दुनिया के किसी भी बड़े होटल में जाइए, आपको नामी-गिरामी शेफ प्रायः पुरुष ही मिलेंगे। पर क्या यह सच नहीं कि खाना बनाने की कला सदियों से महिलाओं के हाथ में रही है? बच्चों की देखभाल के छोटे-छोटे सेंटर खुल रहे हैं, पर मेंहदी के डिज़ाइन बनाने से लेकर घर की साज-सज्जा तक, कई ऐसे काम हैं जो घर की चारदीवारी में महिलाओं ने पीढ़ियों से किए हैं। मगर जैसे ही इन कामों से पैसा जुड़ता है, धीरे-धीरे पुरुष उस जगह पर काबिज हो जाते हैं और महिलाएं पीछे छूट जाती हैं।
यह सिर्फ संयोग नहीं, बल्कि एक गहरी सामाजिक प्रवृत्ति है। भारत में 1962 तक महिलाओं द्वारा घर में किए गए काम को GDP में गिना जाता था। सोचिए, वह काम जो हमारी अर्थव्यवस्था का हिस्सा माना जाता था, आज भी सम्मान के बजाय ‘जिम्मेदारी’ के नाम पर ढका रह गया है। सच तो यह है कि एक हाउसवाइफ़ का काम किसी ऑफिस की नौकरी से कहीं अधिक कठिन और सतत है। साल के 365 दिन, बिना छुट्टी, बिना ओवरटाइम पे—सिर्फ परिवार की खुशियों और ज़रूरतों के लिए निरंतर काम।
जब स्त्री घर पर होती है, तभी पुरुष बाहर निर्भीक होकर काम कर पाता है। पर अफसोस, इस अदृश्य योगदान को समाज अब भी पूरी तरह स्वीकार नहीं करता। हाउसवाइफ़ का महत्व तब समझ आता है जब वे किसी कारणवश घर में मौजूद नहीं होतीं। हमें अपना नज़रिया बदलना होगा—उनके कार्य को "बस घर का काम" कहकर कमतर आँकना बंद करना होगा।
धर्म, समाज और औरत की सीमाएँ
दुनिया के लगभग सभी धर्मों ने, किसी ने कम तो किसी ने ज़्यादा, महिलाओं के लिए नियम-कानून और धार्मिक आचार-विचार तय किए हैं, जो अक्सर उनकी स्वतंत्रता को सीमित करते हैं। पुरुष और बाज़ार ने भी औरत को अपनी सुविधानुसार परिभाषित किया है—कभी उन्हें “स्वतंत्र” कहकर उनके शरीर को प्रदर्शन की वस्तु बनाया, तो कभी "संस्कार" के नाम पर पूरी तरह ढककर कैद कर दिया। दोनों ही स्थितियों में, उनकी असल पहचान—एक इंसान के रूप में—दब जाती है।
सोचिए, औरत की कोख से जन्म लेने वाला आदमी ही क्यों औरत के भविष्य का निर्धारण करने का अधिकार मान बैठा है?
नाक-कान छिदवाना, गहनों से लादना, कई बार यह सब केवल सांस्कृतिक सौंदर्य के नाम पर औरत को समाज द्वारा तय भूमिकाओं में ढालने के औजार बन जाते हैं। हमें अपनी बेटियों को सिर्फ आभूषण ही नहीं, बल्कि कॉपी, पेन, भारत का संविधान, और अच्छी किताबें देने की ज़रूरत है, ताकि वे खुद अपने जीवन की दिशा तय कर सकें।
महिला उद्यमिता: बदलते भारत की नई ताकत
आज का दौर बदल रहा है। अब महिलाएं केवल घर तक सीमित नहीं, बल्कि उद्योग, स्टार्टअप, टेक्नोलॉजी और कृषि-व्यवसाय तक में अपनी मजबूत पहचान बना रही हैं। लेकिन इस बदलाव को गति देने के लिए हमें कुछ ठोस कदम उठाने होंगे:
1. शिक्षा और कौशल विकास
उच्च शिक्षा और खासकर एसटीईएम (विज्ञान, टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग, गणित) क्षेत्रों में महिलाओं की भागीदारी बढ़ानी होगी। साथ ही, उन्हें व्यवसायिक प्रशिक्षण और नए कौशल सीखने के अवसर देने होंगे, ताकि वे बदलते बाज़ार की मांग के अनुरूप खुद को तैयार कर सकें।
