Sunday, 21 June 2020

शारीरिक एवं मानसिक रूप से स्वस्थ रहने के लिए अंतरराष्ट्रीय योगा दिवस 21 जून ..

         21 जून को पूरे विश्व में अंतरराष्ट्रीय योगा दिवस के रूप में मनाया जाता है इस दिन पूरे धरती के मानव जाति के लोग सुबह उठकर योगा कर अपने तन और मन का व्यायाम करते हैं योगा एक ऐसा जीवन जीने की  तरीका है जिससे कि हमारा शारीरिक एवं मानसिक स्थितियों को बेहतर बनाता है योगा प्रत्येक दिन करने  चीज है ना कि सिर्फ  योग दिवस पर इसे हर एक व्यक्ति को जीवन का एक हिस्सा बनाना चाहिए !योगा करने से हमारा शारीरिक एवं मानसिक बल मजबूत होता है तथा सकारात्मक दृष्टिकोण प्रदान करता है योगासन भारत का ही देन है इसके अविष्कारक महर्षि पतंजलि को माना जाता है आज के दिन योगासन भी एक बहुत बड़ा व्यवसाय का रूप ले लिया गया है योगासन करने के तरीका के लिए विभिन्न प्रकार की संस्थाएं एवं लोग आज इसे एक व्यवसाय का रूप दे चुके हैं जहां पर लोग हजारों लाखों रुपए खर्च करते हैं योगासन को पूरे विश्व में प्रसिद्धि दिलाने में आज के समय में स्वामी रामदेव जी का बहुत बड़ा योगदान रहा है साथ साथ योगासन को प्रसिद्धि दिलाने में हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी का भी बहुत बड़ा योगदान रहा है इनके मेहनत के द्वारा ही आज के दिन अंतरराष्ट्रीय योगा दिवस मनाया जा रहा है आज के दिन हर एक व्यक्ति को यह शपथ लेना चाहिए कि मैं और मेरा पूरा परिवार प्रत्येक दिन सुबह उठकर नित्य कर्म करके 10 मिनट से 20 मिनट तक पूरे परिवार के साथ योगा करेंगे! मैं वर्ष 2001 से योगा कर रहा हूं मुझे योगा करने की प्रेरणा बराबर की पहाड़ियों में रह रहे मोनी बाबा से मिला वे 30 वर्षों से किसी से मौखिक रूप से बात नहीं की है वह सिर्फ इशारों में और लिख करके अपनी बातों को अपने विचारों को लोगों तक पहुंचाते हैं और बताते हैं वे पिछले 30 सालों में कभी भी किसी चिकित्सक के पास नहीं गए जब मैं बराबर की पहाड़ियों में जाता रहता था तो उनसे मुलाकात होता था और उनसे योगा सीखने का मौका मुझे मिला。
 🧘🏻‍♂️ योग करने से आप को मिलने वाले लाभ👇

✅ रोग प्रतिकारक शक्ति बढ़ेगी
✅ सही और गलत ज्ञान की परख होने से तनाव से मुक्ति मिल जाएगी
✅ शरीर में ऊर्जा का संचार होगा
✅ अतिरिक्त Fats कम होता है
✅ निरंतर योग और आहार नियम का पालन करने से जितनी भी दवाइयां है कम से कम समय में बंद हो सकती है
✅ शरीर एकदम हलका महसूस होगा, शरीर मे रोग ना होने की वजह से मन हमेशा प्रसन्न रहेगा
✅ चेहरे पर दिव्य तेज आएगा जो beauty products लगाने से भी नही आता
✅ हड्डिया मजबूत बनेगी
✅ शरीर मे लचीलापन आएगा
✅ पाचन संस्था मजबूत बनेगी
✅ दृढ़ता, विश्वास, संयम ऐसे कई सारे गुणो का विकास होगा.

Wednesday, 10 June 2020

कोई भी काम जो मानव ,प्रकृति के लिए बेहतर है वह काम छोटा बड़ा नहीं होता...

