कबीर जो एक नास्तिक संत थे इन्होंने अपना पूरा जीवन लोगों के भलाई में बिताया इनका जयंती आज 5 जून को प्रत्येक साल बिहार सरकार द्वारा बिहार में मनाया जाता है साथ ही साथ दूसरे राज्य में भी यह दिवस मनाया जाता है कबीर अपने जीवकोपार्जन के लिए जुलाहे का काम करते थे तथा अपने जीवन में बेहतरी के लिए और दूसरों के जीवन में बेहतरी के लिए ब्रज भाषा में दोहों के माध्यम से अपनी बातों को रखते थे इनकी बातें दोहों से बताई गई है जो आज भी लोग कबीर अमृतवाणी के नाम से सुनते हैं | (संत कबीर दास हिंदी साहित्य के भक्ति काल के इकलौते ऐसे कवि हैं, जो आजीवन समाज और लोगों के बीच व्याप्त आडंबरों पर कुठाराघात करते रहे। वह कर्म प्रधान समाज के पैरोकार थे और इसकी झलक उनकी रचनाओं में साफ़ झलकती है। लोक कल्याण हेतु ही मानो उनका समस्त जीवन था। कबीर को वास्तव में एक सच्चे विश्व-प्रेमी का अनुभव था। कबीर की सबसे बड़ी विशेषता उनकी प्रतिभा में अबाध गति और अदम्य प्रखरता थी। समाज में कबीर को जागरण युग का अग्रदूत कहा जाता है। ) इनका जन्म 15 वीं शताब्दी में वाराणसी में हुआ था यह प्रत्येक धर्म में छुपे हुए बुराइयों को दोहों के माध्यम से लोगों को बताते थे इस कारण इनका विरोध अक्सर हिंदू इस्लाम अन्य धर्मों के लोगों को मानने वाले से होते रहता था मगर कबीर कभी भी अपने पग से हटे नही कबीर का कहना था कि लोगों में जागरूकता लाना हो तो उन्हें दोहों के माध्यम से भी लाया जा सकता है | और वास्तविक सत्य भी है इन्होंने प्रत्येक दोहों को बहुत ही साइकोलॉजी तरीके से रखा है वैसे तो कबीर पढ़े-लिखे नहीं थे मगर सोचते बहुत थे और उस सोच को दोहों के माध्यम से लोगों को बताते थे | इन्हों ने अपनी सोच को दोहों को शब्द दिया लिखा और जन-जन तक पहुंचाने का काम किया कबीर ने पूरे भारत का भ्रमण अपने जीवन में किया और समाज में हो रही बुराइयों को अंधविश्वासों ,पाखंड को बहुत ही नजदीक से देखा और उस पर कटाक्ष करते हुए विभिन्न प्रकार के ब्रजभाषा में दोहों बहुत ही सटीक तरीके से रखा है | आज भी इनके दोहों लोग सुनते हैं और बहुत ही कम शब्दों में चौपाई के माध्यम से वस्तुस्थिति को लोगों को अवगत कराते रहते हैं| कबीर के मानने वाले आज पूरी दुनिया में करोड़ों की संख्या में हैं जिन्हें कबीरपंथी कहते हैं| भारत में लगभग 96 लाख लोग कबीर पंथी हैं. इनमें मुसलमान कम और हिन्दू बड़ी संख्या में हैं. साथ ही बौद्ध और जैन समेत कई अन्य धर्मों के लोग भी. कबीरपंथी कण्ठी पहनते हैं, बीजक, रमैनी आदि ग्रन्थों के प्रति पूज्य भाव रखते हैं. गुरु को सबसे ऊपर मानते हैं. शुरू में दार्शनिक और नैतिक शिक्षा पर आधारित यह पंथ बाद में जाकर धार्मिक संप्रदाय में बदल गया| जो कबीर के विचारों को मानते हैं और उनके बताए गए पथ पर चलते हैं उन्हें कबीर पंथी कहा जाता है कबीर ने बहुत सामाजिक बदलाव के लिए काम किया है| 15 वीं शताब्दी