Wednesday, 30 July 2025

कार्य स्थल पर महिलाओं की सुरक्षा का कानून: POSH अधिनियम 2013 ...


भारत में महिलाओं की प्रतिभा और क्षमता हर क्षेत्र में दिन-प्रतिदिन चमक रही है। शिक्षा हो या प्रशासन, व्यवसाय हो या विज्ञान, महिलाएं अपनापन, मेहनत और कौशल के साथ कार्य में अग्रसर हैं। परंतु कार्यस्थलों पर यौन उत्पीड़न का खतरा आज भी उनकी प्रगति में एक बड़ी बाधा है। इसी चुनौती को दूर करने के लिए भारत सरकार ने वर्ष 2013 में एक महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक कानून बनाया – "कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (निवारण, प्रतिषेध और प्रतितोष) अधिनियम, 2013" जिसे संक्षेप में POSH अधिनियम कहा जाता है।

POSH अधिनियम क्या है और क्यों जरूरी है?

POSH का पूरा नाम है - The Sexual Harassment of Women at Workplace (Prevention, Prohibition and Redressal) Act, 2013। यह कानून खासतौर पर महिलाओं को उनके कार्यस्थलों पर यौन उत्पीड़न से बचाने और उत्पीड़न की घटनाओं पर उचित कार्रवाई की व्यवस्था करने के लिए बनाया गया है।

इस अधिनियम का प्रमुख उद्देश्य है:

  1. कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न को रोकना।

  2. यौन उत्पीड़न की घटनाओं पर उचित व्यवहार करना।

  3. पीड़ित महिला को न्याय और सुरक्षा देना।

  4. कार्यस्थल को लैंगिक रूप से संवेदनशील बनाना।

अधिनियम की नींव भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 1997 में दिए गए "विशाखा बनाम राज्य सरकार" के ऐतिहासिक निर्णय से हुई थी, जिसमें न्यायालय ने महिलाओं के अधिकारों और सम्मान की सुरक्षा के लिए दिशा-निर्देश जारी किए थे। इसके बाद इन्हीं दिशानिर्देशों को कानूनी रूप देने की आवश्यकता महसूस कर POSH अधिनियम बनाया गया।

POSH अधिनियम की प्रमुख विशेषताएं

  1. व्यापक कार्यस्थल की परिभाषा:
    POSH केवल कार्यालय, कारखाना या संस्थान तक सीमित नहीं है। यह स्कूल, कॉलेज, अस्पताल, NGO, घरेलू कार्य स्थल, ऑनलाइन बैठकों, कार्य परिवहन सहित किसी भी कार्यस्थल पर लागू होता है।

  2. महिलाओं की सुरक्षा में समावेश:
    यह कानून सभी स्त्री वर्गों को सुरक्षा देता है – स्थायी कर्मचारी हों या अस्थायी, प्रशिक्षु हों या सलाहकार, यहाँ तक कि घरेलू सहायिका भी इसका हकदार है।

  3. यौन उत्पीड़न की विस्तृत परिभाषा:
    इसमें शारीरिक स्पर्श, अनुचित टिप्पणियाँ, यौन संबंध के लिए दबाव, अश्लील चित्र या वीडियो भेजना, मानसिक या शारीरिक कोई भी यौन प्रताड़ना शामिल है।

  4. आंतरिक शिकायत समिति (ICC) का गठन अनिवार्य:
    प्रत्येक संस्था में कम से कम 10 कर्मचारियों के होने पर ICC बनानी होती है। यदि कम कर्मचारी हों, तो जिला स्तर पर स्थानीय शिकायत समिति (LCC) कार्य करती है।

शिकायत की प्रक्रिया

  • शिकायत दर्ज करना: पीड़िता को घटना के 3 महीने के भीतर लिखित रूप में शिकायत करनी होती है, जिसे परिस्थिति अनुसार बढ़ाया भी जा सकता है।

  • जांच और सुनवाई: समिति 90 दिनों के भीतर निष्पक्ष जांच करती है, पक्षकारों से बयान लेती है।

  • रिपोर्टिंग: जांच के बाद 10 दिनों में रिपोर्ट प्रस्तुत की जाती है और आवश्यक कार्रवाई की अनुशंसा की जाती है।

  • कार्रवाई: दोषी पाए जाने पर सजा में निलंबन, वेतन कटौती, चेतावनी, संविदा समाप्ति या परामर्श शामिल हो सकता है।

POSH अधिनियम के तहत संस्था की जिम्मेदारियाँ

  • आंतरिक शिकायत समिति का गठन: सुनिश्चित करना कि ICC समय पर गठित हो।

  • संवेदनशीलता प्रशिक्षण: कर्मचारियों और प्रबंधन के लिए नियमित जागरूकता और प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाना।

