Sunday, 21 June 2020

शारीरिक एवं मानसिक रूप से स्वस्थ रहने के लिए अंतरराष्ट्रीय योगा दिवस 21 जून ..

         21 जून को पूरे विश्व में अंतरराष्ट्रीय योगा दिवस के रूप में मनाया जाता है इस दिन पूरे धरती के मानव जाति के लोग सुबह उठकर योगा कर अपने तन और मन का व्यायाम करते हैं योगा एक ऐसा जीवन जीने की  तरीका है जिससे कि हमारा शारीरिक एवं मानसिक स्थितियों को बेहतर बनाता है योगा प्रत्येक दिन करने  चीज है ना कि सिर्फ  योग दिवस पर इसे हर एक व्यक्ति को जीवन का एक हिस्सा बनाना चाहिए !योगा करने से हमारा शारीरिक एवं मानसिक बल मजबूत होता है तथा सकारात्मक दृष्टिकोण प्रदान करता है योगासन भारत का ही देन है इसके अविष्कारक महर्षि पतंजलि को माना जाता है आज के दिन योगासन भी एक बहुत बड़ा व्यवसाय का रूप ले लिया गया है योगासन करने के तरीका के लिए विभिन्न प्रकार की संस्थाएं एवं लोग आज इसे एक व्यवसाय का रूप दे चुके हैं जहां पर लोग हजारों लाखों रुपए खर्च करते हैं योगासन को पूरे विश्व में प्रसिद्धि दिलाने में आज के समय में स्वामी रामदेव जी का बहुत बड़ा योगदान रहा है साथ साथ योगासन को प्रसिद्धि दिलाने में हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी का भी बहुत बड़ा योगदान रहा है इनके मेहनत के द्वारा ही आज के दिन अंतरराष्ट्रीय योगा दिवस मनाया जा रहा है आज के दिन हर एक व्यक्ति को यह शपथ लेना चाहिए कि मैं और मेरा पूरा परिवार प्रत्येक दिन सुबह उठकर नित्य कर्म करके 10 मिनट से 20 मिनट तक पूरे परिवार के साथ योगा करेंगे! मैं वर्ष 2001 से योगा कर रहा हूं मुझे योगा करने की प्रेरणा बराबर की पहाड़ियों में रह रहे मोनी बाबा से मिला वे 30 वर्षों से किसी से मौखिक रूप से बात नहीं की है वह सिर्फ इशारों में और लिख करके अपनी बातों को अपने विचारों को लोगों तक पहुंचाते हैं और बताते हैं वे पिछले 30 सालों में कभी भी किसी चिकित्सक के पास नहीं गए जब मैं बराबर की पहाड़ियों में जाता रहता था तो उनसे मुलाकात होता था और उनसे योगा सीखने का मौका मुझे मिला。
 🧘🏻‍♂️ योग करने से आप को मिलने वाले लाभ👇

✅ रोग प्रतिकारक शक्ति बढ़ेगी
✅ सही और गलत ज्ञान की परख होने से तनाव से मुक्ति मिल जाएगी
✅ शरीर में ऊर्जा का संचार होगा
✅ अतिरिक्त Fats कम होता है
✅ निरंतर योग और आहार नियम का पालन करने से जितनी भी दवाइयां है कम से कम समय में बंद हो सकती है
✅ शरीर एकदम हलका महसूस होगा, शरीर मे रोग ना होने की वजह से मन हमेशा प्रसन्न रहेगा
✅ चेहरे पर दिव्य तेज आएगा जो beauty products लगाने से भी नही आता
✅ हड्डिया मजबूत बनेगी
✅ शरीर मे लचीलापन आएगा
✅ पाचन संस्था मजबूत बनेगी
✅ दृढ़ता, विश्वास, संयम ऐसे कई सारे गुणो का विकास होगा.

Wednesday, 10 June 2020

कोई भी काम जो मानव ,प्रकृति के लिए बेहतर है वह काम छोटा बड़ा नहीं होता...

🔨 "श्रम का गौरव: जब राष्ट्रपति ने जूते बनाने वाले पिता पर गर्व किया!" 👞🇺🇸

हर साल 1 मई को 'श्रम दिवस' (Labour Day) के रूप में मनाया जाता है। यह दिन सिर्फ कामगारों का नहीं है, बल्कि हर उस इंसान का दिन है जो ईमानदारी से मेहनत करता है – चाहे वह किसान हो, कारीगर हो, शिक्षक हो, या फिर एक साधारण मज़दूर।

श्रम दिवस हमें यह सिखाता है कि कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता, जो भी कार्य मानवता, समाज और प्रकृति के हित में हो, वह हर दृष्टिकोण से पूज्यनीय है। लेकिन फिर भी हमारे समाज में आज भी कई बार पेशों के आधार पर भेदभाव देखने को मिलता है। ऐसे समय में अब्राहम लिंकन की कहानी हमें सही रास्ता दिखाती है और श्रम की सच्ची गरिमा का अहसास कराती है।

👞 अब्राहम लिंकन: जूते बनाने वाले का बेटा, अमेरिका का राष्ट्रपति!

अब्राहम लिंकन का जन्म एक साधारण परिवार में हुआ था। उनके पिता जूते बनाने का काम करते थे। यह काम उन्होंने बड़े मनोयोग और ईमानदारी से किया। उन्हें अपने काम से प्रेम था, और वे इसे पूरी निष्ठा से करते थे।

जब लिंकन अमेरिका के राष्ट्रपति बने, तो अभिजात्य वर्ग (elite class) को यह बहुत बुरा लगा। उन्हें यह स्वीकार नहीं हुआ कि एक “मोची का बेटा” अब राष्ट्र का नेतृत्व करेगा।

🏛️ सीनेट में गूंजा अभिमान, लेकिन झुका सबका सिर!