में हमारे देश में काफी पाखंड और अंधविश्वास का बोलबाला था उस समय कबीर ने अपने विचारों के माध्यम से अपने दोहों के माध्यम से लोगों के मन में जागरूकता , अंधविश्वास और पाखंड से ऊपर उठने का सोच दिया एवं लोगों के बेहतर जीवन में उनका काफी योगदान रहा | वैसे तो कोई भी व्यक्ति जब समाज में कुछ नया लाता है या बदलाव करने का प्रयास करता है तो उसका विरोध होना स्वाभाविक है जो भी विद्वान या समाज सुधारक हुए हैं उन्हें विरोध का सामना तो करना ही पड़ा है मगर जिन्होंने अपने शक्ति को विचारों को पूर्ण मनसे लोक कल्याण में लगाया है तो उन्हें समाज में एक अच्छे नजरिए से सम्मान भी दिया है चाहे वह गांधीजी हो या गौतम बुद्ध या कोई और हमारे कबीर ने भी हजारों ऐसे विचार दोहों के माध्यम से दिए हैं जिसे सुनकर हम लोग काफी कुछ सीख सकते हैं| जीवन को कैसे जीना चाहिए तथा लोगों के प्रति कैसा नजरिया रखना चाहिए | आज कई लोग कबीर अमृतवाणी को सुनते हैं और सीखते हैं कि जीवन जीने का तरीका क्या होना चाहिए , बेहतर जीवन के लिए किन किन बातों को ध्यान में रखना चाहिए एवं समाज को बेहतर बनाने के लिए किस प्रकार का कदम उठाना चाहिए इनके दोहों में झलकता है जब भी समय मिले तो शांत मन से इनका दोहों यूट्यूब के माध्यम से सुना जा सकता है और सीखा जा सकता है| कबीर ने लोगों को बेहतरी के लिए क्या बताया इसके बारे में जानने के लिए कबीर अमृतवाणी जरूर सुने इनका हर एक दोहों मनोवैज्ञानिक तरीके से रचा है जिसे सुनकर मन को शक्ति और शांति मिलती है कबीर के बारे में बहुत सारे बातें हैं जानकारी के लिए गूगल या अन साइटों के माध्यम से जानकारी ले सकते हैं. इनके दोहों को कबीरपंथी लोग कबीर अमृतवाणी कहते है |
भारत में कबीर पंथ की मुख्यतः तीन शाखाएँ मानी जाती हैं। काशी (कबीरचौरा) वाली शाखा, धनौती वाली भगताही शाखा और छत्तीसगढ़ वाली शाखा। इन शाखाओं के संस्थापक क्रमशः श्रुति गोपाल साहब, भगवान गोसाईं तथा मुक्तामणि नाम साहब को माना जाता है।
मुख्य केन्द्र
- कबीर धर्मनगर (रायपुर, छत्तीसगढ़)
- कबीर चौरा (वाराणसी, इसकी एक शाखा मगहर में है)
- बिद्दूपुर (जग्गू साहब द्वारा स्थापित)
- धनौती (छपरा, बिहार) - बीजक के लेखक भगवान साहिब द्वारा स्थापित,
- कुदुरमाल (छत्तीसगढ़) -- इसकी स्थापना मुक्तामणि साहिब ने की थी (विक्रम सम्वत 1570-1630)
- कबीर परख संस्थान, प्रीतम नगर इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश
कबीर का कुछ दोहों जो ख्याति प्राप्त है .
1 . मूर्त्ति पूजा को लक्ष्य करते हुए उन्होंने एक दोहा हाजिर कर दी- पाहन पूजे हरि मिलैं, तो मैं पूजौं पहार। वाते तो चाकी भली, पीसी खाय संसार।।
2 . दुःख में सुमिरन सब करें सुख में करै न कोय। जो सुख में सुमिरन करे तो दुःख काहे होय॥
3 . बडा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नहीं फल लागे अति दूर॥
No comments:
Post a Comment