जब 2008 में मैंने—प्रवीण कुमार पाठक—जीविका से जुड़ने का निर्णय लिया, तब शायद मैं भी नहीं जानता था कि यह एक सरकारी योजना से आगे, एक व्यापक सामाजिक क्रांति की ओर बढ़ रहा है। बीते 18 वर्षों में, मेरा जीविका का अनुभव केवल एक नौकरी नहीं, बल्कि एक जीवन बदलने वाली यात्रा रही है। जिस बिहार के गाँवों में कभी महिलाएं आर्थिक और सामाजिक सशक्तिकरण की बातें ही नहीं सोच पाती थीं, वहां जीविका एक नई आशा और सकारात्मक परिवर्तन का नाम बन गया है।
जीविका का उदय: बिहार में उम्मीद की नई किरण
2006 में, बिहार सरकार ने विश्व बैंक के सहयोग से ग्रामीण विकास के लिए ‘जीविका’ नाम के कार्यक्रम की नींव रखी। इसका उद्देश्य था—ग्रामीण गरीबों, विशेषकर महिलाओं, को संगठित करके उन्हें आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाना। जीविका के आरंभ से बिहार के गाँवों में अलग ही ऊर्जा का संचार हुआ। गाँव की महिलाएं, जो कभी खुद को कमजोर और सीमित समझती थीं, आज फैसले लेने और अपने जीवन की दिशा तय करने लगी हैं।
महिलाओं की शक्ति: SHG से आत्मनिर्भरता तक
महिलाओं ने केवल पैसे की बचत ही नहीं सीखी, बल्कि जीविका के जरिए बैंकिंग सुविधाओं से भी जुड़ गईं। बचत और ऋण की सुविधा ने उन्हें खुद के छोटे व्यवसाय शुरू करने का आधार दिया—किराना दुकान, टेलरिंग, पशुपालन आदि जैसे सैकड़ों उद्यम आज उनके आत्मनिर्भर होने की मिसाल हैं। आज जब बैंक मित्र के रूप में कोई महिला गाँव-गाँव में जाकर डिजिटल बैंकिंग की जानकारी देती है, तब लगता है जैसे सशक्तिकरण की परिभाषा ही बदल गई हो।
जीविका ने महिलाओं को परंपरागत और आधुनिक दोनों किस्मों के प्रशिक्षण दिए—सिलाई, बुनाई, अचार-पापड़ बनाना, सब्जी उत्पादन, बकरी पालन से लेकर आईटी स्किल्स तक। इन प्रशिक्षणों ने न केवल उनकी आय में वृद्धि की, बल्कि उनका आत्मविश्वास भी बढ़ाया। महिलाओं का शिक्षा के प्रति बढ़ता झुकाव भी देखने लायक है—अब वे न केवल खुद पढ़ना-लिखना सीख रही हैं, बल्कि अपने बच्चों को भी स्कूल भेजने में पहल कर रही हैं।
जीविका के आने से पहले ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं के प्रति जागरूकता बहुत कम थी। आज SHG सदस्य न केवल परिवार नियोजन, टीकाकरण, पौष्टिक आहार जैसे मुद्दों पर जागरूक हैं, बल्कि गाँव में अन्य महिलाओं को भी स्वास्थ्य सेवाओं से जोड़ रही हैं। जीविका स्वास्थ्य चेतना, व्यक्तिगत स्वच्छता, गर्भवती महिलाओं और नवजात शिशुओं की देखभाल जैसी गतिविधियों में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है।
कभी आजीविका के लिए बड़े पैमाने पर होने वाला पलायन अब कम हुआ है। जीविका के माध्यम से गाँवों में ही नई आजीविका के साधन उभर रहे हैं—महिलाएँ कम बजट में छोटे छोटे कारोबार की शुरुआत कर रही हैं। इसका परिणाम यह है कि ग्रामीण परिवेश में ही रोजगार की संभावना बढ़ी है और पलायन की प्रवृत्ति घटी है।
मांग-आधारित व सामुदायिक स्वामित्व की नीति
जीविका की सबसे बड़ी खूबी इसका सामुदायिक स्वामित्व है—यह योजना ग्रामीणों की भागीदारी और आवश्यकता के अनुसार तैयार होती है। इससे कार्यक्रम स्थिर रहते हैं और इसकी निगरानी भी समुदाय खुद करता है। ग्राम संगठन, क्लस्टर लेवल फेडरेशन जैसी संरचनाओं ने SHG नेटवर्क को मजबूत किया है। सतत् प्रशिक्षण, मूल्यांकन और फीडबैक से यह योजना लगातार ऑप्टिमाइज़ होती रही है।
बिहार सरकार, भारत सरकार और विश्व बैंक का संयुक्त सहयोग जीविका को मिले स्थायित्व की बड़ी वजह है। विश्व बैंक ने न केवल आर्थिक समर्थन, बल्कि तकनीकी मार्गदर्शन भी दिया। इसी सफलता के आधार पर, 2011 में भारत सरकार ने राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (NRLM) शुरू किया, जिसे अब दीनदयाल अंत्योदय योजना-राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन नाम दिया गया है। NRLM ने जीविका को एक मॉडल के रूप में अपनाया—अब यह आंदोलन न सिर्फ बिहार, बल्कि पूरे देश में लाखों महिलाओं का भविष्य संवार रहा है।
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एक जमाने में चुप रहने वाली महिलाएं अब नेतृत्व का परचम लहरा रही हैं।
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घर-गृहस्थी तक सीमित रहने वाली महिलाएं अब खुद की कमाई और सेविंग पर निर्भर हैं।
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ग्राम सभाओं में उनकी अगुवाई, स्वास्थ्य एवं शिक्षा अभियानों में भागीदारी, और आर्थिक फैसलों में उनकी सहभागिता साफ नजर आती है।
जीविका की कहानी केवल आर्थिक परिवर्तन की नहीं, सामाजिक सम्मान और आत्मविश्वास की भी है। SHG नेटवर्क और सरकारी-गैर सरकारी सहयोग से आज बिहार की महिलाएँ आत्मनिर्भरता, नेतृत्व और सामाजिक बदलाव की प्रतीक बन चुकी हैं। इसमें न केवल अधिकारियों और नेताओं का श्रम है, बल्कि प्रत्येक ग्रामीण महिला की हिस्सेदारी और संघर्ष भी शामिल है।
मुझे, प्रवीण कुमार पाठक को, जीविका आंदोलन का हिस्सा बनने पर गर्व है। मैं आश्वस्त हूँ कि आने वाले वर्षों में यह आंदोलन और भी व्यापक असर डालेगा—बिहार से बाहर भी महिला सशक्तिकरण और गरीबी उन्मूलन के क्षेत्र में मिसाल कायम करेगा।
“अगर ठान ली जाए, तो बदलाव संभव है।” यही जीविका का संदेश है—हर गाँव, हर महिला, हर घर में।