Tuesday, 28 April 2020

मुजफ्फरपुर का मन: एक सपने की ओर बढ़ता तालाब..


मुजफ्फरपुर शहर के बीचों-बीच स्थित सिकंदरपुर मन तालाब, न केवल शहर का सबसे बड़ा तालाब है बल्कि एक प्राकृतिक संसाधन भी है जिसकी अनदेखी नहीं की जा सकती। यह तालाब सदियों से शहरवासियों के लिए आकर्षण का केंद्र रहा है। लेकिन समय के साथ इस तालाब की हालत बिगड़ती गई है। प्रदूषण और उपेक्षा ने इस प्राकृतिक सौंदर्य को धूमिल कर दिया है।

एक सपना देखना

लेकिन क्या होगा अगर हम इस तालाब को फिर से उसके पुराने स्वरूप में ला सकें? क्या होगा अगर हम इसे मुजफ्फरपुर शहर का एक प्रमुख पर्यटन स्थल बना सकें? यह एक ऐसा सपना है जो कई लोगों के मन में है। यह सपना मुजफ्फरपुर को एक स्मार्ट सिटी बनाने के लक्ष्य के अनुरूप भी है।

एक व्यापक योजना

इस तालाब के कायाकल्प के लिए एक व्यापक योजना की आवश्यकता है। इस योजना में निम्नलिखित बातों पर ध्यान दिया जाना चाहिए:

  • जल जीवन हरियाली मिशन: तालाब की सफाई और वृक्षारोपण के लिए इस मिशन का लाभ उठाया जा सकता है।
  • सौंदर्यीकरण: तालाब के चारों ओर पैदल पथ का निर्माण, रेस्टोरेंट खोलना और रोशनी की व्यवस्था करना तालाब को और आकर्षक बना सकता है।
  • पीपीपी मॉडल: इस मॉडल के तहत निजी क्षेत्र को तालाब के विकास में शामिल किया जा सकता है।
  • पर्यटन स्थल: तालाब में नौकायान और तैराकी की सुविधाएं उपलब्ध कराकर इसे एक पर्यटन स्थल बनाया जा सकता है।
  • मछली पालन: उच्च गुणवत्ता वाली मछली पालन को बढ़ावा देकर स्थानीय लोगों को रोजगार के अवसर प्रदान किए जा सकते हैं।
  • शुल्क व्यवस्था: तालाब में प्रवेश के लिए एक मामूली शुल्क लगाकर तालाब की सुरक्षा और रखरखाव सुनिश्चित किया जा सकता है।
  • पार्किंग व्यवस्था: तालाब के आसपास पार्किंग की सुविधा उपलब्ध कराकर लोगों को आने-जाने में सुविधा प्रदान की जा सकती है।
  • जागरूकता अभियान: लोगों को तालाब की स्वच्छता बनाए रखने के लिए जागरूक किया जाना चाहिए।

एक नया अध्याय

यह तालाब मुजफ्फरपुर शहर के लिए एक नया अध्याय लिख सकता है। यह शहर के लोगों को एक स्वच्छ और हरा-भरा वातावरण प्रदान कर सकता है। यह शहर के पर्यटन को बढ़ावा दे सकता है और स्थानीय अर्थव्यवस्था को मजबूत कर सकता है।

आपका विचार क्या है?

यह मेरा व्यक्तिगत विचार है। मैं जानना चाहूंगा कि इस तालाब के बारे में आपका क्या विचार है। आप इस तालाब के विकास के लिए और क्या सुझाव दे सकते हैं? कृपया अपने विचार कमेंट में लिखें।





















दिनांक 13 मई को मंत्री जी द्वारा सिकंदरपुर मन के  विकाश पर निर्णय हुआ .