        1मई को श्रम दिवस  के रूप में मनाया जाता है तो जानते है कि  कोई भी अच्छा काम जो मानव  ,प्रकृति के लिए बेहतर है  वह काम छोटा बड़ा नहीं होता,काम काम होता है। हमको हर कार्य को बराबर सम्मान देना चाहिएl अब्राहम लिंकन के पिता जूते बनाते थे, जब वह राष्ट्रपति चुने गये तो अमेरिका के अभिजात्य वर्ग को बड़ी ठेस पहुँची। सीनेट के समक्ष जब वह अपना पहला भाषण देने खड़े हुए तो एक सीनेटर ने ऊँची आवाज़ में कहा, मिस्टर लिंकन याद रखो कि तुम्हारे पिता मेरे और मेरे परिवार के जूते बनाया करते थे। इसी के साथ सीनेट भद्दे अट्टहास से गूँज उठी, लेकिन लिंकन किसी और ही मिट्टी के बने हुए थे! उन्होंने कहा कि, मुझे मालूम है कि मेरे पिता जूते बनाते थे.! सिर्फ आप के ही नहीं यहाँ बैठे कई माननीयों के जूते उन्होंने बनाये होंगे.! वह पूरे मनोयोग से जूते बनाते थे, उनके बनाये जूतों में उनकी आत्मा बसती है।अपने काम के प्रति पूर्ण समर्पण के कारण उनके बनाये जूतों में कभी कोई शिकायत नहीं आयी.! क्या आपको उनके काम से कोई शिकायत है.? उनका पुत्र होने के नाते मैं स्वयं भी जूते बना लेता हूँ और यदि आपको कोई शिकायत है तो मैं उनके बनाये जूतों की मरम्मत कर देता हूँ।मुझे अपने पिता और उनके काम पर गर्व है!
सीनेट में उनके ये तर्कवादी भाषण से सन्नाटा छा गया और इस भाषण को अमेरिकी सीनेट के इतिहास में बहुत बेहतरीन भाषण माना गया है। उसी भाषण से एक थ्योरी निकली Dignity of Labour (श्रम का महत्व) और इसका ये असर हुआ की जितने भी कामगार थे उन्होंने अपने पेशे को अपना सरनेम बना दिया जैसे कि, कोब्लर, शूमेंकर, बुचर, टेलर, स्मिथ, कारपेंटर, पॉटर आदि! अमेरिका में आज भी श्रम को महत्व दिया जाता है, इसीलिए वो दुनियाँ की सबसे बड़ी महाशक्ति है! 
        अगर हम ये संकल्प ले लें कि अपने श्रम से हम आगे बढ़ेंगे तो हमें आत्मनिर्भर बनने से कोई नहीं रोक सकता। अगर आपको बात सही लगे तो Share ज़रूर करें.   

      








Thursday, 4 June 2020

कबीर- जीवन जीने का एक मार्गदर्शक ..


