Sunday 19 April 2020

विकास के पथ पर अग्रसर भारत

   1.3अरब की जनसंख्या और विश्व की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाले भारत की हाल की संवृद्धि तथा इसका विकास हमारे समय की अत्यंत उल्लेखनीय सफलताओं में से है। स्वतंत्रता-प्राप्ति के बाद से बीते 65 वर्षों से भी अधिक समय के दौरान भारत के कृषि-क्षेत्र में अभूतपूर्व क्रांति आई है, जिसकी वजह से काफी समय से अनाज के निर्यात पर निर्भर यह देश कृषि के वैश्विक पॉवर हाउस में बदल गया है और आज अनाज का शुद्ध निर्यातकर्ता है। औसत आयु बढ़कर दोगुने से भी अधिक हो गई है, साक्षरता की दर में चौगुनी बढ़ोतरी हुई है, स्वास्थ्य-संबंधी परिस्थितियों में सुधार हुआ है और अच्छे ख़ासे मध्य वर्ग का आविर्भाव हुआ है। आज भारत औषधियों, इस्पात, सूचना तथा अंतरिक्ष-संबंधी प्रौद्योगिकियों के क्षेत्रों में विश्व-स्तर की जानी-मानी कंपनियों का घर बन चुका है तथा इसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक ऐसी आवाज़ माना जाता है, जो इसके विशाल आकार और संभावनाओं के अनुरूप है।

ऐतिहासिक बदलाव आ रहे हैं, जिनसे इसे 21वीं सदी का मजबूत देश बनाने के लिए नए-नए अवसर पैदा हो रहे हैं। जल्दी ही भारत विश्व का सबसे विशाल और अत्यंत युवा श्रमशक्ति वाला देश बन जाएगा। साथ ही देश में शहरीकरण की व्यापक लहर उठ रही है और प्रति वर्ष लगभग 1 करोड़ लोग रोज़गार तथा अवसरों की तलाश में कस्बों और शहरों की ओर रुख कर रहे हैं। यह इस सदी का विशालतम ग्रामीण और शहरी प्रवासन (माइग्रेशन) है।

आने वाले ऐतिहासिक बदलावों की वजह से देश एक अदभुत मोड़ पर पहुंच गया है। भारत अपनी श्रमशक्ति की उल्लेखनीय सामर्थ्य का किस प्रकार से विकास करता है और अपने बढ़ते हुए नगरों व कस्बों की संवृद्धि के लिए किस तरह की नई योजनाएं तैयार करता है – इन्हीं चीज़ों से आने वाले समय में देश और इसके निवासियों का भविष्य अधिकतर निर्धारित होगा।

बढ़ती हुई उम्मीदों को पूरा करने के लिए रोज़गार के अवसर पैदा करने, रिहायशी मकानों और बुनियादी सुविधाओं (इंफ़्रास्ट्रक्चर) का गठन करने के लिए ज़रूरी पूंजी निवेश की ज़रूरत होगी, जिनसे कस्बे तथा शहर अधिक रहने योग्य तथा हरे-भरे हो जाएंगे।

भारत की 40 करोड़ से अधिक जनता – या अभी तक ग़रीबी के चंगुल में फंसे विश्व के एक-तिहाई ग़रीबों - का उत्थान करने में समर्थ संवृद्धि अर्जित करना भारत के लिए मुख्य बात होगी। और, हाल ही में (अकेले 2005-2010 के बीच) ग़रीबी के चंगुल से छूटने वाले 5.3 करोड़ लोगों में से अनेक के दोबारा इसमें फंस जाने की संभावना है। वास्तव में जनसंख्या में वृद्धि हो जाने से भारत के कुछ एक सर्वाधिक ग़रीब राज्यों में वस्तुतः पिछले वर्षों में ग़रीबों की कुल संख्या बढ़ी है।