Tuesday, 21 April 2020

पुरातन जीवन पद्धति का स्मरण कराता - COVID-19 कोरोना वायरस


       हमारे दादा-दादी के जमाने (2010 के पहले ) में हम जल्दी सोते थे और जल्दी ही उठा दिये जाते थे। उठने के बाद जल्दी ही नित्यकर्म से निपटने के लिए डाँट पड़ती थी। आश्चर्य इस बात का था कि हमने माँ को नहाकर स्नानागार से निकलते हुए कभी नहीं देखा। हाँ! बाथरूम तो उस जमाने में कम ही हुआ करते थे। सामान्यतः ग्रामीण क्षेत्रों में तो महिलाओं की मजबूरी भी थी कि वे जल्दी उठकर प्रकाश होने से पूर्व ही अपनी नैत्यिक क्रियाओं से निपट लें। प्रकाश हो जाने के बाद वे कहाँ और कैसे जातीं ?
          खुले में शौचादि के लिए जाते समय सामाजिक दूरी का पालन अपने आप ही हो जाया करता था। साफ-सफाई की आदत भी तो विरासत में ही विकसित हो जाती थी। प्रातःकाल जलाहार के बाद निवृत्त होने जाना। पूरी साफ-सफाई, लघुशंका और शौच के बाद ही नहीं बाहर से आने के बाद हाथ-मुँह धुलने की परंपरा को स्मरण करें। कई परिवारों में तो बाहर से आने के बाद स्नान की ही व्यवस्था थी। स्नान से पूर्व कुछ खाने को मिल जाय, यह दादा और दादी की नजरों में कैसे संभव था?
           भोजन से पूर्व हाथ-पैर धोकर भूमि पर आसन लगाकर बैठे बिना थाली कैसे मिल सकती थी? भोजन करते समय बोलना नहीं है। इस नियम का पालन भी काफी लोग करते थे। अन्न देवता का सेवन करना भी तो आराधना ही थी। एक ग्रास ले लेने मात्र से थाली झूठी मान ली जाती थी। दाँत से कटी हुई वस्तु किसी को न देना, भोजन के समय परिवार के एक सदस्य को परोसने के कार्य में ही लगना, उपवास के दौरान साफ-सफाई के ही नहीं पवित्रता के भी अतिरिक्त मानकों का पालन करने की मजबूरी आज सब परंपराएँ दकियानूसी कही जाने लगी हैं। इन्हें छोड़कर आज हम पाश्चात्य संस्कृति के नाम पर विकृत आदतों के शिकार होने लगे हैं क्योंकि पाश्चात्य संस्कृति को भी उसके मूल रूप में तो हम अपना नहीं सकते। उसका केवल बाहरी दिखावा भर हमें आकर्षित करता है। उस विकृत पाश्चात्य संस्कृति के दुष्परिणामों को आज हम कोरोना वायरस के प्रभाव में महसूस कर पा रहे हैं।
           कोरोना वायरस फैलने से हमें जो बार-बार साबुन से हाथ धोने की हिदायतें दी जा रही हैं। वे पहले से ही हमारी जीवन शैली का भाग थीं। कोरोना वायरस के कारण हमें घर में मिली कैद कुछ सभ्य ढंग से कहें तो एकान्तवास ने हमें आत्मचिंतन का अवसर देकर भूले विसरे पन्नों को हमारे सामने रख दिया है। इन पन्नों से ये अहसास हुआ है कि हमने कहाँ गलती कर दी! क्या हम अपने पूर्वजों की अपेक्षा अधिक शिक्षित हो गये हैं। हमारे पास डिग्रियाँ भले ही कुछ अधिक हों किंतु एक छोटे से वायरस ने हमें यह अहसास करा दिया है कि प्राचीन साफ-सफाई और पवित्रता की जीवन शैली ही उचित थी। हम विज्ञान के विकास के नाम पर कितना भी भौतिक विकास कर लिए हों किंतु विश्व में विकसित देशों में गिना जाने वाला अमेरिका अपने नागरिकों की जान की रक्षा नहीं कर पा रहा है। हम लोगों में अभी भी अपने पूर्वजों का प्रभाव है जिसके कारण कुछ लोगों के द्वारा मूर्खतापूर्ण ढंग से स्वयं और समाज की जान जोखिम में डालने के बावजूद हमाने यहाँ कोरोना वायरस अभी भी सीमित है। हाँ! कब तक सीमित रहेगा? यह कहना मुश्किल है क्योंकि हमारा दुर्भाग्य है कि कुछ तथाकथित धर्मांध लोग इस वायरस के प्रसार को भी हिंदू-मूस्लिम के चश्मे से देखने का प्रयत्न कर रहे हैं।
           जबकि वास्तविकता यह है कि हमें कोरोना नाम के इस वायरस से डरने की बिल्कुल की आवश्यकता नहीं है। हम अपनी प्राचीन जीवन शैली की साफ-सफाई की आदतों को पुनः अपनाकर पवित्रता की अपनी धारणा को पुनः आत्मसात करके न केवल इस पर नियंत्रण कर सकते हैं वरन अपनी स्वस्थ्य आदतो के बल पर हमारी प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि करके इस कोरोना वायरस को मात देने की क्षमता विकसित कर सकते हैं। अतः आओ हम अपनी प्राचीन जीवन शैली के पन्नों को पुनः निकालकर अपनी जीवन शैली में शामिल करें। प्रयावरण और सभी जीवो का रक्षा करे ,हिन्दू धर्म के बारे अध्यन करे |












                                                                 

Friday, 17 April 2020

मन क्या है और यह किस तरह कार्य करता है ?

