूत्र त्याग के समय नाभि के नीचे का हिस्सा अशुद्ध माना जाता है।
इसलिए पवित्र धागे (जनेऊ) को ऊपर, कान पर सुरक्षित रखा जाता है।
2. दैवीय शक्ति का केंद्र – कान – माना जाता है कि दाहिना कान देवताओं का आसन है।
इसलिए जनेऊ को वहाँ रखकर यह संकेत दिया जाता है कि पवित्रता बनी रहे।
3. आचार मयूख और कूर्मपुराण का निर्देश – शास्त्रों में स्पष्ट कहा गया है कि मूत्र त्याग के समय जनेऊ दाहिने कान पर और शौच के समय बाएँ कान पर रखा जाना चाहिए।
🧬 वैज्ञानिक कारण
भारत की परंपराएँ केवल आस्था तक सीमित नहीं, उनमें गहरा विज्ञान छिपा होता है।
1. नाड़ी विज्ञान
मानव शरीर में एक महत्वपूर्ण नाड़ी “लोहितिका नाड़ी” होती है, जो कान के नीचे से होकर मूत्राशय और आंतों से जुड़ी है।
जनेऊ को कान पर रखने से इस नाड़ी पर हल्का दबाव पड़ता है, जिससे मल-मूत्र का त्याग सहज और सरल हो जाता है।
2. वीर्य संरक्षण
शास्त्रों में बताया गया है कि मूत्र त्याग के समय वीर्य का अंश भी निकल सकता है।
कान पर दबाव देने से यह प्रक्रिया नियंत्रित रहती है और शरीर की ऊर्जा संरक्षित होती है।
3. कब्ज और पाचन स्वास्थ्य
लंदन के क्वीन एलिजाबेथ चिल्ड्रन्स हॉस्पिटल के डॉ. एस.आर. सक्सेना के अनुसार –
कान की नसें आंत से जुड़ी होती हैं। कान दबाने से मलद्वार खुलता है और कब्ज जैसी समस्या दूर होती है।
4. हृदय और रक्तचाप पर असर
इटली के बाटी विश्वविद्यालय के न्यूरोसर्जन प्रोफेसर एनारीब पीताजेली ने बताया है कि कान के पास दबाव देने से हृदय की मांसपेशियाँ सक्रिय होती हैं और रक्तचाप नियंत्रित रहता है।
🩺 आयुर्वेदिक दृष्टि से लाभ
दाहिने कान पर जनेऊ रखने से सूर्य नाड़ी सक्रिय होती है, जिससे पाचन तंत्र बेहतर होता है।
मूत्र त्याग के समय दाहिने कान पर दबाव देने से डायबिटीज (मधुमेह) के रोगियों को लाभ होता है।
बाएँ कान पर जनेऊ रखने से पाइल्स (बवासीर) की संभावना कम होती है।
कान की नसें शरीर की विभिन्न ग्रंथियों को नियंत्रित करती हैं, इसलिए यह प्रक्रिया शरीर की ऊर्जा संतुलन में मदद करती है।
📜 अन्य शास्त्रीय उद्धरण
मनुस्मृति –
> "उर्ध्वं नाभे मेध्यतरः पुरुषः परिकीर्तितः।
तस्मान् मेध्यतमं त्वस्य मुखमुक्तं स्वयंभुवा।।"
अर्थात – नाभि के ऊपर का हिस्सा पवित्र और नीचे का हिस्सा अपवित्र माना गया है।
कूर्मपुराण –
> "निधाय दक्षिणे कर्णे ब्रह्मसूत्रमुदङ्मुखः।
अग्निं कुर्यात् शङ्कृन्मूत्रं रात्रौ चेद् दक्षिणान्मुखः।"
यानी दिन हो या रात, जनेऊ कान पर रखकर ही शौच-मूत्र त्याग करना चाहिए।
🌍 आधुनिक विज्ञान भी सहमत
आज वैज्ञानिक भी मानते हैं कि कान पर दबाव देने से:
हृदय मजबूत होता है।
रक्तचाप नियंत्रित रहता है।
आंत और मूत्राशय की मांसपेशियों को शिथिलता मिलती है।
पाचन तंत्र और मल त्याग की प्रक्रिया आसान होती है।
🌱 निष्कर्ष
जनेऊ केवल धार्मिक प्रतीक नहीं है। यह पवित्रता, अनुशासन, स्वास्थ्य और विज्ञान का प्रतीक है।
धार्मिक दृष्टि से यह आत्मसंयम और देवताओं का स्मरण कराता है।
वैज्ञानिक दृष्टि से यह शरीर की नसों पर दबाव डालकर मल-मूत्र विसर्जन को आसान बनाता है और कई बीमारियों से बचाव करता है।
आयुर्वेदिक दृष्टि से यह पाचन, रक्तचाप और प्रजनन स्वास्थ्य में लाभकारी है।
👉 इसलिए, जब कोई व्यक्ति शौच या मूत्र त्याग के समय जनेऊ को कान पर चढ़ाता है, तो यह केवल एक परंपरा नहीं बल्कि धर्म और विज्ञान का अद्भुत संगम है।
✨ "जनेऊ धारण करना हमें यह याद दिलाता है कि शरीर केवल भोग के लिए नहीं, बल्कि साधना और आत्मिक उन्नति का साधन है।"
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