           कबीर जो एक नास्तिक संत थे इन्होंने अपना पूरा जीवन लोगों के भलाई में बिताया इनका जयंती आज 5 जून को प्रत्येक साल बिहार सरकार द्वारा बिहार में मनाया जाता है साथ ही साथ दूसरे राज्य में भी यह दिवस मनाया जाता है कबीर अपने जीवकोपार्जन के लिए जुलाहे का काम करते थे तथा अपने जीवन में बेहतरी के लिए और दूसरों के जीवन में बेहतरी के लिए ब्रज भाषा में दोहों  के माध्यम से अपनी बातों को रखते थे इनकी बातें दोहों  से बताई गई है जो आज भी लोग कबीर अमृतवाणी के नाम से सुनते हैं | (संत कबीर दास हिंदी साहित्य के भक्ति काल के इकलौते ऐसे कवि हैं, जो आजीवन समाज और लोगों के बीच व्याप्त आडंबरों पर कुठाराघात करते रहे। वह कर्म प्रधान समाज के पैरोकार थे और इसकी झलक उनकी रचनाओं में साफ़ झलकती है। लोक कल्याण हेतु ही मानो उनका समस्त जीवन था। कबीर को वास्तव में एक सच्चे विश्व-प्रेमी का अनुभव था। कबीर की सबसे बड़ी विशेषता उनकी प्रतिभा में अबाध गति और अदम्य प्रखरता थी। समाज में कबीर को जागरण युग का अग्रदूत कहा जाता है। ) इनका जन्म 15 वीं शताब्दी में वाराणसी में हुआ था यह प्रत्येक धर्म में छुपे हुए बुराइयों को  दोहों  के माध्यम से लोगों को बताते थे इस कारण इनका विरोध अक्सर हिंदू इस्लाम अन्य धर्मों के लोगों को मानने वाले से होते रहता था मगर कबीर कभी भी अपने पग से हटे नही कबीर का कहना था कि लोगों में जागरूकता लाना हो तो उन्हें दोहों  के माध्यम से भी  लाया जा सकता है | और वास्तविक सत्य भी है इन्होंने प्रत्येक दोहों को बहुत ही साइकोलॉजी तरीके से रखा है वैसे तो कबीर पढ़े-लिखे नहीं थे मगर  सोचते बहुत थे और उस  सोच को दोहों के माध्यम से लोगों को बताते थे | इन्हों ने अपनी सोच को  दोहों को शब्द दिया लिखा और जन-जन तक पहुंचाने का काम किया कबीर ने पूरे भारत का भ्रमण अपने जीवन में किया और समाज में हो रही बुराइयों को अंधविश्वासों ,पाखंड को बहुत ही नजदीक से देखा और उस पर कटाक्ष करते हुए विभिन्न प्रकार के ब्रजभाषा में  दोहों बहुत ही सटीक तरीके से रखा है | आज भी इनके  दोहों लोग सुनते हैं और बहुत ही कम शब्दों में चौपाई के माध्यम से वस्तुस्थिति को लोगों को अवगत कराते रहते हैं|   कबीर के मानने वाले आज पूरी दुनिया में करोड़ों की संख्या में हैं जिन्हें कबीरपंथी कहते हैं| भारत  में लगभग  96 लाख लोग कबीर पंथी हैं. इनमें मुसलमान कम और हिन्दू बड़ी संख्या में हैं. साथ ही बौद्ध और जैन समेत कई अन्य धर्मों के लोग भी. कबीरपंथी कण्ठी पहनते हैं, बीजक, रमैनी आदि ग्रन्थों के प्रति पूज्य भाव रखते हैं. गुरु को सबसे ऊपर मानते हैं. शुरू में दार्शनिक और नैतिक शिक्षा पर आधारित यह पंथ बाद में जाकर धार्मिक संप्रदाय में बदल गया| जो कबीर के विचारों को मानते हैं और उनके बताए गए पथ पर चलते हैं उन्हें कबीर पंथी कहा जाता है कबीर ने बहुत  सामाजिक बदलाव के लिए काम किया है| 15 वीं शताब्दी में हमारे देश में काफी पाखंड और अंधविश्वास का बोलबाला था उस समय कबीर ने अपने विचारों के माध्यम से अपने  दोहों के माध्यम से लोगों के मन में जागरूकता , अंधविश्वास और पाखंड से ऊपर उठने का सोच दिया एवं लोगों के बेहतर जीवन में उनका काफी योगदान रहा | वैसे तो कोई भी व्यक्ति जब समाज में कुछ नया लाता है या बदलाव करने का प्रयास करता है तो उसका विरोध होना स्वाभाविक है जो भी विद्वान या समाज सुधारक हुए हैं उन्हें विरोध का सामना तो करना ही पड़ा है मगर जिन्होंने अपने शक्ति को विचारों को पूर्ण मनसे लोक कल्याण में लगाया है तो उन्हें समाज में एक अच्छे नजरिए से सम्मान भी दिया है चाहे वह गांधीजी हो या गौतम बुद्ध या कोई और हमारे कबीर ने भी हजारों ऐसे विचार दोहों  के माध्यम से दिए हैं जिसे सुनकर हम लोग काफी कुछ सीख सकते हैं|  जीवन को कैसे जीना चाहिए तथा लोगों के प्रति कैसा नजरिया रखना चाहिए | आज कई लोग  कबीर अमृतवाणी को सुनते हैं और सीखते हैं कि जीवन जीने का तरीका क्या होना चाहिए , बेहतर जीवन के लिए किन किन बातों को ध्यान में रखना चाहिए एवं समाज को बेहतर बनाने के लिए किस प्रकार का कदम उठाना चाहिए इनके दोहों में झलकता है जब भी समय मिले तो शांत मन से इनका दोहों  यूट्यूब  के माध्यम से सुना जा सकता है और सीखा जा सकता है|  कबीर ने लोगों को बेहतरी के लिए क्या बताया इसके बारे में जानने के लिए  कबीर अमृतवाणी जरूर सुने इनका हर एक दोहों  मनोवैज्ञानिक तरीके से रचा है जिसे सुनकर मन को शक्ति और शांति मिलती है कबीर के बारे में बहुत सारे बातें हैं जानकारी के लिए गूगल या अन साइटों के माध्यम से जानकारी ले सकते हैं. इनके दोहों को कबीरपंथी लोग कबीर अमृतवाणी कहते है |
भारत में कबीर पंथ की मुख्यतः तीन शाखाएँ मानी जाती हैं। काशी (कबीरचौरा) वाली शाखा, धनौती वाली भगताही शाखा और छत्तीसगढ़ वाली शाखा। इन शाखाओं के संस्थापक क्रमशः श्रुति गोपाल साहब, भगवान गोसाईं तथा मुक्तामणि नाम साहब को माना जाता है।

मुख्य केन्द्र

        
       कबीर का कुछ दोहों जो ख्याति प्राप्त है .

     1 . मूर्त्ति पूजा को लक्ष्य करते हुए उन्होंने एक दोहा  हाजिर कर दी-                                                                                                                 पाहन पूजे हरि मिलैं, तो मैं पूजौं पहार। वाते तो चाकी भली, पीसी खाय संसार।।

    2 . दुःख में सुमिरन सब करें सुख में करै न कोय।  जो सुख में सुमिरन करे तो दुःख काहे होय॥

    3 . बडा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर।
     पंथी को छाया नहीं फल लागे अति दूर॥

   4 . साईं इतना दीजिए, जा मे कुटुम समाय।
     मैं भी भूखा न रहूं, साधु ना भूखा जाय॥

   5 . धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय।
    माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय॥


                        
                         

Saturday, 23 May 2020

झरना सरेन का गौतम शिक्षण संस्थान: एक अद्भुत विद्यालय गया जिला में..