      मन एक ऐसा शब्द है जिससे प्रत्येक व्यक्ति परिचित है । मनुष्य का मन ही समस्त शक्तियों का स्त्रोत होता है मन की दो शक्तियॉ होती है, एक कल्पना शक्ति तथा दुसरी इच्छा शक्ति। मन की कल्पना शक्ति के बढ़ने पर व्यक्ति कवि, वैज्ञानिक,अनुसंधान कर्ता,चित्रकार,साहित्यकार बनता है अपनी कल्पना शक्ति का विकास लोगो को अच्छी कवितायें,अच्छा साहित्य.अच्छे चित्र तथा वैज्ञानिक खोजों से मनष्य को सुखी सम्पन्न बनाता है तथा मनोरंजन कर व्यक्ति के जीवन में खुशियों की बहार ले आता है।
जब व्यक्ति की इच्छा शक्ति का विकास होता है तो इस मन से व्यक्ति प्रत्येक कार्य को करने में सक्षम हो जाता है वह चाहे तो अमीर बन सकता है वह चाहे तो स्वयं स्वस्थ रह सकता है तथा ओरो को भी स्वस्थ रख सकता है वह चाहे तो परमात्मा का भी अनुभव कर सकता है। आध्यात्मिक उन्नति के लिए भी आवश्यक है कि व्यक्ति मन को वश में करे।
यदि आप मानसिक शांति को प्राप्त करना चाहते है तो यह आवश्यक है कि हम मन को वश में करे। हमारे सारे दुख तथा कष्टों का कारण भी है मन पर उचित नियंत्रण न होना। मन हमारा मालिक बन बैठा है तथा हमें यह नचा रहा है जबकि वास्तव में हम मन के मालिक है। हमें चंचल मन की चंचलता को कंट्रोल कर उसे केंद्रित करना होगा तभी हमारे जीवन के दुखो का अन्त होगा।
मन की एकाग्रता हमें एक दुसरे से भिन्न बनाती है तथा कार्य करने की क्षमता में अंतर ला देती है जिससे कोई व्यक्ति जीवन में सफलता प्राप्त करता है जबकि कोई असफल व्यक्ति की श्रेणी में आ जाता है। यदि मन को केंद्रित कर ले तो व्यक्ति का व्यक्तित्व पुरा बदल जायेगा तथा मानसिक शांति प्राप्त होगी। तथा व्यक्ति एकाग्र मन से जो भी कार्य करेगा उसमें सफलता प्राप्त होगी।
मन हमारे भीतर की शक्ति है जो इन्द्रियो एवं मस्तिष्क के द्वारा देखता है,सुनता है,सुघता है,स्वाद लेता है तथा स्पर्श की अनुभुति करता है। मन ही शरीर को सुख-दुख का अनुभव कराता है। व्यक्ति जब बेहोशी की अवस्था में होता है तब मन का संपर्क शरीर से टुट जाता है इस कारण बेहोशी में ऑपरेशन करने पर दर्द महसुस नहीं होता।
कई लोग मस्तिष्क को ही मन समझ लेते है वह गलत है मस्तिष्क एक कम्पयूटर की तरह का उपकरण है जिसके द्वारा मन शरीर पर नियंत्रण रखता है। अर्थात मस्तिष्क शरीर व मन को जोड़ने का कार्य करता है। शरीर पॉच तत्वों से बना हुआ निर्जीव पुतला है उसी प्रकार मस्तिष्क भी निर्जीव है परन्तु इस शरीर में जब मन या आत्मा प्रवेश करती है तो शरीर व मस्तिष्क जीवित हो उठते है तथा व्यक्ति को सोचने,महसुस करने,कल्पना करने,तर्क करने इत्यादि कार्य सम्पन्न होते है। मन,चेतना या आत्मा को अमर कहा गया है उसे कोई भी नष्ट नहीं कर सकता इसी को ही शब्द भी कहा गया है जब कोई भी नहीं था तब भी यह था आज भी ये है तथा कोई भी नहीं रहेगा तब भी ये रहेगा। जब बालक जन्म लेता है उसका मन निश्चल होता है परन्तु जैसे-जैसे वह बड़ा होने लगता है मन के ऊपर धूल जमा होने लगती है तथा यदि हमें पहले की तरह निश्चल मन को प्राप्त करना है तो मन पर जमीं धूल को साफ करना होगा। यदि किसी नदी,गड्डें की तली में देखना तभी संभव है जब पानी की लहरे स्थिर हो जाय। जब पानी की लहरे स्थिर हो जाती है तथा गंदगी तली में बैठ जाती है हमें उसकी तली में पड़े कंकड़ भी दिखाई देने लगते है इसी प्रकार जब मन में विचारों की लहरे स्थिर हो जाता है तथा मन निर्विकारी हो जाता है तब हमें अन्दर का सत्य उद्घाटित हो जाता है तथा हमें ज्ञान प्राप्त हो जाता है।








                                          

व्यवहार कुशलता क्या है ?


