Friday, 24 January 2025

जीविका: बिहार की ग्रामीण महिलाओं के जीवन को बदलता एक आंदोलन...

जब 2008 में मैंने—प्रवीण कुमार पाठक—जीविका से जुड़ने का निर्णय लिया, तब शायद मैं भी नहीं जानता था कि यह एक सरकारी योजना से आगे, एक व्यापक सामाजिक क्रांति की ओर बढ़ रहा है। बीते 18 वर्षों में, मेरा जीविका का अनुभव केवल एक नौकरी नहीं, बल्कि एक जीवन बदलने वाली यात्रा रही है। जिस बिहार के गाँवों में कभी महिलाएं आर्थिक और सामाजिक सशक्तिकरण की बातें ही नहीं सोच पाती थीं, वहां जीविका एक नई आशा और सकारात्मक परिवर्तन का नाम बन गया है।

जीविका का उदय: बिहार में उम्मीद की नई किरण

2006 में, बिहार सरकार ने विश्व बैंक के सहयोग से ग्रामीण विकास के लिए ‘जीविका’ नाम के कार्यक्रम की नींव रखी। इसका उद्देश्य था—ग्रामीण गरीबों, विशेषकर महिलाओं, को संगठित करके उन्हें आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाना। जीविका के आरंभ से बिहार के गाँवों में अलग ही ऊर्जा का संचार हुआ। गाँव की महिलाएं, जो कभी खुद को कमजोर और सीमित समझती थीं, आज फैसले लेने और अपने जीवन की दिशा तय करने लगी हैं।

शुरुआत की झलक:
जीविका का आरंभ बहुत छोटे पैमाने पर हुआ था—कुछ चुनिंदा जिलों में। किन्तु महज कुछ वर्षों में ही इसकी सफलता ने इसे पूरे राज्य में फैला दिया। 2007 में 6 जिलों तक, 2009 में 24 जिलों तक और 2013 में जीविका बिहार के 38 जिलों में घर-घर पहुँच गया।

महिलाओं की शक्ति: SHG से आत्मनिर्भरता तक

जीविका की जड़ें स्वयं सहायता समूह (SHG) से जुड़ी हैं।
एक समय था जब महिलाओं को अपनी मुश्किलें साझा करने वाला मंच भी नहीं था। जीविका ने ‘स्वयं सहायता समूहों’ के गठन से महिलाओं को एक-दूसरे से जोड़ दिया। आज करीब 1 करोड़ 35 लाख महिलाएं SHG के रूप में संगठित हैं। गाँव-गाँव में महिला मंडलों की मीटिंगें होती हैं जहाँ वे न केवल बचत-ऋण की बातें करती हैं, बल्कि सामाजिक समस्याएँ भी हल करती हैं। इन समूहों ने महिलाओं में आत्मविश्वास तो बढ़ाया ही, उन्हें सामाजिक नेतृत्व की ओर भी प्रेरित किया। अब वे ‘अध्यक्ष’, ‘सचिव’, ‘कोषाध्यक्ष’ जैसे पदों पर अपनी क्षमता का परिचय दे रही हैं।

अर्थव्यवस्था को मिली संजीवनी:
वित्तीय समावेशन और स्वरोजगार की राह

महिलाओं ने केवल पैसे की बचत ही नहीं सीखी, बल्कि जीविका के जरिए बैंकिंग सुविधाओं से भी जुड़ गईं। बचत और ऋण की सुविधा ने उन्हें खुद के छोटे व्यवसाय शुरू करने का आधार दिया—किराना दुकान, टेलरिंग, पशुपालन आदि जैसे सैकड़ों उद्यम आज उनके आत्मनिर्भर होने की मिसाल हैं। आज जब बैंक मित्र के रूप में कोई महिला गाँव-गाँव में जाकर डिजिटल बैंकिंग की जानकारी देती है, तब लगता है जैसे सशक्तिकरण की परिभाषा ही बदल गई हो।