     गया जिले के नक्सल प्रभावित निमचकबथानी प्रखण्ड स्थित झरना सरेन गांव का गौतम शिक्षण संस्थान एक अद्वितीय सामाजिक प्रयोग का केंद्र है। यह संस्थान न केवल शिक्षा प्रदान करता है अपितु समाज में एकता, समानता और सद्भाव का संदेश भी फैलाता है। संस्थान की अनूठी पहचान इसकी एकरूपता में निहित है, जहां सभी छात्रों की वेशभूषा, लिखावट और लंबाई लगभग समान है।

शिक्षण पद्धति की विशिष्टता:

संस्था के शिक्षक श्री चंद्रमौली प्रसाद द्वारा विकसित की गई शिक्षण पद्धति बच्चों के मस्तिष्क को एकाग्र करने और उनकी हस्तलिपि को एक समान बनाने पर केंद्रित है। यह पद्धति बच्चों में एकता और अनुशासन की भावना विकसित करती है।

  • एक समान वेशभूषा: सभी छात्रों को एक समान पोशाक पहनने के लिए प्रेरित किया जाता है, जिससे समूह की भावना और एकता का संचार होता है।
  • एक समान लिखावट: बच्चों को स्लेट पर लिखने का अभ्यास कराकर उनकी हस्तलिपि को एक समान बनाया जाता है। यह न केवल दृश्य सुंदरता प्रदान करता है बल्कि बच्चों के मस्तिष्क को एकाग्र करने में भी मदद करता है।
  • सख्त अनुशासन: संस्थान में अनुशासन का कड़ा पालन किया जाता है। नामांकन के लिए निर्धारित मानदंडों का कड़ाई से पालन किया जाता है।

समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से विश्लेषण:

  • समाजवाद का आदर्श: संस्थान की शिक्षण पद्धति समाजवाद के आदर्शों से प्रेरित प्रतीत होती है, जहां सभी को समान अधिकार और अवसर प्रदान किए जाते हैं।
  • सांस्कृतिक समरूपता: संस्थान में सभी छात्रों को एक ही ढांचे में ढालने का प्रयास किया जाता है, जो सांस्कृतिक समरूपता का एक उदाहरण है।
  • व्यक्तिवाद बनाम समूहवाद: संस्थान का यह दृष्टिकोण व्यक्तिवाद के बजाय समूहवाद को बढ़ावा देता है।

सकारात्मक प्रभाव:

  • एकता और सद्भाव: संस्थान में सभी छात्रों के बीच एक मजबूत बंधन विकसित होता है।
  • अनुशासन: संस्थान में अनुशासन का कड़ा पालन किया जाता है जिससे छात्रों में अनुशासन की भावना विकसित होती है।
  • शैक्षणिक विकास: संस्थान में छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान की जाती है।

चुनौतियां और भविष्य:

  • व्यक्तिगत विकास: संस्थान में सभी छात्रों को एक ही ढांचे में ढालने का प्रयास व्यक्तिगत विकास को बाधित कर सकता है।
  • बदलते समय के साथ अनुकूलन: बदलते समय के साथ संस्थान को अपनी शिक्षण पद्धति में बदलाव लाने की आवश्यकता होगी।
  • विस्तार: संस्थान के मॉडल को अन्य क्षेत्रों में लागू करने की संभावनाओं पर विचार किया जा सकता है।

निष्कर्ष:

झरना सरेन का गौतम शिक्षण संस्थान एक अनूठा सामाजिक प्रयोग है जो शिक्षा के माध्यम से समाज में परिवर्तन लाने का प्रयास कर रहा है। हालांकि, इस मॉडल की सफलता को लंबे समय में देखा जाना होगा।

अध्ययन के लिए प्रश्न:

  • इस संस्थान की शिक्षण पद्धति के क्या फायदे और नुकसान हैं?
  • क्या यह मॉडल भारत के अन्य हिस्सों में लागू किया जा सकता है?
  • इस संस्थान की सफलता के लिए कौन-कौन से कारक जिम्मेदार हैं?

यह लेख झरना सरेन के गौतम शिक्षण संस्थान के बारे में एक व्यापक और गहराई से विश्लेषण प्रदान करता है। यह लेख उन लोगों के लिए उपयोगी हो सकता है जो शिक्षा, समाजशास्त्र और सामाजिक परिवर्तन में रुचि रखते हैं।


Thursday, 7 May 2020

दो महान व्यक्तित्वों की जयंती: बुद्ध पूर्णिमा..

      आज हम दो ऐसे महान व्यक्तित्वों को याद करते हैं जिन्होंने मानवता के लिए एक नया रास्ता दिखाया। महात्मा बुद्ध और रवींद्र नाथ टैगोर, दोनों ने ही अपने विचारों और कृतियों से लाखों लोगों के जीवन को प्रभावित किया।

बुद्ध पूर्णिमा, वैशाख मास की पूर्णिमा को मनाई जाने वाली यह तिथि, बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसी दिन गौतम बुद्ध का जन्म, ज्ञान प्राप्ति और महापरिनिर्वाण हुआ था। बुद्ध ने अपने जीवन में कई समस्याओं को देखा और लोगों के दुखों को दूर करने का उपाय खोजा। उन्होंने घर-बार छोड़कर ज्ञान की तलाश में निकले और अंततः बोधगया में पीपल के वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त किया।

बौद्ध धर्म का प्रसार और इसका महत्व

बुद्ध के उपदेशों ने दुनिया भर में लाखों लोगों को प्रभावित किया और बौद्ध धर्म का जन्म हुआ। बौद्ध धर्म का अष्टांगिक मार्ग, जो जीवन जीने का एक तरीका है, आज भी प्रासंगिक है। यह मार्ग हमें दुखों से मुक्ति और आत्मज्ञान प्राप्त करने का रास्ता दिखाता है।