       ➽  सचमुच व्यवहार मनुष्य का वह अस्त्र है, जो पग-पग पर उसकी रक्षा करता है। मनुष्य की व्यवहार कुशलता ही दूसरे मनुष्य के हृदय पर कोई छाप छोड़ सकती है, जिसकी वजह से दूसरा व्यक्ति उसकी तरफ आकर्षित होता है। जिस प्रकार जब फुलवारी में गुलाब का फूल खिलता है, वह स्वयं कभी अपना बखान नहीं करता, बल्कि उसकी सुंदरता और उसकी महक उसका परिचय खुद-ब-खुद दे देती है। इसी प्रकार व्यवहार कुशल व्यक्ति की व्यवहार कुशलता ही उसका पूरा परिचय देती है। उसे अपने मुंह मियां मिठु बनने की जरूरत नहीं पड़ती। मुझको लगता है, इस महान ज्ञान के पथ पर बढ़ते हुए कोई व्यक्ति जब इस ज्ञान के व्यावहारिक पक्ष के प्रति जागरूक होता है, तब स्वत: ही उसके अंदर उस सुंदर ज्ञान की सुंदरता अपनी पूरी गुणवत्ता सहित प्रवाहित होने लगती है जो उसके हाव-भाव और आचार-विचार के माध्यम से परिलक्षित होने लगती है।
जब ज्ञान का सौंदर्य साधक के व्यावहारिक जीवन में उतरने लगता है, तो उसमें आया बदलाव, उसका प्रसन्न मुख-मंडल और उसकी यह व्यवहार कुशलता स्वत: ही उस अंदर ज्ञान का वास्तविक परिचय प्रदान कर देते हैं। उस व्यक्ति विशेष का यही परिचय दूसरों को भी प्रभावित कर सकता है।
इस संदर्भ में एक बात महत्वपूर्ण यह है कि इस व्यावहारिक पक्ष में साधक का दिन-प्रतिदिन उत्तरोत्तर उन्नति करना आवश्यक है। क्योंकि ज्ञान लेने से पूर्व यदि हमारे आचरण में परिवर्तन नहीं आता तो किस प्रकार पता चल सकता है कि ज्ञान की गुणवत्ता हमारे जीवन में उतर रही है या नहीं? यही ज्ञान हमारे हृदय में बदलाव लाकर हमें व्यावहारिक बना सकता है।
होता अक्सर यह है कि जब कभी हमने ईमानदारी से इस ज्ञान रूपी दर्पण में झांका है, तब सदा अपनी कमियों को ही हमने अपने जीवन में महसूस किया है। स्पष्टï है उन कमियों का आभास हममें इसीलिए उजागर होता है ताकि उनको दूर करने की हमारे द्वारा कोशिश की जा सके। जब उस तरफ हम थोड़ा सा भी प्रयास करते हैं तो हमें उस महान कृपा का अनुभव होता है, तब लगता है कि यह असंभव कार्य उनकी कृपा से संभव हो सकता है। धीरे-धीरे प्रयास करते हुए जब हम जीवनपथ पर अग्रसर होते हैं, तब स्वत: ही हमारे अंदर विलक्षण परिवर्तन होते नजर आते हैं, जो इस महान ज्ञान का प्रभाव है। जब यह ज्ञान व्यावहारिक रूप से प्रयोग में आता है, तब ज्ञान की खुशबू बिखेरने लगती है। इसी से लगता है कि ज्ञान व व्यावहारिक आचरण का घनिष्ठï संबंध है। सचमुच व्यवहार कुशलता ही वह गहना है जो हमारे जीवन को सुंदरतम बनाये रखता है।
आपके पास ज्ञान का अकूत भंडार हो सकता है, आप में आत्मविश्वास कूट-कूट कर भरा है, आप आत्मबल एवं संकल्प शक्ति से सराबोर हैं, लेकिन यदि आप में व्यवहार कुशलता नहीं है, तो आपकी राह में अड़चनों का अंबार लग जाएगा। ऐसे में आपकी अधिकांश ऊर्जा उन अड़चनों को दूर करने में ही व्यर्थ हो जाएगी। व्यवहार कुशलता द्वारा ही हम अपने साथ रहने वाले संगी-साथियों को अपने साथ कदम से कदम मिलाकर चलने के लिए प्रेरित कर सकते हैं। कहा भी गया है कि अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता। आपको जीवन में सफल होने के लिए अपने संगी-साथियों, भाई-बंधु, शुभचिंतकों, गुरुजनों आदि की कहीं न कहीं, किसी न किसी रूप में थोडी बहुत जरूरत पड़ती ही है।
व्यवहार कुशलता से आप अनजान व्यक्तियों को भी आत्मीय बनाकर अपने साथ चलने के लिए तैयार कर सकते हैं। इसके माध्यम से आप न केवल अकेली शक्ति को सामूहिक शक्ति में बदल सकते हैं, बल्कि अपनी सफलता का मार्ग प्रशस्त करते हुए ऐसी बुलंदियों को भी फतह कर सकते हैं, जिसकी आपने कभी कल्पना भी नहीं की होगी। नकारात्मक दृष्टिकोण से किए गए कार्य जहां हमारे लिए पतन का द्वार बनते हैं, वहीं व्यवहार कुशलता एवं सकारात्मक दृष्टिकोण हमारे लिए किसी वरदान से कम नहीं होते।
आज के परिवेश में जीवन लगातार जटिल होता जा रहा है। अनेक लोगों के बीच काम करते हुए भी व्यक्ति खुद को अकेला महसूस करता है। इस दौर में मनुष्य काफी महत्वाकांक्षी हो गया है, जो आसानी से संतुष्ट नहीं होता है। इस तरह परिवर्तित होती परिस्थितियों में व्यक्तिगत कुशलता की भूमिका बहुत ही महत्वपूर्ण हो जाती है।
व्यक्ति में न केवल भौतिक उपलब्धियों के लिए, बल्कि अपने जीवन के अन्य लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए भी कार्य को सबसे बढ़िया, सुलभ एवं शीघ्रता के साथ करने के तरीकों का ज्ञान व अभ्यास का होना, व्यक्तित्व की कुशलता कहलाती है। आप समय तथा बुद्धि का प्रयोग इस प्रकार करें कि अपने जीवन के प्रत्येक महत्वपूर्ण क्षेत्र में अपनी परिपूर्णता एवं अद्वितीय गुणों के कारण प्रतिष्ठित रहें। व्यक्तिगत कुशलता का तात्पर्य चारित्रिक विकास से भी है। किसी भी व्यक्ति की चारित्रिक विशेषताएं उसकी सर्वोत्तम धन हैं, जो उसे श्रेष्ठ से श्रेष्ठ पद पर ले जाती है। चरित्र के बल पर ही व्यक्ति समाज में आदर व सम्मान पाता है। यह धन से भी शक्तिशाली तत्व है। व्यवहार कुशलता के कारण मानव अपने जीवन में विजय और सौभाग्य का अधिकारी बनता है। मेल-जोल और व्यवहार कुशलता ऐसे गुण हैं जो आपको समाज में लोकप्रिय बनाते हैं। फलस्वरूप आपकी प्रगति एवं सफलता की संभावनाओं में गुणात्मक वृद्धि हो जाती है। आपकी सफलता काफी हद तक इस बात पर निर्भर करती है कि आपका व्यवहार दूसरों के प्रति कैसा है। जैसा व्यवहार आप अपने लिए चाहते हैं, दूसरों के साथ भी आप वैसा ही व्यवहार करें। हम दूसरों को सम्मान और सत्कार देकर ही अपने लिए आदर एवं सम्मान अर्जित कर सकते हैं।
हंसमुख एवं जिंदादिल व्यक्ति सभी के बीच लोकप्रिय होते हैं। अपने व्यवहार में विनम्रता को शामिल करके आप भी दूसरों के दिलों पर राज कर सकते हैं। अतः अपनी कमजोरियों एवं गुणों को पहचानिए और साथ ही अपने व्यक्तित्व के सकारात्मक पहलुओं को और मजबूत करने की कोशिश कीजिए। अपने मन में इस बात को बैठा लें कि जीवन में शारीरिक सौंदर्य ही सब कुछ नहीं है। स्वस्थ व सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाकर आप अपने जीवन में सफलता तथा लोकप्रियता, दोनों हासिल कर सकते हैं।
अगर आप भी जीवन में सफलता और लोकप्रियता अर्जित करना चाहते हैं, तो आपको अपने व्यक्तित्व में दूसरों के साथ अच्छे व्यवहार करने का गुण विकसित करना होगा। इस प्रकार आप व्यवहार कुशल बनकर जीवन में सफलता के सोपान चढ़ सकते हैं। 