कौशल और शिक्षा:
कुनबे से कम्युनिटी लीडर बनने तक

जीविका ने महिलाओं को परंपरागत और आधुनिक दोनों किस्मों के प्रशिक्षण दिए—सिलाई, बुनाई, अचार-पापड़ बनाना, सब्जी उत्पादन, बकरी पालन से लेकर आईटी स्किल्स तक। इन प्रशिक्षणों ने न केवल उनकी आय में वृद्धि की, बल्कि उनका आत्मविश्वास भी बढ़ाया। महिलाओं का शिक्षा के प्रति बढ़ता झुकाव भी देखने लायक है—अब वे न केवल खुद पढ़ना-लिखना सीख रही हैं, बल्कि अपने बच्चों को भी स्कूल भेजने में पहल कर रही हैं।

स्वास्थ्य और जागरूकता:
अज्ञान से संवेदनशीलता की ओर

जीविका के आने से पहले ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं के प्रति जागरूकता बहुत कम थी। आज SHG सदस्य न केवल परिवार नियोजन, टीकाकरण, पौष्टिक आहार जैसे मुद्दों पर जागरूक हैं, बल्कि गाँव में अन्य महिलाओं को भी स्वास्थ्य सेवाओं से जोड़ रही हैं। जीविका स्वास्थ्य चेतना, व्यक्तिगत स्वच्छता, गर्भवती महिलाओं और नवजात शिशुओं की देखभाल जैसी गतिविधियों में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है।

पलायन में कमी:
अपना गाँव, अपनी आजीविका

कभी आजीविका के लिए बड़े पैमाने पर होने वाला पलायन अब कम हुआ है। जीविका के माध्यम से गाँवों में ही नई आजीविका के साधन उभर रहे हैं—महिलाएँ कम बजट में छोटे छोटे कारोबार की शुरुआत कर रही हैं। इसका परिणाम यह है कि ग्रामीण परिवेश में ही रोजगार की संभावना बढ़ी है और पलायन की प्रवृत्ति घटी है।

मांग-आधारित व सामुदायिक स्वामित्व की नीति

जीविका की सबसे बड़ी खूबी इसका सामुदायिक स्वामित्व है—यह योजना ग्रामीणों की भागीदारी और आवश्यकता के अनुसार तैयार होती है। इससे कार्यक्रम स्थिर रहते हैं और इसकी निगरानी भी समुदाय खुद करता है। ग्राम संगठन, क्लस्टर लेवल फेडरेशन जैसी संरचनाओं ने SHG नेटवर्क को मजबूत किया है। सतत् प्रशिक्षण, मूल्यांकन और फीडबैक से यह योजना लगातार ऑप्टिमाइज़ होती रही है।

सरकारी और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग:
नींव से मिशन तक

बिहार सरकार, भारत सरकार और विश्व बैंक का संयुक्त सहयोग जीविका को मिले स्थायित्व की बड़ी वजह है। विश्व बैंक ने न केवल आर्थिक समर्थन, बल्कि तकनीकी मार्गदर्शन भी दिया। इसी सफलता के आधार पर, 2011 में भारत सरकार ने राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (NRLM) शुरू किया, जिसे अब दीनदयाल अंत्योदय योजना-राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन नाम दिया गया है। NRLM ने जीविका को एक मॉडल के रूप में अपनाया—अब यह आंदोलन न सिर्फ बिहार, बल्कि पूरे देश में लाखों महिलाओं का भविष्य संवार रहा है।

18 वर्षों का बदलाव:
कहानियों में छिपे संघर्ष और उपलब्धियां

  • एक जमाने में चुप रहने वाली महिलाएं अब नेतृत्व का परचम लहरा रही हैं।

  • घर-गृहस्थी तक सीमित रहने वाली महिलाएं अब खुद की कमाई और सेविंग पर निर्भर हैं।

  • ग्राम सभाओं में उनकी अगुवाई, स्वास्थ्य एवं शिक्षा अभियानों में भागीदारी, और आर्थिक फैसलों में उनकी सहभागिता साफ नजर आती है।