बोधगया: बौद्ध धर्म का केंद्र

बोधगया, जहां बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ था, आज भी बौद्धों के लिए एक पवित्र स्थल है। यहां हर साल लाखों लोग बुद्ध को श्रद्धांजलि देने आते हैं। दुर्भाग्यवश, बोधगया के आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों में लोग बौद्ध धर्म के बारे में ज्यादा नहीं जानते हैं। यह एक चिंताजनक स्थिति है क्योंकि यह वह जगह है जहां से बौद्ध धर्म का उदय हुआ था।

बौद्ध धर्म का आज का महत्व

आज की दुनिया में, जहां हिंसा और अशांति व्याप्त है, वहां बौद्ध धर्म के शांति और करुणा के संदेश और भी अधिक प्रासंगिक हो गए हैं। बौद्ध धर्म हमें यह सिखाता है कि हम सभी एक हैं और हमें एक-दूसरे के प्रति करुणा और सहानुभूति रखनी चाहिए।

बुद्ध के अनमोल वचन

  • हम जो कुछ भी हैं वो हमने आज तक क्या सोचा इस बात का परिणाम है.
  • हजारों खोखले शब्दों से अच्छा वह एक शब्द है जो शांति लाये.
  • अतीत पे ध्यान मत दो, भविष्य के बारे में मत सोचो, अपने मन को वर्तमान क्षण पे केन्द्रित करो.

निष्कर्ष

महात्मा बुद्ध एक ऐसे महान व्यक्ति थे जिन्होंने मानवता को एक नया रास्ता दिखाया। उनके उपदेश आज भी प्रासंगिक हैं और हमें जीवन जीने का एक नया नजरिया देते हैं। आइए, हम सभी बुद्ध के उपदेशों को अपने जीवन में उतारने का प्रयास करें और एक शांतिपूर्ण और खुशहाल दुनिया का निर्माण करें।




            
           
  


  



MAHABODHI MANDIR BODHGAYA 18TH CENTURY







                                   






      

Monday, 4 May 2020

शमशान से पवित्र स्थल धरती पर कोई नहीं ..

        शमशान वह स्थान है जहां मुर्दे जलाए जाते लेकिन यहाँ सिर्फ मुर्दे जलाने का काम नहीं होता  यहां पर बहुत सारी चीजों के बारे में ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है क्योंकि श्मशान एक इस तरह जगह है जहां पर मन एकाग्र हो जाता है यहां पर आकर सांसारिक नियम वस्तु  सब बेकार लगने लगती है क्योंकि श्मशान इंसानों को जगता  है लेकिन इंसान शमशान के नाम से इतना भयभीत रहता है की इसके बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता है क्योंकि जिनको श्मशान का रहस्य पता नही है उन् लोगों में श्मशान के प्रति गलत धारणा पैदा कर दी ताकि वे संसार में ही बन्ध जाए   जब कभी किसी की मृत्यु हो जाती है तब उसे जलाने श्मशान में ही ले जाते हैं खासकर हिंदू धर्मावलंबियों को  जैसे ही  व्यक्ति शमशान से निकलता है फिर संसार से उलझ जाते हैं यही तो महामाया की माया है श्मशान में जीवन का अंत नहीं है बल्कि जीवन को समझने का एक बहुत ही पवित्र स्थल है जहां पर जाकर व्यक्ति जीवन की सच्चाई को पूरी तरीके से जानता है और अपने ऊपर हावी काम क्रोध मोह माया लालच ईर्ष्या द्वेष अपने मन से मिटाने का प्रयास करता है शमशान  जीवन का अंत नहीं बल्कि यहाँ  तो जीवन की शुरुआत होती है इसलिए यह स्थल  शिव को भी अत्यंत प्रिय है शमशान में साधना इसी कारण की जाती है की श्मशान में की गई साधना में हमारा मन एकाग्र होता है भटकता नहीं है और हम माया से दूर रहते हैं जिससे कि साधना में सीधीं प्राप्ति हो सके इसलिए ही अघोरी साधु और सच्चा साधु श्मशान में ही साधना करने का स्थल का चयन करता है क्योंकि वहां पर ही सत्य की प्राप्ति हो सकता है श्मशान में सिर्फ मुर्दे जलाने का काम ही नहीं होता अभी लोगों को श्मशान के बारे में नहीं पता शमशान से पवित्र मंदिर कोई नहीं है जहां पर आकर इंसान महामाया की माया से दूर हो जाता है जहां पर स्वयं भगवान शिव संग मां काली और भैरव जी विराजमान होते हैं सोचने वाली बात है यह स्थान कैसा होगा कितना शक्तिशाली होगा यहीं पर आकर इंसान संसारिक उलझन से  दूर हो जाता है सांसारिक नियम वस्तुएं सब बेकार लगने लगती है क्योंकि श्मशान इंसानों को सत्य दिखाता है | इंसान शमशान के नाम से ही भयभीत हो जाता है यह सही  नहीं है | लोगों में यह धारणा बैठी हुई है कि श्रीमद्भागवत गीता का अध्यन और श्मशान घाट पर जाना व्यक्ति दुनिया परिवार के मोह माया त्याग कर परिवार को छोड़कर चला जाता है लेकिन यह सच नहीं है बल्कि श्मशान और श्रीमद्भागवत गीता पढ़ने वाला व्यक्ति सत्य की राह पर चलता है और वह गलत कार्यों से दूर रहता है | हिंदू धर्म में देखा गया है की मरने के पहले व्यक्ति को श्रीमद्भागवत गीता का पाठ सुनाया जाता है ऐसी धारणा बनी हुई है कि वह व्यक्ति मरने के बाद स्वर्ग प्राप्ति करेगा परंतु | श्रीमद्भागवत गीता का पाठ और श्मशान घाट पर जाना हमेशा  जीवन में  जरूरी होना चाहिए | इससे  जीवन को बेहतर तरीके जीने में मदद मिलता है और  गलत कार्यों से दूर रहता है.
शमशान घाट अधिकतर कोई नदी के किनारे होता है .|