लिंकन जब पहली बार अमेरिकी सीनेट में भाषण देने के लिए खड़े हुए, तो एक सीनेटर ने अपमानजनक स्वर में कहा:

> "मिस्टर लिंकन, याद रखो कि तुम्हारे पिता मेरे और मेरे परिवार के जूते बनाते थे।"

सारी सीनेट इस बात पर हँसी से गूंज उठी, लेकिन लिंकन ने जो जवाब दिया, उसने सबकी बोलती बंद कर दी:

> "हाँ, मुझे गर्व है कि मेरे पिता जूते बनाते थे।
सिर्फ आपके ही नहीं, बल्कि यहाँ बैठे कई सम्माननीयों के भी जूते उन्होंने बनाए होंगे।
वह अपने काम में आत्मा डालते थे, उनके बनाए जूतों में कभी शिकायत नहीं आई।
यदि किसी को उनके बनाए जूतों से शिकायत हो, तो बताइए – मैं खुद जूते बना लेता हूँ और मरम्मत भी कर सकता हूँ।
मैं अपने पिता और उनके काम दोनों पर गर्व करता हूँ।"

इस जवाब के बाद पूरा सदन स्तब्ध रह गया। यह भाषण अमेरिकी इतिहास के सबसे प्रभावशाली और शिक्षाप्रद भाषणों में से एक बन गया।

🛠️ Dignity of Labour – श्रम का गौरव

लिंकन के इस भाषण से एक नई सोच ने जन्म लिया – जिसे हम कहते हैं:
“Dignity of Labour” – श्रम का सम्मान।

इस विचार से प्रेरित होकर अमेरिका में लोगों ने अपने काम को ही अपनी पहचान बना लिया। तब से ही सरनेम के रूप में पेशों का इस्तेमाल हुआ:

Shoemaker (जूते बनाने वाला)

Carpenter (बढ़ई)

Potter (कुंभार)

Smith (लोहार)

Taylor (दर्जी)

Butcher (कसाई)

Cobbler (मोची)


और यही वह सोच है जिसने अमेरिका को आज दुनिया की सबसे बड़ी महाशक्ति बना दिया।

🇮🇳 भारत के लिए सीख: श्रम ही सम्मान है

भारत जैसे विशाल और विविधताओं वाले देश में, जहां पेशों के आधार पर आज भी सामाजिक भेदभाव की झलक दिख जाती है, वहां अब्राहम लिंकन की सोच एक आइना है।
हम अगर यह संकल्प ले लें कि चाहे कोई भी काम हो – हम उसे पूरे मन, आत्मा और ईमानदारी से करेंगे, तो हमें आत्मनिर्भर बनने से कोई नहीं रोक सकता।

> “कोई काम छोटा नहीं होता, छोटा होता है नजरिया।”

🔥 हर कार्य में छुपा है आत्मसम्मान

यदि कोई झाड़ू लगा रहा है, तो वह सफाई का देवदूत है।

अगर कोई खेत जोत रहा है, तो वह राष्ट्र का अन्नदाता है।

एक दिहाड़ी मज़दूर अपनी ईमानदारी और मेहनत से देश की नींव रखता है।

और अगर कोई बच्चा पढ़ रहा है, तो वह कल का नेता, डॉक्टर, इंजीनियर या शिक्षक बन सकता है।


इसलिए जरूरी है कि हम हर कार्य को सम्मान दें। क्योंकि सम्मान ही वह बीज है, जिससे आत्मविश्वास और राष्ट्र निर्माण का वृक्ष फलता-फूलता है।

🪔 निष्कर्ष: श्रमिक नहीं, समाज निर्माता हैं हम सब

अब्राहम लिंकन की कहानी हमें सिखाती है कि काम का स्तर नहीं, सोच का स्तर बड़ा होना चाहिए।
हम सब किसी न किसी रूप में श्रमिक हैं — और यही श्रम हमारे समाज, हमारी अर्थव्यवस्था और हमारे सपनों की नींव है।

इस श्रम दिवस पर, आइए यह संकल्प लें कि:

हम हर श्रमिक का सम्मान करेंगे।

अपने काम को ईमानदारी से करेंगे।

और कभी भी किसी भी कार्य को छोटा नहीं समझेंगे।


क्योंकि अंततः,

> “काम ही पूजा है, और श्रम ही शक्ति।” 💪🛠️



      








Thursday, 4 June 2020

कबीर- जीवन जीने का एक मार्गदर्शक ..