राज्यों, जातियों तथा स्त्री-पुरुषों के बीच भेदभाव समेत सभी स्तरों पर मौजूद समस्त प्रकार की असमानताओं पर ध्यान देना होगा। भारत के सर्वाधिक ग़रीब राज्यों में ग़रीबी की दर अत्यंत विकसित राज्यों की तुलना में तीन से चार गुना अधिक है। जबकि भारत की वार्षिक औसत प्रति व्यक्ति आय वर्ष 2011 में $1,410 थी (विश्व के मध्यम आय वर्ग के देशों में सर्वाधिक ग़रीब देशों के बीच स्थान) – उत्तर प्रदेश में, जिसकी जनसंख्या ब्राज़ील से भी अधिक है, यह मात्र $436 और भारत के सर्वाधिक ग़रीब राज्यों में से एक बिहार में केवल $294 थी। ऐसे वर्गों को मुख्य धारा में लाने की, जिससे ये आर्थिक संवृद्धि के लाभों का उपयोग कर सकें, और महिलाओं को (विश्व की आधी जनसंख्या) अधिकारिता देने की ज़रूरत होगी, ताकि उन्हें देश के सामाजिक-आर्थिक ताने-बाने में अपना न्यायोचित स्थान मिल सके।

शिक्षा तथा कुशलताओं के स्तरों को अधिकाधिक उन्नत करना विश्व में, जिसका तेज़ी से ग्लोबलाइज़ेशन हो रहा है, समृद्धि को बढ़ावा देने के लिए महत्त्वपूर्ण होगा। हालांकि प्राथमिक शिक्षा का  काफी हद तक सर्वव्यापी (यूनिवर्सलाइज़) हो चुका है, अधिगम (लर्निंग) संबंधी परिणाम काफी नीचे हैं। काम करने की आयु वाली जनसंख्या का 10% से भी कम माध्यमिक शिक्षा पूरी कर पाया है और माध्यमिक शिक्षा पूरी करने वालों में आज के बदलते हुए रोज़गार बाज़ार में प्रतिस्पर्द्धा का सामना करने लायक जानकारी और कुशलता की कमी है।

स्वास्थ्य-संबंधी देखभाल भी समान रूप से महत्त्वपूर्ण होगी। हालांकि भारत के स्वास्थ्य-संबंधी संकेतकों में सुधार हुआ है, माताओं और बच्चों की मृत्यु दरें बहुत नीचे हैं और कुछ राज्यों में इनकी तुलना विश्व के सर्वाधिक ग़रीब देशों के आंकड़ों से की जा सकती है। भारत के बच्चों में कुपोषण विशेष रूप से चिंता का विषय है, जिनके कल्याण से भारत के प्रतीक्षित जनसांख्यिकीय लाभांश (डेमोग्रैफ़िकडिविडेंड) का स्तर निर्धारित होगा। इस समय विश्व के कुपोषण का शिकार बच्चों का 40% (21.7 करोड़) भारत में है।

देश की अवसंरचना-संबंधी आवश्यकताएं काफी अधिक हैं। तीन ग्रामवासियों में से एक की सभी मौसमों में खुली रहने वाली सड़क तक पहुंच नहीं है और पांच राष्ट्रीय राजमार्गों में से एक ही चार गलियारों वाला (फ़ोर लेन) है। बंदरगाहों और हवाईअड्डों की क्षमता पर्याप्त नहीं है तथा रेलगाड़ियां बहुत धीरे चलती हैं। अनुमान है कि 30 करोड़ लोग राष्ट्रीय बिजली ग्रिड से नहीं जुड़े हैं और जो जुड़े भी हैं उन्हें अक्सर ही आपूर्ति में बाधाओं का सामना करना पड़ता है। रोज़गार के अवसर पैदा करने के लिहाज़ से महत्त्वपूर्ण विनिर्माण क्षेत्र अभी छोटा है और पूरी तरह विकसित नहीं है।

तथापि, भारत के अनेक राज्य देश के सामने काफी समय से मौजूद चुनौतियों का सामना करने के लिए नए और ठोस प्रयास करने की दिशा में पहल कर रहे हैं और चहुंमुखी विकास की दिशा में भारी प्रगति कर रहे हैं। इनकी सफलताएं आगे बढ़ने के लिए देश का मार्गप्रशस्त कर रही हैं, जिससे पता चलता है कि सर्वाधिक ग़रीब राज्य अत्यंत खुशहाल राज्यों से सीखकर क्या कुछ नहीं कर सकते।

आज भारत के पास अपने 1.2 अरब नागरिकों के रहन-सहन के स्तर में सुधार करने तथा सच्चे अर्थों में समृद्धिशाली भविष्य की नींव डालने के विरले अवसर सुलभ हैं – ऐसा भविष्य जिसका देश और इसकी आने वालीपीढ़ियों पर प्रभाव पड़ेगा।

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