पशुपतिनाथ (नेपाल) का समसान घाट 













पशुपति नाथ का समसान ,नेपाल 

Tuesday, 28 April 2020

मुजफ्फरपुर का मन: एक सपने की ओर बढ़ता तालाब..


मुजफ्फरपुर शहर के बीचों-बीच स्थित सिकंदरपुर मन तालाब, न केवल शहर का सबसे बड़ा तालाब है बल्कि एक प्राकृतिक संसाधन भी है जिसकी अनदेखी नहीं की जा सकती। यह तालाब सदियों से शहरवासियों के लिए आकर्षण का केंद्र रहा है। लेकिन समय के साथ इस तालाब की हालत बिगड़ती गई है। प्रदूषण और उपेक्षा ने इस प्राकृतिक सौंदर्य को धूमिल कर दिया है।

एक सपना देखना

लेकिन क्या होगा अगर हम इस तालाब को फिर से उसके पुराने स्वरूप में ला सकें? क्या होगा अगर हम इसे मुजफ्फरपुर शहर का एक प्रमुख पर्यटन स्थल बना सकें? यह एक ऐसा सपना है जो कई लोगों के मन में है। यह सपना मुजफ्फरपुर को एक स्मार्ट सिटी बनाने के लक्ष्य के अनुरूप भी है।

एक व्यापक योजना

इस तालाब के कायाकल्प के लिए एक व्यापक योजना की आवश्यकता है। इस योजना में निम्नलिखित बातों पर ध्यान दिया जाना चाहिए:

  • जल जीवन हरियाली मिशन: तालाब की सफाई और वृक्षारोपण के लिए इस मिशन का लाभ उठाया जा सकता है।
  • सौंदर्यीकरण: तालाब के चारों ओर पैदल पथ का निर्माण, रेस्टोरेंट खोलना और रोशनी की व्यवस्था करना तालाब को और आकर्षक बना सकता है।
  • पीपीपी मॉडल: इस मॉडल के तहत निजी क्षेत्र को तालाब के विकास में शामिल किया जा सकता है।
  • पर्यटन स्थल: तालाब में नौकायान और तैराकी की सुविधाएं उपलब्ध कराकर इसे एक पर्यटन स्थल बनाया जा सकता है।
  • मछली पालन: उच्च गुणवत्ता वाली मछली पालन को बढ़ावा देकर स्थानीय लोगों को रोजगार के अवसर प्रदान किए जा सकते हैं।
  • शुल्क व्यवस्था: तालाब में प्रवेश के लिए एक मामूली शुल्क लगाकर तालाब की सुरक्षा और रखरखाव सुनिश्चित किया जा सकता है।
  • पार्किंग व्यवस्था: तालाब के आसपास पार्किंग की सुविधा उपलब्ध कराकर लोगों को आने-जाने में सुविधा प्रदान की जा सकती है।
  • जागरूकता अभियान: लोगों को तालाब की स्वच्छता बनाए रखने के लिए जागरूक किया जाना चाहिए।

एक नया अध्याय

यह तालाब मुजफ्फरपुर शहर के लिए एक नया अध्याय लिख सकता है। यह शहर के लोगों को एक स्वच्छ और हरा-भरा वातावरण प्रदान कर सकता है। यह शहर के पर्यटन को बढ़ावा दे सकता है और स्थानीय अर्थव्यवस्था को मजबूत कर सकता है।

आपका विचार क्या है?

यह मेरा व्यक्तिगत विचार है। मैं जानना चाहूंगा कि इस तालाब के बारे में आपका क्या विचार है। आप इस तालाब के विकास के लिए और क्या सुझाव दे सकते हैं? कृपया अपने विचार कमेंट में लिखें।





















दिनांक 13 मई को मंत्री जी द्वारा सिकंदरपुर मन के  विकाश पर निर्णय हुआ .