           कबीर जो एक नास्तिक संत थे इन्होंने अपना पूरा जीवन लोगों के भलाई में बिताया इनका जयंती आज 5 जून को प्रत्येक साल बिहार सरकार द्वारा बिहार में मनाया जाता है साथ ही साथ दूसरे राज्य में भी यह दिवस मनाया जाता है कबीर अपने जीवकोपार्जन के लिए जुलाहे का काम करते थे तथा अपने जीवन में बेहतरी के लिए और दूसरों के जीवन में बेहतरी के लिए ब्रज भाषा में दोहों  के माध्यम से अपनी बातों को रखते थे इनकी बातें दोहों  से बताई गई है जो आज भी लोग कबीर अमृतवाणी के नाम से सुनते हैं | (संत कबीर दास हिंदी साहित्य के भक्ति काल के इकलौते ऐसे कवि हैं, जो आजीवन समाज और लोगों के बीच व्याप्त आडंबरों पर कुठाराघात करते रहे। वह कर्म प्रधान समाज के पैरोकार थे और इसकी झलक उनकी रचनाओं में साफ़ झलकती है। लोक कल्याण हेतु ही मानो उनका समस्त जीवन था। कबीर को वास्तव में एक सच्चे विश्व-प्रेमी का अनुभव था। कबीर की सबसे बड़ी विशेषता उनकी प्रतिभा में अबाध गति और अदम्य प्रखरता थी। समाज में कबीर को जागरण युग का अग्रदूत कहा जाता है। ) इनका जन्म 15 वीं शताब्दी में वाराणसी में हुआ था यह प्रत्येक धर्म में छुपे हुए बुराइयों को  दोहों  के माध्यम से लोगों को बताते थे इस कारण इनका विरोध अक्सर हिंदू इस्लाम अन्य धर्मों के लोगों को मानने वाले से होते रहता था मगर कबीर कभी भी अपने पग से हटे नही कबीर का कहना था कि लोगों में जागरूकता लाना हो तो उन्हें दोहों  के माध्यम से भी  लाया जा सकता है | और वास्तविक सत्य भी है इन्होंने प्रत्येक दोहों को बहुत ही साइकोलॉजी तरीके से रखा है वैसे तो कबीर पढ़े-लिखे नहीं थे मगर  सोचते बहुत थे और उस  सोच को दोहों के माध्यम से लोगों को बताते थे | इन्हों ने अपनी सोच को  दोहों को शब्द दिया लिखा और जन-जन तक पहुंचाने का काम किया कबीर ने पूरे भारत का भ्रमण अपने जीवन में किया और समाज में हो रही बुराइयों को अंधविश्वासों ,पाखंड को बहुत ही नजदीक से देखा और उस पर कटाक्ष करते हुए विभिन्न प्रकार के ब्रजभाषा में  दोहों बहुत ही सटीक तरीके से रखा है | आज भी इनके  दोहों लोग सुनते हैं और बहुत ही कम शब्दों में चौपाई के माध्यम से वस्तुस्थिति को लोगों को अवगत कराते रहते हैं|   कबीर के मानने वाले आज पूरी दुनिया में करोड़ों की संख्या में हैं जिन्हें कबीरपंथी कहते हैं| भारत  में लगभग  96 लाख लोग कबीर पंथी हैं. इनमें मुसलमान कम और हिन्दू बड़ी संख्या में हैं. साथ ही बौद्ध और जैन समेत कई अन्य धर्मों के लोग भी. कबीरपंथी कण्ठी पहनते हैं, बीजक, रमैनी आदि ग्रन्थों के प्रति पूज्य भाव रखते हैं. गुरु को सबसे ऊपर मानते हैं. शुरू में दार्शनिक और नैतिक शिक्षा पर आधारित यह पंथ बाद में जाकर धार्मिक संप्रदाय में बदल गया| जो कबीर के विचारों को मानते हैं और उनके बताए गए पथ पर चलते हैं उन्हें कबीर पंथी कहा जाता है कबीर ने बहुत  सामाजिक बदलाव के लिए काम किया है| 15 वीं शताब्दी में हमारे देश में काफी पाखंड और अंधविश्वास का बोलबाला था उस समय कबीर ने अपने विचारों के माध्यम से अपने  दोहों के माध्यम से लोगों के मन में जागरूकता , अंधविश्वास और पाखंड से ऊपर उठने का सोच दिया एवं लोगों के बेहतर जीवन में उनका काफी योगदान रहा | वैसे तो कोई भी व्यक्ति जब समाज में कुछ नया लाता है या बदलाव करने का प्रयास करता है तो उसका विरोध होना स्वाभाविक है जो भी विद्वान या समाज सुधारक हुए हैं उन्हें विरोध का सामना तो करना ही पड़ा है मगर जिन्होंने अपने शक्ति को विचारों को पूर्ण मनसे लोक कल्याण में लगाया है तो उन्हें समाज में एक अच्छे नजरिए से सम्मान भी दिया है चाहे वह गांधीजी हो या गौतम बुद्ध या कोई और हमारे कबीर ने भी हजारों ऐसे विचार दोहों  के माध्यम से दिए हैं जिसे सुनकर हम लोग काफी कुछ सीख सकते हैं|  जीवन को कैसे जीना चाहिए तथा लोगों के प्रति कैसा नजरिया रखना चाहिए | आज कई लोग  कबीर अमृतवाणी को सुनते हैं और सीखते हैं कि जीवन जीने का तरीका क्या होना चाहिए , बेहतर जीवन के लिए किन किन बातों को ध्यान में रखना चाहिए एवं समाज को बेहतर बनाने के लिए किस प्रकार का कदम उठाना चाहिए इनके दोहों में झलकता है जब भी समय मिले तो शांत मन से इनका दोहों  यूट्यूब  के माध्यम से सुना जा सकता है और सीखा जा सकता है|  कबीर ने लोगों को बेहतरी के लिए क्या बताया इसके बारे में जानने के लिए  कबीर अमृतवाणी जरूर सुने इनका हर एक दोहों  मनोवैज्ञानिक तरीके से रचा है जिसे सुनकर मन को शक्ति और शांति मिलती है कबीर के बारे में बहुत सारे बातें हैं जानकारी के लिए गूगल या अन साइटों के माध्यम से जानकारी ले सकते हैं. इनके दोहों को कबीरपंथी लोग कबीर अमृतवाणी कहते है |
भारत में कबीर पंथ की मुख्यतः तीन शाखाएँ मानी जाती हैं। काशी (कबीरचौरा) वाली शाखा, धनौती वाली भगताही शाखा और छत्तीसगढ़ वाली शाखा। इन शाखाओं के संस्थापक क्रमशः श्रुति गोपाल साहब, भगवान गोसाईं तथा मुक्तामणि नाम साहब को माना जाता है।

मुख्य केन्द्र

        
       कबीर का कुछ दोहों जो ख्याति प्राप्त है .

     1 . मूर्त्ति पूजा को लक्ष्य करते हुए उन्होंने एक दोहा  हाजिर कर दी-                                                                                                                 पाहन पूजे हरि मिलैं, तो मैं पूजौं पहार। वाते तो चाकी भली, पीसी खाय संसार।।

    2 . दुःख में सुमिरन सब करें सुख में करै न कोय।  जो सुख में सुमिरन करे तो दुःख काहे होय॥

    3 . बडा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर।
     पंथी को छाया नहीं फल लागे अति दूर॥

   4 . साईं इतना दीजिए, जा मे कुटुम समाय।
     मैं भी भूखा न रहूं, साधु ना भूखा जाय॥

   5 . धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय।
    माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय॥


                        
                         

Saturday, 23 May 2020

📚 "झरना सरेन का गौतम शिक्षण संस्थान: जहाँ शिक्षा नहीं, संस्कार बोए जाते हैं" 🌱

गया जिले के नक्सल प्रभावित निमचकबथानी प्रखंड में स्थित झरना सरेन गांव का एक छोटा-सा लेकिन अत्यंत प्रभावशाली संस्थान है — गौतम शिक्षण संस्थान। यह कोई आम स्कूल नहीं, बल्कि एक अनोखा सामाजिक प्रयोग है, जो शिक्षा के साथ-साथ समाज में एकता, समानता और सद्भाव का अलख जगा रहा है।

नक्सल प्रभावित इलाकों में जहां असुरक्षा, बेरोजगारी और सामाजिक भेदभाव जैसी समस्याएं आम होती हैं, वहीं यह संस्थान उम्मीद की एक रौशनी बनकर उभरा है। शिक्षा को केवल किताबों तक सीमित न रखकर, इसे व्यवहारिक जीवन और सामूहिक सोच से जोड़ा गया है, जो इसे बाकी शैक्षणिक संस्थानों से अलग बनाता है।

🎓 शिक्षा की नई परिभाषा

यहाँ बच्चों को सिर्फ हिंदी, गणित या विज्ञान नहीं सिखाया जाता — उन्हें संवेदना, समानता और अनुशासन की शिक्षा दी जाती है। शिक्षक केवल शिक्षक नहीं, बल्कि मार्गदर्शक, संरक्षक और कभी-कभी मित्र भी होते हैं।

यह संस्थान न केवल ज्ञान देता है, बल्कि बच्चों के व्यक्तित्व को गढ़ता है — ऐसा व्यक्तित्व जो समाज को जोड़ने का कार्य करे, न कि तोड़ने का।

👕 एकरूपता में छिपा संदेश

गौतम शिक्षण संस्थान की सबसे बड़ी खासियत है — वहाँ पढ़ने वाले सभी बच्चों की वेशभूषा, लिखावट और लंबाई में अद्भुत समानता।