निष्कर्ष:
बिहार ही नहीं, पूरे देश के लिए मिसाल

जीविका की कहानी केवल आर्थिक परिवर्तन की नहीं, सामाजिक सम्मान और आत्मविश्वास की भी है। SHG नेटवर्क और सरकारी-गैर सरकारी सहयोग से आज बिहार की महिलाएँ आत्मनिर्भरता, नेतृत्व और सामाजिक बदलाव की प्रतीक बन चुकी हैं। इसमें न केवल अधिकारियों और नेताओं का श्रम है, बल्कि प्रत्येक ग्रामीण महिला की हिस्सेदारी और संघर्ष भी शामिल है।

मुझे, प्रवीण कुमार पाठक को, जीविका आंदोलन का हिस्सा बनने पर गर्व है। मैं आश्वस्त हूँ कि आने वाले वर्षों में यह आंदोलन और भी व्यापक असर डालेगा—बिहार से बाहर भी महिला सशक्तिकरण और गरीबी उन्मूलन के क्षेत्र में मिसाल कायम करेगा।

“अगर ठान ली जाए, तो बदलाव संभव है।” यही जीविका का संदेश है—हर गाँव, हर महिला, हर घर में।

प्रवीण कुमार पाठक
प्रशिक्षण अधिकारी, जीविका, औरंगाबाद, बिहार




जीविका: बिहार की ग्रामीण महिलाओं के जीवन में उदय और समृद्धि की नवीन क्रांति...

जब हम बिहार की ग्रामीण पृष्ठभूमि की ओर देखकर देखते हैं, तो जो छवि सामने आती है, उसमें आर्थिक असमानताएँ, सामाजिक चुनौतियाँ और महिलाओं की सीमित भागीदारी प्रमुख हैं। लेकिन 2006 में शुरु हुए जीविका कार्यक्रम ने इस धरा पर एक नई रोशनी डाली। यह सिर्फ एक परियोजना नहीं, बल्कि बिहार की ग्रामीण महिलाओं के जीवन में क्रांतिकारी बदलाव लाने वाली एक सामाजिक मुहिम है। इस आंदोलन ने न केवल महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाया, बल्कि उनके सामाजिक एवं सामुदायिक जीवन को भी संवारने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।

1. महिला सशक्तिकरण और आजीविका संवर्धन:

जीविका का मूल उद्देश्य महिलाओं को स्वावलंबी बनाना है। इसके तहत महिलाओं को स्वयं सहायता समूहों (SHGs) के माध्यम से जोड़कर उनका एक नया मंच प्रदान किया गया। ये SHGs न केवल वित्तीय सहयोग का जरिया बनीं, बल्कि सामाजिक विश्वास और भागीदारी के नए अवसर भी प्रदान करने लगीं। लगभग 1 करोड़ 35 लाख महिलाएं आज इन समूहों का हिस्सा हैं, जो अपनी समस्याओं को समझने, संवाद करने और सामूहिक निर्णय लेने में सक्षम बनी हैं।

ये स्वयं सहायता समूह महिलाओं को चुनौतियों में साथ देने, नए विचार साझा करने, और आर्थिक रूप से मजबूत बनाने के लिए एक कड़ी साबित हुई हैं। उन्होंने पारंपरिक घरेलू सीमाओं को पार करते हुए समुदाय की दिशा तय करने में भी भूमिका निभाई है। इसने महिलाओं के आत्मविश्वास और सामूहिक शक्ति को अभूतपूर्व बढ़ावा दिया है।

2. आर्थिक स्वावलंबन और गरीबी उन्मूलन:

जीविका ने महिलाओं को बैंकिंग प्रणाली से जोड़ा और वित्तीय सेवाओं की पहुंच बनाने में मदद की। अब तक 10 लाख 63 हजार से अधिक स्वयं सहायता समूह बने हैं, जिन्होंने लाखों महिलाओं को बचत के लिए प्रोत्साहित किया है और जरूरत के अनुसार ऋण लेने का अवसर प्रदान किया है। इससे महिलाएं छोटे व्यवसाय शुरू कर सकीं, जैसे कि किराना स्टोर, कढ़ाई, सिलाई, पशुपालन, कृषि आधारित उत्पाद आदि।