2. वित्तीय सहायता और ऋण
व्यवसाय शुरू करने के लिए पूंजी सबसे बड़ी चुनौती होती है। महिलाओं के लिए विशेष वित्तीय योजनाएं, आसान ऋण, और कम ब्याज दर पर लोन उपलब्ध कराना बेहद जरूरी है।
3. नेटवर्किंग और मेंटरशिप
सफल उद्यमियों से सीखना और अनुभव साझा करना व्यवसाय में सफलता की कुंजी है। महिलाओं के लिए विशेष नेटवर्किंग इवेंट और मेंटरशिप प्रोग्राम जरूरी हैं, ताकि वे सही दिशा में मार्गदर्शन पा सकें।
4. नीतिगत समर्थन
सरकार को महिलाओं की उद्यमिता को बढ़ावा देने के लिए कर में छूट, आसान लोन, और महिला-केंद्रित स्टार्टअप योजनाएं लानी चाहिए।
5. सामाजिक और सांस्कृतिक समर्थन
जब तक समाज महिलाओं के उद्योग में योगदान को सम्मान और स्वीकृति नहीं देगा, तब तक बदलाव अधूरा रहेगा। जागरूकता अभियान और सफलता की कहानियों को साझा करना जरूरी है।
6. तकनीकी सहायता
डिजिटल मार्केटिंग, ई-कॉमर्स और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के जरिए महिलाएं अपने व्यवसाय को वैश्विक स्तर पर ले जा सकती हैं। इसके लिए उन्हें तकनीकी प्रशिक्षण की आवश्यकता है।
7. सुरक्षित और सुविधाजनक कार्यस्थल
महिलाओं के लिए ऐसा कार्य वातावरण जरूरी है जहां वे बिना डर और बाधा के अपने कौशल का उपयोग कर सकें।
भारत सरकार की प्रमुख योजनाएं
महिला उद्यमिता को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार ने कई योजनाएं शुरू की हैं:
1. प्रधानमंत्री मुद्रा योजना (PMMY)
बिना गारंटी के ऋण—शिशु (₹50,000 तक), किशोर (₹50,000–₹5 लाख), और तरुण (₹5 लाख–₹10 लाख)।
2. अन्नपूर्णा योजना
खाद्य व्यवसाय शुरू करने के लिए ₹50,000 तक का ऋण, जिससे उपकरण और सामग्री खरीदी जा सकती है।
3. स्त्री शक्ति योजना
₹2 लाख से अधिक के ऋण पर 0.05% ब्याज रिबेट, विशेषकर उन महिलाओं के लिए जिनका किसी जॉइंट बिजनेस में बहुमत स्वामित्व है।
4. स्टैंड अप इंडिया योजना
महिलाओं और SC/ST के लिए ₹10 लाख से ₹1 करोड़ तक का ऋण, पहली बार व्यवसाय शुरू करने वालों के लिए।
5. महिला उद्यम निधि योजना
व्यवसाय को बढ़ाने के लिए वित्तीय सहायता, विभिन्न ऋण और अनुदान के साथ।
6. STEP योजना (Support to Training and Employment Programme)
महिलाओं को कौशल विकास और व्यावसायिक प्रशिक्षण, ताकि वे स्व-रोजगार या उद्यमी बन सकें।
आगे की राह
महिला केवल परिवार की देखभाल करने वाली या घर संभालने वाली नहीं है, बल्कि वह समाज की सबसे बड़ी आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक ताकत है। जरूरत है कि हम उनके योगदान को स्वीकार करें, सम्मान दें और अवसर प्रदान करें।
हमें अपनी बेटियों को केवल “गुड़िया” बनाकर नहीं, बल्कि निर्णय लेने वाली नेता, इनोवेटर और बदलाव की वाहक बनाकर तैयार करना होगा। और यह तभी संभव है जब शिक्षा, वित्तीय सहयोग, सामाजिक समर्थन और नीतिगत बदलाव—चारों दिशा से प्रयास हों।
क्योंकि जब महिला सशक्त होगी, तभी परिवार सशक्त होगा, समाज सशक्त होगा और भारत एक आत्मनिर्भर और प्रगतिशील राष्ट्र के रूप में खड़ा होगा।
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