सभी छात्र समान रंग और शैली की वर्दी पहनते हैं, जिससे आर्थिक स्थिति का कोई भेद नजर नहीं आता।

बच्चों की लिखावट तक एक जैसी हो, इसके लिए विशेष अभ्यास और निरंतर मार्गदर्शन दिया जाता है।

लंबाई को लेकर बच्चों को समान पोषण, व्यायाम और जीवनशैली की प्रेरणा दी जाती है ताकि वे शारीरिक रूप से भी समान और स्वस्थ बनें।

यह सब केवल दिखावे के लिए नहीं, बल्कि यह दर्शाता है कि जब समाज में सभी को समान अवसर और दिशा दी जाती है, तो भिन्नताएँ स्वतः समाप्त हो जाती हैं।

🕊️ सामाजिक सद्भाव का संदेश

गौतम शिक्षण संस्थान जाति, धर्म, वर्ग और लिंग के भेदभाव से ऊपर उठकर काम करता है। यहां हर बच्चा सिर्फ एक "छात्र" है — न कोई ऊँचा, न नीचा।

छात्रों के बीच भोजन, खेल, अध्ययन और सांस्कृतिक कार्यक्रम सभी मिलकर होते हैं। यह उन्हें बचपन से ही सिखाता है कि साथ रहना ही असली ताकत है।

🪔 एक प्रेरणा पूरे देश के लिए

आज जब शिक्षा को व्यापार बना दिया गया है, तब गौतम शिक्षण संस्थान एक मिशन की तरह खड़ा है। यह न केवल शिक्षा देता है, बल्कि एक बेहतर समाज की नींव भी रखता है।

झरना सरेन जैसे सुदूर गाँव से निकली यह लौ पूरे देश के लिए एक मिसाल बन सकती है — कि अगर इरादे नेक हों और सोच सामूहिक हो, तो बदलाव लाना बिल्कुल संभव है।

गौतम शिक्षण संस्थान की यह अनूठी पहल हमें बताती है कि शिक्षा केवल किताबी ज्ञान नहीं, बल्कि समाज को गढ़ने की एक कला है।
और इस कला को गढ़ रहे हैं झरना सरेन के वे बच्चे, जो कल को समाज का चेहरा बदल सकते हैं। 🌟


Thursday, 7 May 2020

दो महान व्यक्तित्वों की जयंती: बुद्ध पूर्णिमा..

      आज हम दो ऐसे महान व्यक्तित्वों को याद करते हैं जिन्होंने मानवता के लिए एक नया रास्ता दिखाया। महात्मा बुद्ध और रवींद्र नाथ टैगोर, दोनों ने ही अपने विचारों और कृतियों से लाखों लोगों के जीवन को प्रभावित किया।

बुद्ध पूर्णिमा, वैशाख मास की पूर्णिमा को मनाई जाने वाली यह तिथि, बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसी दिन गौतम बुद्ध का जन्म, ज्ञान प्राप्ति और महापरिनिर्वाण हुआ था। बुद्ध ने अपने जीवन में कई समस्याओं को देखा और लोगों के दुखों को दूर करने का उपाय खोजा। उन्होंने घर-बार छोड़कर ज्ञान की तलाश में निकले और अंततः बोधगया में पीपल के वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त किया।

बौद्ध धर्म का प्रसार और इसका महत्व

बुद्ध के उपदेशों ने दुनिया भर में लाखों लोगों को प्रभावित किया और बौद्ध धर्म का जन्म हुआ। बौद्ध धर्म का अष्टांगिक मार्ग, जो जीवन जीने का एक तरीका है, आज भी प्रासंगिक है। यह मार्ग हमें दुखों से मुक्ति और आत्मज्ञान प्राप्त करने का रास्ता दिखाता है।

बोधगया: बौद्ध धर्म का केंद्र

बोधगया, जहां बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ था, आज भी बौद्धों के लिए एक पवित्र स्थल है। यहां हर साल लाखों लोग बुद्ध को श्रद्धांजलि देने आते हैं। दुर्भाग्यवश, बोधगया के आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों में लोग बौद्ध धर्म के बारे में ज्यादा नहीं जानते हैं। यह एक चिंताजनक स्थिति है क्योंकि यह वह जगह है जहां से बौद्ध धर्म का उदय हुआ था।

बौद्ध धर्म का आज का महत्व

आज की दुनिया में, जहां हिंसा और अशांति व्याप्त है, वहां बौद्ध धर्म के शांति और करुणा के संदेश और भी अधिक प्रासंगिक हो गए हैं। बौद्ध धर्म हमें यह सिखाता है कि हम सभी एक हैं और हमें एक-दूसरे के प्रति करुणा और सहानुभूति रखनी चाहिए।

बुद्ध के अनमोल वचन

  • हम जो कुछ भी हैं वो हमने आज तक क्या सोचा इस बात का परिणाम है.
  • हजारों खोखले शब्दों से अच्छा वह एक शब्द है जो शांति लाये.
  • अतीत पे ध्यान मत दो, भविष्य के बारे में मत सोचो, अपने मन को वर्तमान क्षण पे केन्द्रित करो.

निष्कर्ष

महात्मा बुद्ध एक ऐसे महान व्यक्ति थे जिन्होंने मानवता को एक नया रास्ता दिखाया। उनके उपदेश आज भी प्रासंगिक हैं और हमें जीवन जीने का एक नया नजरिया देते हैं। आइए, हम सभी बुद्ध के उपदेशों को अपने जीवन में उतारने का प्रयास करें और एक शांतिपूर्ण और खुशहाल दुनिया का निर्माण करें।




            
           
  


  



MAHABODHI MANDIR BODHGAYA 18TH CENTURY







                                   






      

Monday, 4 May 2020

🕉️ "श्मशान: जहाँ जीवन का अंत नहीं, शुरुआत होती है" 🔥

जब भी हम "श्मशान" शब्द सुनते हैं, मन में एक भय, अजीब-सी चुप्पी और मौत की कल्पना उभरती है। अधिकतर लोग श्मशान का नाम सुनते ही दूर भागते हैं, उसे अपशकुन मानते हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि श्मशान सिर्फ मुर्दों को जलाने का स्थान नहीं, बल्कि वह जगह है जहाँ जीवन के सबसे बड़े रहस्य खुलते हैं?