Tuesday, 21 April 2020

पुरातन जीवन पद्धति का स्मरण कराता - COVID-19 कोरोना वायरस


       हमारे दादा-दादी के जमाने (2010 के पहले ) में हम जल्दी सोते थे और जल्दी ही उठा दिये जाते थे। उठने के बाद जल्दी ही नित्यकर्म से निपटने के लिए डाँट पड़ती थी। आश्चर्य इस बात का था कि हमने माँ को नहाकर स्नानागार से निकलते हुए कभी नहीं देखा। हाँ! बाथरूम तो उस जमाने में कम ही हुआ करते थे। सामान्यतः ग्रामीण क्षेत्रों में तो महिलाओं की मजबूरी भी थी कि वे जल्दी उठकर प्रकाश होने से पूर्व ही अपनी नैत्यिक क्रियाओं से निपट लें। प्रकाश हो जाने के बाद वे कहाँ और कैसे जातीं ?
          खुले में शौचादि के लिए जाते समय सामाजिक दूरी का पालन अपने आप ही हो जाया करता था। साफ-सफाई की आदत भी तो विरासत में ही विकसित हो जाती थी। प्रातःकाल जलाहार के बाद निवृत्त होने जाना। पूरी साफ-सफाई, लघुशंका और शौच के बाद ही नहीं बाहर से आने के बाद हाथ-मुँह धुलने की परंपरा को स्मरण करें। कई परिवारों में तो बाहर से आने के बाद स्नान की ही व्यवस्था थी। स्नान से पूर्व कुछ खाने को मिल जाय, यह दादा और दादी की नजरों में कैसे संभव था?
           भोजन से पूर्व हाथ-पैर धोकर भूमि पर आसन लगाकर बैठे बिना थाली कैसे मिल सकती थी? भोजन करते समय बोलना नहीं है। इस नियम का पालन भी काफी लोग करते थे। अन्न देवता का सेवन करना भी तो आराधना ही थी। एक ग्रास ले लेने मात्र से थाली झूठी मान ली जाती थी। दाँत से कटी हुई वस्तु किसी को न देना, भोजन के समय परिवार के एक सदस्य को परोसने के कार्य में ही लगना, उपवास के दौरान साफ-सफाई के ही नहीं पवित्रता के भी अतिरिक्त मानकों का पालन करने की मजबूरी आज सब परंपराएँ दकियानूसी कही जाने लगी हैं। इन्हें छोड़कर आज हम पाश्चात्य संस्कृति के नाम पर विकृत आदतों के शिकार होने लगे हैं क्योंकि पाश्चात्य संस्कृति को भी उसके मूल रूप में तो हम अपना नहीं सकते। उसका केवल बाहरी दिखावा भर हमें आकर्षित करता है। उस विकृत पाश्चात्य संस्कृति के दुष्परिणामों को आज हम कोरोना वायरस के प्रभाव में महसूस कर पा रहे हैं।
           कोरोना वायरस फैलने से हमें जो बार-बार साबुन से हाथ धोने की हिदायतें दी जा रही हैं। वे पहले से ही हमारी जीवन शैली का भाग थीं। कोरोना वायरस के कारण हमें घर में मिली कैद कुछ सभ्य ढंग से कहें तो एकान्तवास ने हमें आत्मचिंतन का अवसर देकर भूले विसरे पन्नों को हमारे सामने रख दिया है। इन पन्नों से ये अहसास हुआ है कि हमने कहाँ गलती कर दी! क्या हम अपने पूर्वजों की अपेक्षा अधिक शिक्षित हो गये हैं। हमारे पास डिग्रियाँ भले ही कुछ अधिक हों किंतु एक छोटे से वायरस ने हमें यह अहसास करा दिया है कि प्राचीन साफ-सफाई और पवित्रता की जीवन शैली ही उचित थी। हम विज्ञान के विकास के नाम पर कितना भी भौतिक विकास कर लिए हों किंतु विश्व में विकसित देशों में गिना जाने वाला अमेरिका अपने नागरिकों की जान की रक्षा नहीं कर पा रहा है। हम लोगों में अभी भी अपने पूर्वजों का प्रभाव है जिसके कारण कुछ लोगों के द्वारा मूर्खतापूर्ण ढंग से स्वयं और समाज की जान जोखिम में डालने के बावजूद हमाने यहाँ कोरोना वायरस अभी भी सीमित है। हाँ! कब तक सीमित रहेगा? यह कहना मुश्किल है क्योंकि हमारा दुर्भाग्य है कि कुछ तथाकथित धर्मांध लोग इस वायरस के प्रसार को भी हिंदू-मूस्लिम के चश्मे से देखने का प्रयत्न कर रहे हैं।
           जबकि वास्तविकता यह है कि हमें कोरोना नाम के इस वायरस से डरने की बिल्कुल की आवश्यकता नहीं है। हम अपनी प्राचीन जीवन शैली की साफ-सफाई की आदतों को पुनः अपनाकर पवित्रता की अपनी धारणा को पुनः आत्मसात करके न केवल इस पर नियंत्रण कर सकते हैं वरन अपनी स्वस्थ्य आदतो के बल पर हमारी प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि करके इस कोरोना वायरस को मात देने की क्षमता विकसित कर सकते हैं। अतः आओ हम अपनी प्राचीन जीवन शैली के पन्नों को पुनः निकालकर अपनी जीवन शैली में शामिल करें। प्रयावरण और सभी जीवो का रक्षा करे ,हिन्दू धर्म के बारे अध्यन करे |












                                                                 

Friday, 17 April 2020

मन क्या है और यह किस तरह कार्य करता है ?