 
                                              

What is Psychology (मनोविज्ञान)

           
 मनोविज्ञान (Psychology) वह शैक्षिक व अनुप्रयोगात्मक विद्या है जो प्राणी (मनुष्य, पशु आदि) के मानसिक प्रक्रियाओं (mental processes), अनुभवों तथा व्यक्त व अव्यक्त दाेनाें प्रकार के व्यवहाराें का एक क्रमबद्ध तथा वैज्ञानिक अध्ययन करती है। दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि मनोविज्ञान एक ऐसा विज्ञान है जो क्रमबद्ध रूप से (systematically) प्रेक्षणीय व्यवहार (observable behaviour) का अध्ययन करता है तथा प्राणी के भीतर के मानसिक एवं दैहिक प्रक्रियाओं जैसे - चिन्तन, भाव आदि तथा वातावरण की घटनाओं के साथ उनका संबंध जोड़कर अध्ययन करता है। इस परिप्रेक्ष्य में मनोविज्ञान को व्यवहार एवं मानसिक प्रक्रियाओं के अध्ययन का विज्ञान कहा गया है। 'व्यवहार' में मानव व्यवहार तथा पशु व्यवहार दोनों ही सम्मिलित होते हैं। मानसिकप्रक्रियाओंकेअन्तर्गत संवेदन (Sensation), अवधान (attention), प्रत्यक्षण (Perception), सीखना (अधिगम), स्मृतिचिन्तन आदि आते हैं।
मनोविज्ञान अनुभव का विज्ञान है। इसका उद्देश्य चेतनावस्था की प्रक्रिया के तत्त्वों का विश्लेषण, उनके परस्पर संबंधों का स्वरूप तथा उन्हें निर्धारित करनेवाले नियमों का पता लगाना है।
मनोविज्ञान के कार्यक्षेत्र (scope) को सही ढंग से समझने के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण श्रेणी वह श्रेणी है जिससे यह पता चलता है कि मनोविज्ञानी क्या चाहते हैं ? किये गये कार्य के आधार पर मनोविज्ञानियों को तीन श्रेणियों में विभक्त किया जा सकता है:
  • पहली श्रेणी में उन मनोविज्ञानियों को रखा जाता है जो शिक्षण कार्य में व्यस्त हैं,
  • दूसरी श्रेणी में उन मनोवैज्ञानियों को रखा जाता है जो मनोविज्ञानिक समस्याओं पर शोध करते हैं तथा
  • तीसरी श्रेणी में उन मनोविज्ञानियों को रखा जाता है जो मनोविज्ञानिक अध्ययनों से प्राप्त तथ्यों के आधार पर कौशलों एवं तकनीक का उपयोग वास्तविक परिस्थिति में करते हैं।
इस तरह से मनोविज्ञानियों का तीन प्रमुख कार्यक्षेत्र है—शिक्षण (teaching), शोध (research) तथा उपयोग (application)। इन तीनों कार्यक्षेत्रों से सम्बन्धित मुख्य तथ्यों का वर्णन निम्नांकित है—

शैक्षिक क्षेत्र (Academic areas)

शिक्षण तथा शोध मनोविज्ञान का एक प्रमुख कार्य क्षेत्र है। इस दृष्टिकोण से इस क्षेत्र के तहत निम्नांकित शाखाओं में मनोविज्ञानी अपनी अभिरुचि दिखाते हैं—
(1) जीवन-अवधि विकासात्मक मनोविज्ञान (Life-span development Psychology)
(2) मानव प्रयोगात्मक मनोविज्ञान (Human experimental Psychology)
(3) पशु प्रयोगात्मक मनोज्ञान (Animal experimental Psychology)
(4) दैहिक मनोविज्ञान (Psychological Psychology)
(5) परिणात्मक मनोविज्ञान (Quantitative Psychology)
(6) व्यक्तित्व मनोविज्ञान (Personality Psychology)
(7) समाज मनोविज्ञान (Social Psychology)
(8) शिक्षा मनोविज्ञान (Educational Psychology)
(9) संज्ञात्मक मनोविज्ञान (Cognitive Psychology)
(10) असामान्य मनोविज्ञान (Abnormal Psychology)

जीवन-अवधि विकासात्मक मनोविज्ञान

बाल मनोविज्ञान का प्रारंभिक संबंध मात्र बाल विकास के अध्ययन से था परंतु हाल के वर्षों में विकासात्मक मनोविज्ञान में किशोरावस्था, वयस्कावस्था तथा वृद्धावस्था के अध्ययन पर भी बल डाला गया है। यही कारण है कि इसे 'जीवन अवधि विकासात्मक मनोविज्ञान' कहा जाता है। विकासात्मक मनोविज्ञान में मनोविज्ञान मानव के लगभग प्रत्येक क्षेत्र जैसे—बुद्धि, पेशीय विकास, सांवेगिक विकास, सामाजिक विकास, खेल, भाषा विकास का अध्ययन विकासात्मक दृष्टिकोण से करते हैं। इसमें कुछ विशेष कारक जैसे—आनुवांशिकता, परिपक्वता, पारिवारिक पर्यावरण, सामाजिक-आर्थिक अन्तर का व्यवहार के विकास पर पड़ने वाले प्रभावों का भी अध्ययन किया जाता है। कुल मनोविज्ञानियों का 5% मनोवैज्ञानिक विकासात्मक मनोविज्ञान के क्षेत्र में कार्यरत हैं।