श्मशान वह जगह है जहाँ हर व्यक्ति समान होता है — न कोई राजा, न रंक। न कोई अमीर, न गरीब। यहाँ आकर संसार की सारी मोह-माया, पहचान, पद, पैसा — सब बेकार लगने लगते हैं। यही वह स्थल है, जहाँ इंसान खुद को सबसे ज़्यादा समझ पाता है।

🔱 श्मशान: एक रहस्यमय विश्वविद्यालय

श्मशान किसी विद्यालय से कम नहीं, बल्कि यह एक "मौन विश्वविद्यालय" है जहाँ शब्द नहीं, बल्कि मौन और दृष्टि सिखाते हैं।

यहाँ आकर व्यक्ति को जीवन का असली उद्देश्य समझ में आता है।

काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार जैसे विकार धीरे-धीरे विलीन होने लगते हैं।

जब आप किसी प्रियजन को खोकर श्मशान जाते हैं, तभी जीवन की नश्वरता आपको भीतर तक हिला देती है।

श्मशान कहता है — जो आया है, वो जाएगा। फिर इतना अहंकार किस बात का?

🧘‍♂️ एकाग्रता और साधना का सर्वोच्च स्थल

कहा जाता है कि भगवान शिव स्वयं श्मशानवासी हैं, क्योंकि उन्हें भ्रम, झूठ और माया से कोई लेना-देना नहीं। श्मशान वह जगह है जहाँ इंसान सबसे कम भ्रम में होता है।

सच्चे साधु और अघोरी यहीं साधना करते हैं, क्योंकि यहाँ मन भटकता नहीं।

श्मशान की ऊर्जा गहन और गूढ़ होती है, जो साधक को साधना की गहराइयों तक पहुंचाती है।

यहाँ कोई दिखावा नहीं होता, बस सच्चाई का सामना होता है।

📖 गीता और श्मशान — दो महान गुरु

लोगों में यह धारणा है कि जो श्रीमद्भागवत गीता पढ़ता है या श्मशान जाता है, वह दुनिया से विरक्त हो जाता है। पर सच्चाई यह है कि:

गीता और श्मशान दोनों इंसान को जीवन की सच्चाई सिखाते हैं, जिससे वह जीवन को और भी बेहतर, सच्चे और ईमानदार तरीके से जी सके।

ये दोनों व्यक्ति को गलत कार्यों से रोकते हैं, संयम सिखाते हैं और आत्मा की पहचान कराते हैं।

🌊 नदी किनारे क्यों होते हैं श्मशान घाट?

भारत में अधिकतर श्मशान घाट नदी के किनारे बनाए जाते हैं, क्योंकि पानी को पवित्रता का प्रतीक माना जाता है।

नदी शरीर के अंतिम संस्कार के बाद शुद्धि का माध्यम बनती है।

यह प्रतीक है कि जीवन बहता रहता है — जैसे नदी, वैसे ही जीवन।

🙏 निष्कर्ष: श्मशान डराने वाला नहीं, सिखाने वाला स्थान है

> "श्मशान वह स्थान है जहाँ शरीर जलता है, पर आत्मा जागती है।
जहाँ मौन बोलता है, और अहंकार चुप हो जाता है।"

श्मशान से बड़ा कोई शिक्षक नहीं। यह हमें बताता है कि हम जो समझते हैं वो स्थायी है, वह क्षणिक है। इसलिए जीवन को मोह-माया में उलझाकर न जिएं, बल्कि सच्चाई, ईमानदारी और करुणा के साथ जिएं।

श्मशान जीवन का अंत नहीं, एक नया आरंभ है।
शिव, काली और भैरव के प्रिय इस स्थान को अपशकुन नहीं, एक पवित्र और ज्ञान का केंद्र समझिए।











          पशुपति नाथ का समसान ,नेपाल 

Tuesday, 28 April 2020

मुजफ्फरपुर का मन: एक सपने की ओर बढ़ता तालाब..


मुजफ्फरपुर शहर के बीचों-बीच स्थित सिकंदरपुर मन तालाब, न केवल शहर का सबसे बड़ा तालाब है बल्कि एक प्राकृतिक संसाधन भी है जिसकी अनदेखी नहीं की जा सकती। यह तालाब सदियों से शहरवासियों के लिए आकर्षण का केंद्र रहा है। लेकिन समय के साथ इस तालाब की हालत बिगड़ती गई है। प्रदूषण और उपेक्षा ने इस प्राकृतिक सौंदर्य को धूमिल कर दिया है।

एक सपना देखना

लेकिन क्या होगा अगर हम इस तालाब को फिर से उसके पुराने स्वरूप में ला सकें? क्या होगा अगर हम इसे मुजफ्फरपुर शहर का एक प्रमुख पर्यटन स्थल बना सकें? यह एक ऐसा सपना है जो कई लोगों के मन में है। यह सपना मुजफ्फरपुर को एक स्मार्ट सिटी बनाने के लक्ष्य के अनुरूप भी है।

एक व्यापक योजना

इस तालाब के कायाकल्प के लिए एक व्यापक योजना की आवश्यकता है। इस योजना में निम्नलिखित बातों पर ध्यान दिया जाना चाहिए:

  • जल जीवन हरियाली मिशन: तालाब की सफाई और वृक्षारोपण के लिए इस मिशन का लाभ उठाया जा सकता है।
  • सौंदर्यीकरण: तालाब के चारों ओर पैदल पथ का निर्माण, रेस्टोरेंट खोलना और रोशनी की व्यवस्था करना तालाब को और आकर्षक बना सकता है।
  • पीपीपी मॉडल: इस मॉडल के तहत निजी क्षेत्र को तालाब के विकास में शामिल किया जा सकता है।
  • पर्यटन स्थल: तालाब में नौकायान और तैराकी की सुविधाएं उपलब्ध कराकर इसे एक पर्यटन स्थल बनाया जा सकता है।
  • मछली पालन: उच्च गुणवत्ता वाली मछली पालन को बढ़ावा देकर स्थानीय लोगों को रोजगार के अवसर प्रदान किए जा सकते हैं।
  • शुल्क व्यवस्था: तालाब में प्रवेश के लिए एक मामूली शुल्क लगाकर तालाब की सुरक्षा और रखरखाव सुनिश्चित किया जा सकता है।
  • पार्किंग व्यवस्था: तालाब के आसपास पार्किंग की सुविधा उपलब्ध कराकर लोगों को आने-जाने में सुविधा प्रदान की जा सकती है।
  • जागरूकता अभियान: लोगों को तालाब की स्वच्छता बनाए रखने के लिए जागरूक किया जाना चाहिए।

एक नया अध्याय

यह तालाब मुजफ्फरपुर शहर के लिए एक नया अध्याय लिख सकता है। यह शहर के लोगों को एक स्वच्छ और हरा-भरा वातावरण प्रदान कर सकता है। यह शहर के पर्यटन को बढ़ावा दे सकता है और स्थानीय अर्थव्यवस्था को मजबूत कर सकता है।

आपका विचार क्या है?