यह आर्थिक जुड़ाव न केवल महिलाओं की व्यक्तिगत वित्तीय स्थिति को सुदृढ़ करता है, बल्कि उनके परिवार की आर्थिक स्थिति में भी सुधार लाता है। गरीबी उन्मूलन के इस प्रयास ने महिलाओं को आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर किया है। इनके द्वारा संचालित व्यवसायों से ग्रामीण अर्थव्यवस्था में नई जान आई है, जिससे पलायन की प्रवृत्ति में कमी आई है।

3. कौशल विकास और क्षमता वर्धन:

जीविका कार्यक्रम महिलाओं के कौशल विकास पर विशेष ध्यान देता है। सिलाई-कढ़ाई, खाद्य प्रसंस्करण, पशुपालन, कृषि, और छोटे उद्योगों तक के प्रशिक्षण से महिलाएं न केवल अपनी आय बढ़ा रही हैं बल्कि व्यवसायों को अधिक प्रभावी रूप से संचालित कर रही हैं। इस प्रशिक्षण से महिलाओं में नेतृत्व क्षमता, वित्तीय प्रबंधन और उद्यमशीलता के गुण भी विकसित हुए हैं।

इसी कारण अब महिलाएं अपने समुदाय में निर्णायक भूमिकाओं में नजर आने लगी हैं। नेतृत्व विकास के ये अनुभव महिलाओं को सामाजिक एवं आर्थिक निर्णयों में भागीदारी का आत्मविश्वास देते हैं।

4. स्वास्थ्य और शिक्षा में सुधार:

स्वास्थ्य और शिक्षा जीवन के दो महत्वपूर्ण पहलू हैं जिनमें जीविका ने सुधार हेतु अनेक प्रयास किए हैं। पोषण, टीकाकरण, परिवार नियोजन, और स्वच्छता से संबंधित प्रशिक्षण महिलाओं को स्वस्थ जीवनशैली अपनाने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।

साथ ही, बच्चों की शिक्षा को प्रोत्साहित कर, महिलाएं अपने परिवार के उज्जवल भविष्य की नींव रख रही हैं। अब वे अपने बच्चों को स्कूल भेजने और पढ़ाई के महत्व को समझने में अग्रसर हैं। स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में यह जागरूकता ग्रामीण समाज के सतत विकास के लिए भी सहायक सिद्ध हो रही है।

5. सामाजिक स्वामित्व और आत्मनिर्भरता:

जीविका की सफलता का एक महत्वपूर्ण रहस्य है इसका सामुदायिक स्वामित्व मॉडल। इसने महिलाओं को सिर्फ लाभार्थी से अधिक, अपने कार्यक्रम की संरचना, निगरानी, और सुधार का सक्रिय भागीदार बना दिया। ग्राम स्तर से लेकर क्लस्टर या पंचायत स्तर तक समितियां बनीं, जिनमें महिलाएं नेतृत्व करती हैं।

इसने महिलाओं में नेतृत्व क्षमताओं को बढ़ावा दिया और निर्णय लेने की उनकी भूमिका को मजबूत किया। वे न केवल अपने परिवारों की भलाई के लिए, बल्कि अपने समुदाय के समग्र विकास के लिए भी काम करने लगीं। इस प्रक्रिया ने सामुदायिक एकजुटता और सामाजिक जागरूकता को बल दिया।

6. स्वरोजगार के अवसर और पलायन का रोकथाम:

दूर-दराज़ के गावों में रोजगार के अभाव में लोगों का पलायन एक बड़ी समस्या थी। जीविका ने स्वरोजगार के अवसर उपलब्ध कराकर इस प्रवृत्ति को कम करने में मदद की। महिलाएं गाँव में रहकर छोटे व्यवसाय जैसे किराना स्टोर, हस्तशिल्प, पशुपालन, और कृषि उत्पादों के निर्माण से आत्मनिर्भर हो सकीं।

यह स्वरोजगार सिर्फ आर्थिक स्वतंत्रता ही नहीं, सामाजिक सम्मान और सुरक्षा भी प्रदान करता है। साथ ही, पलायन में कमी से ग्रामीण अर्थव्यवस्था को स्थायित्व मिला है और परिवार पौष्टिक जीवन जीने लगे हैं।

7. बिहार सरकार, केंद्र सरकार और विश्व बैंक की भागीदारी:

जीविका परियोजना बिहार सरकार ने विश्व बैंक के समर्थन से शुरू की थी, जिससे इसे वित्तीय और तकनीकी सहायता मिली। बिहार सरकार ने इसे प्रभावी रूप से क्रियान्वित किया तो केंद्र सरकार ने 2011 में इस मॉडल को राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (NRLM) के रूप में अपनाया और राष्ट्रीय स्तर पर इसे विस्तार दिया।

विश्व बैंक का योगदान तकनीकी मार्गदर्शन और वित्तीय संसाधन प्रदान करने में अहम रहा। इनके समन्वय ने कार्यक्रम को एक सशक्त राष्ट्रीय मिशन में तब्दील करने में सहायता की।

8. राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (NRLM) के आरंभ और जीविका का राष्ट्रीय प्रभाव:

जीविका की सफलता को देखते हुए भारत सरकार ने 2011 में NRLM शुरु किया, जिसका मकसद था पूरे देश के ग्रामीण गरीबों, खासकर महिलाओं को संगठित कर स्थायी आजीविका के अवसर देना। जीविका मॉडल ने इस मिशन को आकार दिया और करोड़ों ग्रामीण महिलाओं के जीवन को बदलने में सहायक रहा।

इस मिशन के अंतर्गत महिलाओं को SHGs के जरिए सशक्त बनाने, वित्तीय समावेशन से जोड़ने, कौशल विकास कराने, स्वास्थ्य एवं शिक्षा के प्रति जागरूक करने समेत अनेक पहल की गईं। इसने राष्ट्रीय स्तर पर महिला सशक्तिकरण का नया इतिहास रचा।

जीविका की रणनीति और समिति संरचना:

इस कार्यक्रम की सफलता के पीछे इसकी ठोस रणनीति और मजबूत समिति संरचना प्रमुख हैं। यह निम्नलिखित मापदंडों पर आधारित है:

  • सामुदायिक संगठन — महिलाओं को SHGs में रूढ़िमुक्त होकर संगठित करना।

  • वित्तीय समावेशन — बैंकिंग प्रणाली के जरिये महिलाओं को वित्तीय सेवा तक पहुंचाना।

  • कौशल विकास — विभिन्न प्रशिक्षणों के माध्यम से रोजगार योग्य और उद्यमी बनाना।

  • नेतृत्व विकास — महिलाओं को प्रभावी नेतृत्व एवं निर्णय क्षमता प्रदान करना।

  • सामुदायिक स्वामित्व — महिलाओं को अपने समुदाय के विकास में सहायक, सक्रिय भागीदार बनाना।

समिति संरचना ग्राम स्तर से लेकर जिला और राज्य स्तर तक फैली हुई है, जो कार्यक्रम के संचालन, निगरानी व मूल्यांकन की जिम्मेदारी निभाती है। इससे निर्णय प्रक्रियाएं पारदर्शी, जवाबदेह और समुदाय-केंद्रित होती हैं।

निष्कर्ष:

18 वर्षों की सफल यात्रा के दौरान जीविका कार्यक्रम ने बिहार के ग्रामीण समाज में महिला सशक्तिकरण की दिशा में एक मिसाल कायम की है। यह केवल एक आर्थिक सुधार अभियान न रहकर सामाजिक परिवर्तन का सशक्त माध्यम बन गया है। महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाना, उनके स्वास्थ्य, शिक्षा, आर्थिक, सामाजिक एवं नेतृत्व कौशल को बढ़ाना, और उन्हें समुदाय के विकास में सक्रिय भूमिका देना जीविका की सबसे बड़ी उपलब्धि है।

जीविका ने दिखाया है कि सही दृष्टिकोण, स्थानीय सहभागिता और मजबूत प्रशासनिक समर्थन के माध्यम से किसी भी क्षेत्र में सकारात्मक और स्थायी बदलाव लाया जा सकता है। बिहार ही नहीं, सम्पूर्ण भारत एवं अन्य विकासशील देशों के लिए जीविका एक प्रेरणा और मार्गदर्शक बन चुका है।

प्रवीण कुमार पाठक
प्रशिक्षण अधिकारी, जीविका, औरंगाबाद, बिहार