Friday 17 April 2020

मन क्या है और यह किस तरह कार्य करता है ?

      मन एक ऐसा शब्द है जिससे प्रत्येक व्यक्ति परिचित है । मनुष्य का मन ही समस्त शक्तियों का स्त्रोत होता है मन की दो शक्तियॉ होती है, एक कल्पना शक्ति तथा दुसरी इच्छा शक्ति। मन की कल्पना शक्ति के बढ़ने पर व्यक्ति कवि, वैज्ञानिक,अनुसंधान कर्ता,चित्रकार,साहित्यकार बनता है अपनी कल्पना शक्ति का विकास लोगो को अच्छी कवितायें,अच्छा साहित्य.अच्छे चित्र तथा वैज्ञानिक खोजों से मनष्य को सुखी सम्पन्न बनाता है तथा मनोरंजन कर व्यक्ति के जीवन में खुशियों की बहार ले आता है।
जब व्यक्ति की इच्छा शक्ति का विकास होता है तो इस मन से व्यक्ति प्रत्येक कार्य को करने में सक्षम हो जाता है वह चाहे तो अमीर बन सकता है वह चाहे तो स्वयं स्वस्थ रह सकता है तथा ओरो को भी स्वस्थ रख सकता है वह चाहे तो परमात्मा का भी अनुभव कर सकता है। आध्यात्मिक उन्नति के लिए भी आवश्यक है कि व्यक्ति मन को वश में करे।
यदि आप मानसिक शांति को प्राप्त करना चाहते है तो यह आवश्यक है कि हम मन को वश में करे। हमारे सारे दुख तथा कष्टों का कारण भी है मन पर उचित नियंत्रण न होना। मन हमारा मालिक बन बैठा है तथा हमें यह नचा रहा है जबकि वास्तव में हम मन के मालिक है। हमें चंचल मन की चंचलता को कंट्रोल कर उसे केंद्रित करना होगा तभी हमारे जीवन के दुखो का अन्त होगा।
मन की एकाग्रता हमें एक दुसरे से भिन्न बनाती है तथा कार्य करने की क्षमता में अंतर ला देती है जिससे कोई व्यक्ति जीवन में सफलता प्राप्त करता है जबकि कोई असफल व्यक्ति की श्रेणी में आ जाता है। यदि मन को केंद्रित कर ले तो व्यक्ति का व्यक्तित्व पुरा बदल जायेगा तथा मानसिक शांति प्राप्त होगी। तथा व्यक्ति एकाग्र मन से जो भी कार्य करेगा उसमें सफलता प्राप्त होगी।
मन हमारे भीतर की शक्ति है जो इन्द्रियो एवं मस्तिष्क के द्वारा देखता है,सुनता है,सुघता है,स्वाद लेता है तथा स्पर्श की अनुभुति करता है। मन ही शरीर को सुख-दुख का अनुभव कराता है। व्यक्ति जब बेहोशी की अवस्था में होता है तब मन का संपर्क शरीर से टुट जाता है इस कारण बेहोशी में ऑपरेशन करने पर दर्द महसुस नहीं होता।
कई लोग मस्तिष्क को ही मन समझ लेते है वह गलत है मस्तिष्क एक कम्पयूटर की तरह का उपकरण है जिसके द्वारा मन शरीर पर नियंत्रण रखता है। अर्थात मस्तिष्क शरीर व मन को जोड़ने का कार्य करता है। शरीर पॉच तत्वों से बना हुआ निर्जीव पुतला है उसी प्रकार मस्तिष्क भी निर्जीव है परन्तु इस शरीर में जब मन या आत्मा प्रवेश करती है तो शरीर व मस्तिष्क जीवित हो उठते है तथा व्यक्ति को सोचने,महसुस करने,कल्पना करने,तर्क करने इत्यादि कार्य सम्पन्न होते है। मन,चेतना या आत्मा को अमर कहा गया है उसे कोई भी नष्ट नहीं कर सकता इसी को ही शब्द भी कहा गया है जब कोई भी नहीं था तब भी यह था आज भी ये है तथा कोई भी नहीं रहेगा तब भी ये रहेगा। जब बालक जन्म लेता है उसका मन निश्चल होता है परन्तु जैसे-जैसे वह बड़ा होने लगता है मन के ऊपर धूल जमा होने लगती है तथा यदि हमें पहले की तरह निश्चल मन को प्राप्त करना है तो मन पर जमीं धूल को साफ करना होगा। यदि किसी नदी,गड्डें की तली में देखना तभी संभव है जब पानी की लहरे स्थिर हो जाय। जब पानी की लहरे स्थिर हो जाती है तथा गंदगी तली में बैठ जाती है हमें उसकी तली में पड़े कंकड़ भी दिखाई देने लगते है इसी प्रकार जब मन में विचारों की लहरे स्थिर हो जाता है तथा मन निर्विकारी हो जाता है तब हमें अन्दर का सत्य उद्घाटित हो जाता है तथा हमें ज्ञान प्राप्त हो जाता है।








                                          

No comments:

Post a Comment