      मन एक ऐसा शब्द है जिससे प्रत्येक व्यक्ति परिचित है । मनुष्य का मन ही समस्त शक्तियों का स्त्रोत होता है मन की दो शक्तियॉ होती है, एक कल्पना शक्ति तथा दुसरी इच्छा शक्ति। मन की कल्पना शक्ति के बढ़ने पर व्यक्ति कवि, वैज्ञानिक,अनुसंधान कर्ता,चित्रकार,साहित्यकार बनता है अपनी कल्पना शक्ति का विकास लोगो को अच्छी कवितायें,अच्छा साहित्य.अच्छे चित्र तथा वैज्ञानिक खोजों से मनष्य को सुखी सम्पन्न बनाता है तथा मनोरंजन कर व्यक्ति के जीवन में खुशियों की बहार ले आता है।
जब व्यक्ति की इच्छा शक्ति का विकास होता है तो इस मन से व्यक्ति प्रत्येक कार्य को करने में सक्षम हो जाता है वह चाहे तो अमीर बन सकता है वह चाहे तो स्वयं स्वस्थ रह सकता है तथा ओरो को भी स्वस्थ रख सकता है वह चाहे तो परमात्मा का भी अनुभव कर सकता है। आध्यात्मिक उन्नति के लिए भी आवश्यक है कि व्यक्ति मन को वश में करे।
यदि आप मानसिक शांति को प्राप्त करना चाहते है तो यह आवश्यक है कि हम मन को वश में करे। हमारे सारे दुख तथा कष्टों का कारण भी है मन पर उचित नियंत्रण न होना। मन हमारा मालिक बन बैठा है तथा हमें यह नचा रहा है जबकि वास्तव में हम मन के मालिक है। हमें चंचल मन की चंचलता को कंट्रोल कर उसे केंद्रित करना होगा तभी हमारे जीवन के दुखो का अन्त होगा।
मन की एकाग्रता हमें एक दुसरे से भिन्न बनाती है तथा कार्य करने की क्षमता में अंतर ला देती है जिससे कोई व्यक्ति जीवन में सफलता प्राप्त करता है जबकि कोई असफल व्यक्ति की श्रेणी में आ जाता है। यदि मन को केंद्रित कर ले तो व्यक्ति का व्यक्तित्व पुरा बदल जायेगा तथा मानसिक शांति प्राप्त होगी। तथा व्यक्ति एकाग्र मन से जो भी कार्य करेगा उसमें सफलता प्राप्त होगी।
मन हमारे भीतर की शक्ति है जो इन्द्रियो एवं मस्तिष्क के द्वारा देखता है,सुनता है,सुघता है,स्वाद लेता है तथा स्पर्श की अनुभुति करता है। मन ही शरीर को सुख-दुख का अनुभव कराता है। व्यक्ति जब बेहोशी की अवस्था में होता है तब मन का संपर्क शरीर से टुट जाता है इस कारण बेहोशी में ऑपरेशन करने पर दर्द महसुस नहीं होता।
कई लोग मस्तिष्क को ही मन समझ लेते है वह गलत है मस्तिष्क एक कम्पयूटर की तरह का उपकरण है जिसके द्वारा मन शरीर पर नियंत्रण रखता है। अर्थात मस्तिष्क शरीर व मन को जोड़ने का कार्य करता है। शरीर पॉच तत्वों से बना हुआ निर्जीव पुतला है उसी प्रकार मस्तिष्क भी निर्जीव है परन्तु इस शरीर में जब मन या आत्मा प्रवेश करती है तो शरीर व मस्तिष्क जीवित हो उठते है तथा व्यक्ति को सोचने,महसुस करने,कल्पना करने,तर्क करने इत्यादि कार्य सम्पन्न होते है। मन,चेतना या आत्मा को अमर कहा गया है उसे कोई भी नष्ट नहीं कर सकता इसी को ही शब्द भी कहा गया है जब कोई भी नहीं था तब भी यह था आज भी ये है तथा कोई भी नहीं रहेगा तब भी ये रहेगा। जब बालक जन्म लेता है उसका मन निश्चल होता है परन्तु जैसे-जैसे वह बड़ा होने लगता है मन के ऊपर धूल जमा होने लगती है तथा यदि हमें पहले की तरह निश्चल मन को प्राप्त करना है तो मन पर जमीं धूल को साफ करना होगा। यदि किसी नदी,गड्डें की तली में देखना तभी संभव है जब पानी की लहरे स्थिर हो जाय। जब पानी की लहरे स्थिर हो जाती है तथा गंदगी तली में बैठ जाती है हमें उसकी तली में पड़े कंकड़ भी दिखाई देने लगते है इसी प्रकार जब मन में विचारों की लहरे स्थिर हो जाता है तथा मन निर्विकारी हो जाता है तब हमें अन्दर का सत्य उद्घाटित हो जाता है तथा हमें ज्ञान प्राप्त हो जाता है।