यह मेरा व्यक्तिगत विचार है। मैं जानना चाहूंगा कि इस तालाब के बारे में आपका क्या विचार है। आप इस तालाब के विकास के लिए और क्या सुझाव दे सकते हैं? कृपया अपने विचार कमेंट में लिखें।





















दिनांक 13 मई को मंत्री जी द्वारा सिकंदरपुर मन के  विकाश पर निर्णय हुआ .



Tuesday, 21 April 2020

पुरातन जीवन पद्धति का स्मरण कराता - COVID-19 कोरोना वायरस


       हमारे दादा-दादी के जमाने (2010 के पहले ) में हम जल्दी सोते थे और जल्दी ही उठा दिये जाते थे। उठने के बाद जल्दी ही नित्यकर्म से निपटने के लिए डाँट पड़ती थी। आश्चर्य इस बात का था कि हमने माँ को नहाकर स्नानागार से निकलते हुए कभी नहीं देखा। हाँ! बाथरूम तो उस जमाने में कम ही हुआ करते थे। सामान्यतः ग्रामीण क्षेत्रों में तो महिलाओं की मजबूरी भी थी कि वे जल्दी उठकर प्रकाश होने से पूर्व ही अपनी नैत्यिक क्रियाओं से निपट लें। प्रकाश हो जाने के बाद वे कहाँ और कैसे जातीं ?
          खुले में शौचादि के लिए जाते समय सामाजिक दूरी का पालन अपने आप ही हो जाया करता था। साफ-सफाई की आदत भी तो विरासत में ही विकसित हो जाती थी। प्रातःकाल जलाहार के बाद निवृत्त होने जाना। पूरी साफ-सफाई, लघुशंका और शौच के बाद ही नहीं बाहर से आने के बाद हाथ-मुँह धुलने की परंपरा को स्मरण करें। कई परिवारों में तो बाहर से आने के बाद स्नान की ही व्यवस्था थी। स्नान से पूर्व कुछ खाने को मिल जाय, यह दादा और दादी की नजरों में कैसे संभव था?
           भोजन से पूर्व हाथ-पैर धोकर भूमि पर आसन लगाकर बैठे बिना थाली कैसे मिल सकती थी? भोजन करते समय बोलना नहीं है। इस नियम का पालन भी काफी लोग करते थे। अन्न देवता का सेवन करना भी तो आराधना ही थी। एक ग्रास ले लेने मात्र से थाली झूठी मान ली जाती थी। दाँत से कटी हुई वस्तु किसी को न देना, भोजन के समय परिवार के एक सदस्य को परोसने के कार्य में ही लगना, उपवास के दौरान साफ-सफाई के ही नहीं पवित्रता के भी अतिरिक्त मानकों का पालन करने की मजबूरी आज सब परंपराएँ दकियानूसी कही जाने लगी हैं। इन्हें छोड़कर आज हम पाश्चात्य संस्कृति के नाम पर विकृत आदतों के शिकार होने लगे हैं क्योंकि पाश्चात्य संस्कृति को भी उसके मूल रूप में तो हम अपना नहीं सकते। उसका केवल बाहरी दिखावा भर हमें आकर्षित करता है। उस विकृत पाश्चात्य संस्कृति के दुष्परिणामों को आज हम कोरोना वायरस के प्रभाव में महसूस कर पा रहे हैं।
           कोरोना वायरस फैलने से हमें जो बार-बार साबुन से हाथ धोने की हिदायतें दी जा रही हैं। वे पहले से ही हमारी जीवन शैली का भाग थीं। कोरोना वायरस के कारण हमें घर में मिली कैद कुछ सभ्य ढंग से कहें तो एकान्तवास ने हमें आत्मचिंतन का अवसर देकर भूले विसरे पन्नों को हमारे सामने रख दिया है। इन पन्नों से ये अहसास हुआ है कि हमने कहाँ गलती कर दी! क्या हम अपने पूर्वजों की अपेक्षा अधिक शिक्षित हो गये हैं। हमारे पास डिग्रियाँ भले ही कुछ अधिक हों किंतु एक छोटे से वायरस ने हमें यह अहसास करा दिया है कि प्राचीन साफ-सफाई और पवित्रता की जीवन शैली ही उचित थी। हम विज्ञान के विकास के नाम पर कितना भी भौतिक विकास कर लिए हों किंतु विश्व में विकसित देशों में गिना जाने वाला अमेरिका अपने नागरिकों की जान की रक्षा नहीं कर पा रहा है। हम लोगों में अभी भी अपने पूर्वजों का प्रभाव है जिसके कारण कुछ लोगों के द्वारा मूर्खतापूर्ण ढंग से स्वयं और समाज की जान जोखिम में डालने के बावजूद हमाने यहाँ कोरोना वायरस अभी भी सीमित है। हाँ! कब तक सीमित रहेगा? यह कहना मुश्किल है क्योंकि हमारा दुर्भाग्य है कि कुछ तथाकथित धर्मांध लोग इस वायरस के प्रसार को भी हिंदू-मूस्लिम के चश्मे से देखने का प्रयत्न कर रहे हैं।
           जबकि वास्तविकता यह है कि हमें कोरोना नाम के इस वायरस से डरने की बिल्कुल की आवश्यकता नहीं है। हम अपनी प्राचीन जीवन शैली की साफ-सफाई की आदतों को पुनः अपनाकर पवित्रता की अपनी धारणा को पुनः आत्मसात करके न केवल इस पर नियंत्रण कर सकते हैं वरन अपनी स्वस्थ्य आदतो के बल पर हमारी प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि करके इस कोरोना वायरस को मात देने की क्षमता विकसित कर सकते हैं। अतः आओ हम अपनी प्राचीन जीवन शैली के पन्नों को पुनः निकालकर अपनी जीवन शैली में शामिल करें। प्रयावरण और सभी जीवो का रक्षा करे ,हिन्दू धर्म के बारे अध्यन करे |












                                                                 

Friday, 17 April 2020

मन क्या है और यह किस तरह कार्य करता है ?