मानव प्रयोगात्मक मनोविज्ञान

मानव प्रयोगात्मक मनोविज्ञान का एक ऐसा क्षेत्र है जहाँ मानव के उन सभी व्यवहारों का अध्ययन किया जाता है जिस पर प्रयोग करना सम्भव है। सैद्धान्तिक रूप से ऐसे तो मानव व्यवहार के किसी भी पहलू पर प्रयोग किया जा सकता है परंतु मनोविज्ञानी उसी पहलू पर प्रयोग करने की कोशिश करते हैं जिसे पृथक किया जा सके तथा जिसके अध्ययन की प्रक्रिया सरल हो। इस तरह से दृष्टि, श्रवण, चिन्तन, सीखना आदि जैसे व्यवहारों का प्रयोगात्मक अध्ययन काफी अधिक किया गया है। मानव प्रयोगात्मक मनोविज्ञान में उन मनोवैज्ञानिकों ने भी काफी अभिरुचि दिखलाया है जिन्हें प्रयोगात्मक मनोविज्ञान का संस्थापक कहा जाता है। इनमें विलियम वुण्ट, टिचेनर तथा वाटसन आदि के नाम अधिक मशहूर हैं।

पशु प्रयोगात्मक मनोविज्ञान

मनोविज्ञान का यह क्षेत्र मानव प्रयोगात्मक विज्ञान (Human experimental Psychology) के समान है। सिर्फ अन्तर इतना ही है कि यहाँ प्रयोग पशुओं जैसे—चूहों, बिल्लियों, कुत्तों, बन्दरों, वनमानुषों आदि पर किया जाता है। पशु प्रयोगात्मक मनोविज्ञान में अधिकतर शोध सीखने की प्रक्रिया तथा व्यवहार के जैविक पहलुओं के अध्ययन में किया गया है। पशु प्रयोगात्मक मनोविज्ञान के क्षेत्र में स्कीनर, गथरी, पैवलव, टॉलमैन आदि का नाम प्रमुख रूप से लिया जाता है। सच्चाई यह है कि सीखने के आधुनिक सिद्घान्त तथा मानव व्यवहार के जैविक पहलू के बारे में हम आज जो कुछ भी जानते हैं, उसका आधार पशु प्रयोगात्मक मनोविज्ञान ही है। इस मनोविज्ञान में पशुओं के व्यवहारों को समझने की कोशिश की जाती है। कुछ लोगों का मत है कि यदि मनोविज्ञान का मुख्य संबंध मानव व्यवहार के अध्ययन से है तो पशुओं के व्यवहारों का अध्ययन करना कोई अधिक तर्कसंगत बात नहीं दिखता। परंतु मनोविज्ञानियों के पास कुछ ऐसी बाध्यताएँ हैं जिनके कारण वे पशुओं के व्यवहार में अभिरुचि दिखलाते हैं। जैसे पशु व्यवहार का अध्ययन कम खर्चीला होता है। फिर कुछ ऐसे प्रयोग हैं जो मनुष्यों पर नैतिक दृष्टिकोण से करना संभव नहीं है तथा पशुओं का जीवन अवधि (life span) का लघु होना प्रमुख ऐसे कारण हैं। मानव एवं पशु प्रयोगात्मक मनोविज्ञान के क्षेत्र में कुछ मनोविज्ञानियों की संख्या का करीब 14% मनोविज्ञानी कार्यरत है।

दैहिक मनोविज्ञान

दैहिक मनोविज्ञान में मनोविज्ञानियों का कार्यक्षेत्र प्राणी के व्यवहारों के दैहिक निर्धारकों (Physical determinants) तथा उनके प्रभावों का अध्ययन करना है। इस तरह के दैहिक मनोविज्ञान की एक ऐसी शाखा है जो जैविक विज्ञान (biological science) से काफी जुड़ा हुआ है। इसे मनोजीवविज्ञान (Psychobiology) भी कहा जाता है। आजकल मस्तिष्कीय कार्य (brain functioning) तथा व्यवहार के संबंधों के अध्ययन में मनोवैज्ञानिकों की रुचि अधिक हो गयी है। इससे एक नयी अन्तरविषयक विशिष्टता (interdisplinary specialty) का जन्म हुआ है जिसे ‘न्यूरोविज्ञान’ (neuroscience) कहा जाता है। इसी तरह के दैहिक मनोविज्ञान हारमोन्स (hormones) का व्यवहार पर पड़ने वाले प्रभावों के अध्ययन में भी अभिरुचि रखते हैं। आजकल विभिन्न तरह के औषध (drug) तथा उनका व्यवहार पर पड़ने वाले प्रभावों का भी अध्ययन दैहिक मनोविज्ञान में किया जा रहा है। इससे भी एक नयी विशिष्टता (new specialty) का जन्म हुआ है, जिसे मनोफर्माकोलॉजी (Psychopharmacology) कहा जाता है तथा जिसमें विभिन्न औषधों के व्यवहारात्मक प्रभाव (behavioural effects) से लेकर तंत्रीय तथा चयापचय (metabolic) प्रक्रियाओं में होने वाले आणविक शोध (molecular research) तक का अध्ययन किया जाता है।


Saturday, 11 April 2020

स्वयं के लिए भी समय निकले क्यों ?