  • नीति का प्रचार-प्रसार: संस्था में POSH नीति लगाना, पोस्टर, नोटिस के माध्यम से जागरूकता बढ़ाना।

  • वार्षिक रिपोर्टिंग: शिकायतें, उनके निस्तारण और कार्यवाही की जानकारी जिला अधिकारी को देना।

आंतरिक शिकायत समिति (ICC) की संरचना

  • समिति का अध्यक्ष एक वरिष्ठ महिला कर्मचारी होती है।

  • दो सदस्य सामाजिक या संवेदनशीलता कार्यों में अनुभव रखते हों।

  • एक बाहरी सदस्य NGO या कानून क्षेत्र की विशेषज्ञता वाला होता है।

  • समिति में कम से कम आधी सदस्य महिलाएं शामिल होनी चाहिए।

POSH अधिनियम के लाभ

  • सुरक्षित कार्यस्थल: महिलाओं को भय-मुक्त और सम्मानजनक माहौल प्राप्त होता है।

  • कानूनी संरक्षण: पीड़ित महिला के लिए सुरक्षा और न्याय की स्पष्ट व्यवस्था।

  • संस्थागत जवाबदेही: प्रबंधन को यौन उत्पीड़न मामलों को गंभीरता से लेने के लिए मजबूर करता है।

  • लैंगिक समानता को बढ़ावा: कार्यस्थल पर सम्मानजनक और संतुलित संबंध स्थापित करता है।

POSH लागू करने में आने वाली चुनौतियां

  • प्रेरित जागरूकता की कमी: बहुत से लोग कानून के बारे में अनभिज्ञ हैं, जिसके कारण शिकायतें कम होती हैं।

  • समिति गठन में लापरवाही: कुछ संस्थाएं समिति गठन में तवज्जो नहीं देती या केवल औपचारिकता निभाती हैं।

  • समाजिक कलंक का डर: पीड़ित महिलाएं बदनामी की आशंका से शिकायत दर्ज कराने में हिचकती हैं।

  • झूठी शिकायतों का डर: कभी-कभी दुर्भावनापूर्ण झूठी शिकायतें भी सामने आती हैं, जिससे विश्वास कमजोर होता है।

सुधार के सुझाव

  • सर्व कर्मचारी प्रशिक्षण: सभी कर्मचारियों के लिए POSH अधिनियम की व्यापक जानकारी जरूरी है।

  • समिति की निष्पक्षता बढ़ाना: बाहरी सदस्यों की भूमिका सक्रिय और प्रभावी होनी चाहिए।

  • गोपनीयता का पालन: शिकायतकर्ता की पहचान पूरी तरह सुरक्षित रखी जाए।

  • नीति और क्रियान्वयन की समीक्षा: समय-समय पर ऑडिट और सुधार जारी रखना चाहिए।

निष्कर्ष

POSH अधिनियम सिर्फ एक कानून नहीं, बल्कि महिलाओं के लिए सुरक्षा, सम्मान और समानता की गारंटी है। जब महिलाओं को कार्यस्थल पर सुरक्षित और सम्मानजनक माहौल मिलेगा, तभी वे अपनी पूरी क्षमता से काम कर सकेंगी। इसका परिणाम न सिर्फ उनके व्यक्तिगत विकास में होगा, बल्कि समग्र सामाजिक और आर्थिक प्रगति में भी होगा।

इस कानून ने संगठनात्मक संस्कृति और सामाजिक सोच दोनों में परिवर्तन की शुरुआत की है। आज का युवा और उद्यमी वर्ग इसे समझकर एक बेहतर और समान कार्यस्थल की ओर तेजी से कदम बढ़ा रहा है। POSH अधिनियम महिलाओं के लिए कार्यस्थल पर विश्वास, गरिमा और अवसरों की रक्षा का एक मजबूत कवच बन गया है।

"जहां सुरक्षा है, वहां महिला सशक्तीकरण है, और जहां महिला सशक्त होती है, वहीं समाज प्रगति की ओर बढ़ता है।"





हमें यह समझना होगा कि लैंगिक समानता केवल महिलाओं के लिए नहीं, बल्कि पूरे समाज के लिए आवश्यक है। POSH अधिनियम को प्रभावी रूप से लागू करना और उसकी आत्मा के अनुरूप कार्य करना हम सभी की सामूहिक जिम्मेदारी है। तभी एक सशक्त, सुरक्षित और समान भारत की कल्पना संभव है।

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