      मन एक ऐसा शब्द है जिससे प्रत्येक व्यक्ति परिचित है । मनुष्य का मन ही समस्त शक्तियों का स्त्रोत होता है मन की दो शक्तियॉ होती है, एक कल्पना शक्ति तथा दुसरी इच्छा शक्ति। मन की कल्पना शक्ति के बढ़ने पर व्यक्ति कवि, वैज्ञानिक,अनुसंधान कर्ता,चित्रकार,साहित्यकार बनता है अपनी कल्पना शक्ति का विकास लोगो को अच्छी कवितायें,अच्छा साहित्य.अच्छे चित्र तथा वैज्ञानिक खोजों से मनष्य को सुखी सम्पन्न बनाता है तथा मनोरंजन कर व्यक्ति के जीवन में खुशियों की बहार ले आता है।
जब व्यक्ति की इच्छा शक्ति का विकास होता है तो इस मन से व्यक्ति प्रत्येक कार्य को करने में सक्षम हो जाता है वह चाहे तो अमीर बन सकता है वह चाहे तो स्वयं स्वस्थ रह सकता है तथा ओरो को भी स्वस्थ रख सकता है वह चाहे तो परमात्मा का भी अनुभव कर सकता है। आध्यात्मिक उन्नति के लिए भी आवश्यक है कि व्यक्ति मन को वश में करे।
यदि आप मानसिक शांति को प्राप्त करना चाहते है तो यह आवश्यक है कि हम मन को वश में करे। हमारे सारे दुख तथा कष्टों का कारण भी है मन पर उचित नियंत्रण न होना। मन हमारा मालिक बन बैठा है तथा हमें यह नचा रहा है जबकि वास्तव में हम मन के मालिक है। हमें चंचल मन की चंचलता को कंट्रोल कर उसे केंद्रित करना होगा तभी हमारे जीवन के दुखो का अन्त होगा।
मन की एकाग्रता हमें एक दुसरे से भिन्न बनाती है तथा कार्य करने की क्षमता में अंतर ला देती है जिससे कोई व्यक्ति जीवन में सफलता प्राप्त करता है जबकि कोई असफल व्यक्ति की श्रेणी में आ जाता है। यदि मन को केंद्रित कर ले तो व्यक्ति का व्यक्तित्व पुरा बदल जायेगा तथा मानसिक शांति प्राप्त होगी। तथा व्यक्ति एकाग्र मन से जो भी कार्य करेगा उसमें सफलता प्राप्त होगी।
मन हमारे भीतर की शक्ति है जो इन्द्रियो एवं मस्तिष्क के द्वारा देखता है,सुनता है,सुघता है,स्वाद लेता है तथा स्पर्श की अनुभुति करता है। मन ही शरीर को सुख-दुख का अनुभव कराता है। व्यक्ति जब बेहोशी की अवस्था में होता है तब मन का संपर्क शरीर से टुट जाता है इस कारण बेहोशी में ऑपरेशन करने पर दर्द महसुस नहीं होता।
कई लोग मस्तिष्क को ही मन समझ लेते है वह गलत है मस्तिष्क एक कम्पयूटर की तरह का उपकरण है जिसके द्वारा मन शरीर पर नियंत्रण रखता है। अर्थात मस्तिष्क शरीर व मन को जोड़ने का कार्य करता है। शरीर पॉच तत्वों से बना हुआ निर्जीव पुतला है उसी प्रकार मस्तिष्क भी निर्जीव है परन्तु इस शरीर में जब मन या आत्मा प्रवेश करती है तो शरीर व मस्तिष्क जीवित हो उठते है तथा व्यक्ति को सोचने,महसुस करने,कल्पना करने,तर्क करने इत्यादि कार्य सम्पन्न होते है। मन,चेतना या आत्मा को अमर कहा गया है उसे कोई भी नष्ट नहीं कर सकता इसी को ही शब्द भी कहा गया है जब कोई भी नहीं था तब भी यह था आज भी ये है तथा कोई भी नहीं रहेगा तब भी ये रहेगा। जब बालक जन्म लेता है उसका मन निश्चल होता है परन्तु जैसे-जैसे वह बड़ा होने लगता है मन के ऊपर धूल जमा होने लगती है तथा यदि हमें पहले की तरह निश्चल मन को प्राप्त करना है तो मन पर जमीं धूल को साफ करना होगा। यदि किसी नदी,गड्डें की तली में देखना तभी संभव है जब पानी की लहरे स्थिर हो जाय। जब पानी की लहरे स्थिर हो जाती है तथा गंदगी तली में बैठ जाती है हमें उसकी तली में पड़े कंकड़ भी दिखाई देने लगते है इसी प्रकार जब मन में विचारों की लहरे स्थिर हो जाता है तथा मन निर्विकारी हो जाता है तब हमें अन्दर का सत्य उद्घाटित हो जाता है तथा हमें ज्ञान प्राप्त हो जाता है।








                                          

व्यवहार कुशलता क्या है ?