      केवल कार्य के लिए ही नहीं अपने लिए भी समय का आवंटन करना होगा। हमारी व्यक्तिगत आवश्यकताओं की पूर्ति से ही हम पारिवारिक व सामाजिक उत्तरदायित्व निभाने में सक्षम हो पाते हैं। हमें स्पष्ट रूप से नियोजित करना होगा कि हमें स्वस्थ जीवन जीने के लिए कितने घण्टे विश्राम की आवश्यकता है? नैत्यिक दिनचर्या शौच, स्नान, व्यायाम, योग-प्राणायाम, ध्यान व भोजन के लिए कितने समय की आवश्यकता होगी? हमें सुनिश्चित करना होगा कि ये गतिविधियाँ भले ही नितांत निजी आवश्यकताएँ हों किंतु ये  अनिवार्य आवश्यकताएँ हैं। इनमें किसी प्रकार की कटौती या लापरवाही हमारी कार्य कुशलता को प्रभावित करेगी और हम अपने जीवन को संपूर्णता के साथ नहीं जी पायेंगे। हम अपने प्राप्त समय का उपयोग अधिकतम कुशलता के साथ नहीं कर पायेंगे।

अतः हमें अपने आपको स्वस्थ, सक्षम, सबल, योग्य, कुशल ही नहीं आनंदित रखने वाली गतिविधियों में आवश्यकतानुसार समय का निवेश करना ही होगा। हाँ, यह सुनिश्चित करना चाहिए कि इनमें आवश्यकता से अधिक समय न लगे। हमारी सभी गतिविधियाँ समय के सन्दर्भ में पूर्व-नियोजित होंगी, तो हम समय का सही तरीके से उपयोग कर पायेंगे। हमें अच्छी आदतों का विकास कर कठिन व स्मार्ट परिश्रम करने का आनंद लेने में सक्षमता हासिल करनी होगी।

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सत्य जो करना varash के दौरान दिखा।


1. आज अमेरिका अग्रणी देश नहीं है।
2. चीन कभी विश्व कल्याण की नही सोच सकता।
3. यूरोपीय उतने शिक्षित नहीं जितना उन्हें समझा जाता था।
4. हम अपनी छुट्टियॉ बिना यूरोप या अमेरिका गये भी आनन्द के साथ बिता सकते हैं।
5. भारतीयों की रोग प्रतिरोधक क्षमता विश्व के लोगों से बहुत ज्यादा है।
6. कोई पादरी, पुजारी, ग्रन्थी,मौलवी या ज्योतिषी एक भी रोगी को नहीं बचा सकता ।
7. स्वास्थ्य कर्मी,पुलिस कर्मी, प्रशासन कर्मी ही असली हीरो हैं ना कि खिलाड़ी फिल्मी सितारे वगैरा
8. बिना उपभोग के विश्व में सोना चॉदी व तेल का कोई महत्व नहीं।
9. पहली बार पशु व परिन्दों को लगा कि यह संसार उनका भी है।
10. तारे वास्तव में टिमटिमाते हैं यह विश्वास महानगरों के बच्चों को पहली बार हुआ।
11. विश्व के अधिकतर लोग अपना कार्य घर से भी कर सकते हैं।
12. हम और हमारी सन्तान बिना 'जंक फूड' के भी जिन्दा रह सकते है।
13. एक साफ सुथरा व स्वच्छ जीवन जीना कोई कठिन कार्य नहीं है।
14. भोजन पकाना केवल स्त्रियां ही नहीं जानती।
15.ज्यादातर मीडिया बकवास का पुलन्दा है।
16. अभिनेता केवल मनोरंजनकर्ता हैं जीवन में वास्तविक नायक नहीं।
17.भारतीय नारी कि वजह से ही घर मंदिर बनता है।
18. पैसे की कोई वैल्यू नही है क्योंकि आज दाल रोटी के अलावा क्या कर सकते हैं।
19. भारतीय अमीरों मे मानवता कुट-कुट कर भरीं हुईं है एक दो को छोड़कर।
20. विकट समय को सही तरीक़े से भारतीय ही संभाल सकता है।
21. सामुहिक परिवार एकल परिवार से अच्छा होता है।
  

आजीविका का चुनाव..


    जिस प्रकार जीना और जीवनयापन के लिए कोई न कोई आजीविका को अपनाना व्यक्ति की मजबूरी होती है, उस प्रकार की मजबूरी कौन सी आजीविका अपनानी है? इसमें नहीं होती। व्यक्ति को जन्म लेने का चुनाव करने का अधिकार नहीं है। व्यक्ति को जन्म दाता माता-पिता, परिवार या समाज का चुनाव करने का भी अधिकार भी नहीं है। किन्तु सबसे अच्छी बात है कि यह है कि वह आजीविका अपनाये या न अपनाये इसका विकल्प तो नहीं होता किन्तु कौन सी आजीविका अपनाये? इसका चुनाव करने का विकल्प उसके पास अवश्य होता है।
आजीविका का चयन करने का अधिकार व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास का अवसर भी प्रदान करता है। आजीविका का चयन व उसमें सफलता का स्तर व्यक्ति की प्रतिष्ठा का निर्धारक होता है। श्री मोहन राकेश ने अपने नाटक ‘आषाढ़ का एक दिन’ में लिखा है, ‘योग्यता एक चैथाई व्यक्तित्व का निर्माण करती है, शेष की पूर्ति प्रतिष्ठा द्वारा होती है।’ व्यक्ति की प्रतिष्ठा उसकी आजीविका और उसमें सफलता के स्तर पर आधारित होती है। इस प्रकार व्यक्ति की योग्यता के साथ ही उसके व्यक्तित्व के निर्माण में उसकी आजीविका का महत्वपूर्ण योगदान होता है अर्थात् व्यक्ति आजीविका चुनाव करते समय केवल आजीविका का चुनाव ही नहीं कर रहा होता। अपनी प्रतिष्ठा और व्यक्तित्व का भी चुनाव कर रहा होता है। अतः आजीविका या कैरियर का चुनाव करना व्यक्ति के कठिन व जीवन के महत्वपूर्ण निर्णयों में से एक होता है।
निश्चित रूप से जीविका का चुनाव हमारे जीवन का एक महत्वपूर्ण आयाम है। निसन्देह हमें जीविका का चुनाव करने का अधिकार प्राप्त होता है। यद्यपि कुछ सामाजिक परंपरायें या कानूनी पहलू इसे विनियमित कर सकते हैं। हम जो चाहे वह काम नहीं कर सकते। प्रत्येक कार्य के लिए कुछ पूर्वापेक्षा होती हैं। हम अपनी योग्यता के अनुसार ही अपनी आजीविका या कैरियर का चुनाव कर सकते हैं। यहाँ पर एक और पहलू है कि किसी भी कार्य के लिए कुछ विशिष्ट योग्यताओं की आवश्यकता पड़ती है।
हमारे सामने दो विकल्प हो सकते हैं कि या तो हम अपनी योग्यता के अनुसार अपने कैरियर का चुनाव करें या कैरियर का चुनाव करने के बाद हम उसके अनुरूप योग्यता और सक्षमता अर्जित करें। यह ठीक उसी प्रकार है कि हम जिसे प्यार करते हैं, उससे शादी करें या जिससे शादी की है उससे प्यार करने लगें। हाँ! प्यार के बिना शादी की सफलता की अधिक संभावना नहीं होती। उसी प्रकार वांछित योग्यता, सक्षमता के बिना हमें किसी कैरियर में सफलता नहीं मिल सकती। किसी भी कार्य को करने के लिए उसमें कुशलता होना आवश्यक है। यह हमारे ऊपर निर्भर करता है कि या तो हम अपनी कुशलता के अनुरूप कार्य का चुनाव करें या कार्य के अनुरूप योग्यता और सक्षमता विकसित करें। किसी भी सामाजिक व्यवस्था की सफलता भी इसी पर निर्भर करती है कि वह प्रत्येक व्यक्ति की कुशलता, योग्यता और अभिरूचि के अनुसार कार्य और प्रत्येक कार्य को वांछित अभिरूचि, योग्यता और कुशलता वाला व्यक्ति उपलब्ध करा सके। कार्य और व्यक्ति के समायोजन की कमी के कारण ही बेरोजगारी और छिपी हुई बेरोजगारी का जन्म होता है, जो वर्तमान समय की बहुत बड़ी सामाजिक समस्या बनी हुई है।
बेरोजगारी की समस्या न केवल व्यक्ति के जीवन को समस्या से ढक देती है, वरन् सम्पूर्ण व्यवस्था को ही समस्याओं का पिटारा बना देती है। इसके कारण वैयक्तिक, पारिवारिक, सामाजिक और राष्ट्रीय विकास में बाधाएं तो आती ही है, साथ ही विभिन्न प्रकार के अपराधों का आधार भी निर्मित होता है। अतः किसी भी देश के विकास के लिए आवश्यक है कि शिक्षा के साथ साथ व्यक्ति और कार्य में समन्वय पर भी पर्याप्त ध्यान दिये जाने की आवश्यकता है।

आजीविका की अनिवार्यता
जिस व्यक्ति ने जन्म लिया है और जो जीना चाहता है, उसे जीवनयापन के लिए कुछ न कुछ अवश्य ही करना होता है। जीवनयापन के लिए जो क्रियाएं की जाती हैं; वही आजीविका है। जन्म लेना व्यक्ति के लिये चयन का विषय नहीं होता। हाँ! जन्म देने या ना देने के निर्णय करना और लागू करना, वर्तमान विकसित चिकित्सा विज्ञान ने संभव बना दिया है। किंतु हमें जन्म लेना है या नहीं लेना है, इसका निर्णय करने का अधिकार हमें नहीं मिलता। हमें अपने माता-पिता के चयन का अधिकार भी नहीं मिलता।
जीना प्रत्येक जन्म लेने वाले प्राणी की मजबूरी होती है, जब तक वह मृत्यु का वरण नहीं कर लेता। कई बार तो व्यक्ति को जिन्दगी भार लगने लगती है तो भी मजबूरी में ही सही जीना ही पड़ता है। कई बार व्यक्ति कहने लगता है कि मैं जीना नहीं चाहता किंतु क्या करूँ, आत्महत्या भी नहीं कर सकता। जिस प्रकार से जीना मजबूरी है, उसी प्रकार से जीने के लिए कोई न कोई आजीविका अपनाना भी आवश्यक होता है। मजबूरी भी कहा जाय तो अतिशयोक्ति नहीं होगी।
प्रत्येक व्यक्ति के लिए किसी न किसी आजीविका का चुनाव करना आवश्यक होता है। कई बार हमें लगता है कि अमुक व्यक्ति कुछ नहीं करता। हमें कुछ व्यक्ति ऐसे दिखाई देते हैं, जैसे कुछ नहीं कर रहे हों, किंतु लम्बे समय तक कोई भी व्यक्ति बिना आजीविका या रोजगार के नहीं रह सकता।
कई बार हम सोचते हैं कि बिना कुछ किए कराये कुछ लोग कितने सुखपूर्वक जीवनयापन कर रहे हैं। हमारा विचार किसी आजीविका के प्रति नकारात्मक या सकारात्मक हो सकता है किंतु प्रत्येक व्यक्ति की कोई न कोई आजीविका अवश्य होती है। राजनीति भी आजीविका का साधन हो सकती है, तो भीख माँगना भी किसी व्यक्ति विशेष के लिए आजीविका का साधन हो सकती है। कोई व्यक्ति किसी वस्तु का निर्माण करके अपनी आजीविका कमाता है तो कोई व्यक्ति क्रय-विक्रय करके ही अपनी आजीविका चलाता है। कोई व्यक्ति अपनी सेवाएँ प्रदान करके भी अपनी आजीविका कमाते हैं। इस प्रकार प्रत्येक व्यक्ति के लिए किसी न किसी आजीविका को अपनाना आवश्यक होता है।