       ➽  सचमुच व्यवहार मनुष्य का वह अस्त्र है, जो पग-पग पर उसकी रक्षा करता है। मनुष्य की व्यवहार कुशलता ही दूसरे मनुष्य के हृदय पर कोई छाप छोड़ सकती है, जिसकी वजह से दूसरा व्यक्ति उसकी तरफ आकर्षित होता है। जिस प्रकार जब फुलवारी में गुलाब का फूल खिलता है, वह स्वयं कभी अपना बखान नहीं करता, बल्कि उसकी सुंदरता और उसकी महक उसका परिचय खुद-ब-खुद दे देती है। इसी प्रकार व्यवहार कुशल व्यक्ति की व्यवहार कुशलता ही उसका पूरा परिचय देती है। उसे अपने मुंह मियां मिठु बनने की जरूरत नहीं पड़ती। मुझको लगता है, इस महान ज्ञान के पथ पर बढ़ते हुए कोई व्यक्ति जब इस ज्ञान के व्यावहारिक पक्ष के प्रति जागरूक होता है, तब स्वत: ही उसके अंदर उस सुंदर ज्ञान की सुंदरता अपनी पूरी गुणवत्ता सहित प्रवाहित होने लगती है जो उसके हाव-भाव और आचार-विचार के माध्यम से परिलक्षित होने लगती है।
जब ज्ञान का सौंदर्य साधक के व्यावहारिक जीवन में उतरने लगता है, तो उसमें आया बदलाव, उसका प्रसन्न मुख-मंडल और उसकी यह व्यवहार कुशलता स्वत: ही उस अंदर ज्ञान का वास्तविक परिचय प्रदान कर देते हैं। उस व्यक्ति विशेष का यही परिचय दूसरों को भी प्रभावित कर सकता है।
इस संदर्भ में एक बात महत्वपूर्ण यह है कि इस व्यावहारिक पक्ष में साधक का दिन-प्रतिदिन उत्तरोत्तर उन्नति करना आवश्यक है। क्योंकि ज्ञान लेने से पूर्व यदि हमारे आचरण में परिवर्तन नहीं आता तो किस प्रकार पता चल सकता है कि ज्ञान की गुणवत्ता हमारे जीवन में उतर रही है या नहीं? यही ज्ञान हमारे हृदय में बदलाव लाकर हमें व्यावहारिक बना सकता है।
होता अक्सर यह है कि जब कभी हमने ईमानदारी से इस ज्ञान रूपी दर्पण में झांका है, तब सदा अपनी कमियों को ही हमने अपने जीवन में महसूस किया है। स्पष्टï है उन कमियों का आभास हममें इसीलिए उजागर होता है ताकि उनको दूर करने की हमारे द्वारा कोशिश की जा सके। जब उस तरफ हम थोड़ा सा भी प्रयास करते हैं तो हमें उस महान कृपा का अनुभव होता है, तब लगता है कि यह असंभव कार्य उनकी कृपा से संभव हो सकता है। धीरे-धीरे प्रयास करते हुए जब हम जीवनपथ पर अग्रसर होते हैं, तब स्वत: ही हमारे अंदर विलक्षण परिवर्तन होते नजर आते हैं, जो इस महान ज्ञान का प्रभाव है। जब यह ज्ञान व्यावहारिक रूप से प्रयोग में आता है, तब ज्ञान की खुशबू बिखेरने लगती है। इसी से लगता है कि ज्ञान व व्यावहारिक आचरण का घनिष्ठï संबंध है। सचमुच व्यवहार कुशलता ही वह गहना है जो हमारे जीवन को सुंदरतम बनाये रखता है।
आपके पास ज्ञान का अकूत भंडार हो सकता है, आप में आत्मविश्वास कूट-कूट कर भरा है, आप आत्मबल एवं संकल्प शक्ति से सराबोर हैं, लेकिन यदि आप में व्यवहार कुशलता नहीं है, तो आपकी राह में अड़चनों का अंबार लग जाएगा। ऐसे में आपकी अधिकांश ऊर्जा उन अड़चनों को दूर करने में ही व्यर्थ हो जाएगी। व्यवहार कुशलता द्वारा ही हम अपने साथ रहने वाले संगी-साथियों को अपने साथ कदम से कदम मिलाकर चलने के लिए प्रेरित कर सकते हैं। कहा भी गया है कि अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता। आपको जीवन में सफल होने के लिए अपने संगी-साथियों, भाई-बंधु, शुभचिंतकों, गुरुजनों आदि की कहीं न कहीं, किसी न किसी रूप में थोडी बहुत जरूरत पड़ती ही है।
व्यवहार कुशलता से आप अनजान व्यक्तियों को भी आत्मीय बनाकर अपने साथ चलने के लिए तैयार कर सकते हैं। इसके माध्यम से आप न केवल अकेली शक्ति को सामूहिक शक्ति में बदल सकते हैं, बल्कि अपनी सफलता का मार्ग प्रशस्त करते हुए ऐसी बुलंदियों को भी फतह कर सकते हैं, जिसकी आपने कभी कल्पना भी नहीं की होगी। नकारात्मक दृष्टिकोण से किए गए कार्य जहां हमारे लिए पतन का द्वार बनते हैं, वहीं व्यवहार कुशलता एवं सकारात्मक दृष्टिकोण हमारे लिए किसी वरदान से कम नहीं होते।
आज के परिवेश में जीवन लगातार जटिल होता जा रहा है। अनेक लोगों के बीच काम करते हुए भी व्यक्ति खुद को अकेला महसूस करता है। इस दौर में मनुष्य काफी महत्वाकांक्षी हो गया है, जो आसानी से संतुष्ट नहीं होता है। इस तरह परिवर्तित होती परिस्थितियों में व्यक्तिगत कुशलता की भूमिका बहुत ही महत्वपूर्ण हो जाती है।
व्यक्ति में न केवल भौतिक उपलब्धियों के लिए, बल्कि अपने जीवन के अन्य लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए भी कार्य को सबसे बढ़िया, सुलभ एवं शीघ्रता के साथ करने के तरीकों का ज्ञान व अभ्यास का होना, व्यक्तित्व की कुशलता कहलाती है। आप समय तथा बुद्धि का प्रयोग इस प्रकार करें कि अपने जीवन के प्रत्येक महत्वपूर्ण क्षेत्र में अपनी परिपूर्णता एवं अद्वितीय गुणों के कारण प्रतिष्ठित रहें। व्यक्तिगत कुशलता का तात्पर्य चारित्रिक विकास से भी है। किसी भी व्यक्ति की चारित्रिक विशेषताएं उसकी सर्वोत्तम धन हैं, जो उसे श्रेष्ठ से श्रेष्ठ पद पर ले जाती है। चरित्र के बल पर ही व्यक्ति समाज में आदर व सम्मान पाता है। यह धन से भी शक्तिशाली तत्व है। व्यवहार कुशलता के कारण मानव अपने जीवन में विजय और सौभाग्य का अधिकारी बनता है। मेल-जोल और व्यवहार कुशलता ऐसे गुण हैं जो आपको समाज में लोकप्रिय बनाते हैं। फलस्वरूप आपकी प्रगति एवं सफलता की संभावनाओं में गुणात्मक वृद्धि हो जाती है। आपकी सफलता काफी हद तक इस बात पर निर्भर करती है कि आपका व्यवहार दूसरों के प्रति कैसा है। जैसा व्यवहार आप अपने लिए चाहते हैं, दूसरों के साथ भी आप वैसा ही व्यवहार करें। हम दूसरों को सम्मान और सत्कार देकर ही अपने लिए आदर एवं सम्मान अर्जित कर सकते हैं।
हंसमुख एवं जिंदादिल व्यक्ति सभी के बीच लोकप्रिय होते हैं। अपने व्यवहार में विनम्रता को शामिल करके आप भी दूसरों के दिलों पर राज कर सकते हैं। अतः अपनी कमजोरियों एवं गुणों को पहचानिए और साथ ही अपने व्यक्तित्व के सकारात्मक पहलुओं को और मजबूत करने की कोशिश कीजिए। अपने मन में इस बात को बैठा लें कि जीवन में शारीरिक सौंदर्य ही सब कुछ नहीं है। स्वस्थ व सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाकर आप अपने जीवन में सफलता तथा लोकप्रियता, दोनों हासिल कर सकते हैं।
अगर आप भी जीवन में सफलता और लोकप्रियता अर्जित करना चाहते हैं, तो आपको अपने व्यक्तित्व में दूसरों के साथ अच्छे व्यवहार करने का गुण विकसित करना होगा। इस प्रकार आप व्यवहार कुशल बनकर जीवन में सफलता के सोपान चढ़ सकते हैं।