हम सभी कभी न कभी ऐसा महसूस करते हैं कि दूसरों की ज़िंदगी बड़ी आसान है और हमारी… बस पूछो मत!
कभी ऑफिस में, कभी घर में, कभी पड़ोस में — लगता है जैसे हम ही दुखों की गठरी हैं और सामने वाला चैन की बंसी बजा रहा है।
लेकिन क्या वाकई ऐसा है?
या ये केवल हमारे सोचने का तरीका है जो हमें ऐसा महसूस कराता है?
🧂 थाली में घी ज़्यादा क्यों दिखता है?
बचपन से आपने ये कहावत सुनी होगी —
“दूसरे की थाली में घी ज़्यादा दिखता है।”
बात बिल्कुल सही है।
दफ्तर का बाबू सोचता है – “मैं सुबह से शाम तक खटता हूँ, लेकिन साहब को देखो, AC में बैठे हैं और मोटी सैलरी खा रहे हैं।”
घर की गृहिणी सोचती है – “मैं दिनभर पसीना बहाकर खाना बनाती हूँ, और साहब बिना तारीफ के सिर्फ नुक्स निकालते हैं।”
नौकरीपेशा व्यक्ति व्यापारी को देखकर जलता है – “इसको रोज कैश मिलता है, मेरी तनख्वाह तो चार दिन में उड़ जाती है।”
और व्यापारी सोचता है – “कमाल है! महीने में एक बार सैलरी और टेंशन फ्री ज़िंदगी! यहां तो ग्राहक के पीछे भागो, फिर भी बिक्री नहीं होती।”
यानी हर कोई किसी और को "मजे में" मान रहा है और खुद को "परेशान"।
👀 “मैं परेशान तू मजे में” — सोच की गलती!
यह सिर्फ परिस्थिति की बात नहीं है, बल्कि दृष्टिकोण की बात है।
हमें जो दिखाई देता है, वही सच नहीं होता। दरअसल, हमारे व्यवहार और सोच के तरीके ही ये भ्रम पैदा करते हैं।
🔍 व्यवहार की 4 स्थितियाँ – किसमें हो आप?
मानव व्यवहार को 4 प्रकारों में बाँटा गया है:
1. मैं मजे में, तू भी मजे में (I’m OK, You’re OK)
➤ यह सबसे आदर्श स्थिति है। दोनों व्यक्ति संतुष्ट, समझदार और शांत।
2. मैं मजे में, तू परेशान (I’m OK, You’re not OK)
➤ अहंकार, आलोचना और श्रेष्ठता की भावना।
3. मैं परेशान, तू मजे में (I’m not OK, You’re OK)
➤ खुद को हीन मानना, जलन, आत्म-दया।
4. मैं परेशान, तू भी परेशान (I’m not OK, You’re not OK)
➤ सबसे खतरनाक स्थिति, जहां दोनों ही निगेटिव सोच में डूबे रहते हैं।
📘 “I’m OK, You’re OK” – एक किताब, जो सोच बदल दे!
अमेरिकन लेखक थॉमस एंथनी हैरिस ने इसी विषय पर एक मशहूर किताब लिखी है —
“I’m OK, You’re OK”, जो Transactional Analysis (व्यवहार विश्लेषण) पर आधारित है।
इस किताब में बताया गया है कि इंसान तीन तरह से सोचता है:
1. बचकाना (Child Thinking) – भावनाओं से भरा, कल्पनाशील सोच
➤ उदाहरण: “काश मैं उड़ सकता!”, “मुझे सब छोड़ दें!”
2. पालक जैसा (Parent Thinking) – सीखी हुई बातें, परंपराओं पर आधारित
➤ उदाहरण: “बड़ों की बात नहीं टालनी चाहिए”, “ऐसे कपड़े नहीं पहनते”
3. वयस्क (Adult Thinking) – तर्कसंगत, सोच-समझ कर निर्णय लेना
➤ उदाहरण: “मुझे क्या विकल्प उपलब्ध हैं?”, “क्या इसका कोई हल है?”
🤝 आदर्श व्यवहार – वयस्क सोच के साथ संतुलन
👉 जब दोनों व्यक्ति वयस्क तरीके से सोचते हैं, तब ही “मैं मजे में, तू भी मजे में” वाली स्थिति बनती है।
लेकिन...
अगर एक व्यक्ति वयस्क, और दूसरा बचकाना या पालक सोच में है — तो टकराव होता है।
और अगर दोनों ही भावनाओं या परंपराओं के सहारे जीते हैं — तो टकराव तय है।
इसलिए संतुलन ज़रूरी है।
बचकाने सोच की भी जरूरत है — कल्पनाएं, नए विचार, रचनात्मकता वहीं से आती है।
पालक सोच भी जरूरी है — समाज को अनुशासन, मूल्य और मर्यादा वहीं से मिलती है।
लेकिन निर्णय — तर्क से होना चाहिए।
🧠 तो अब क्या करें?
दूसरों से जलना छोड़िए। शायद आप उन्हें जितना सुखी समझते हैं, वे अंदर से उतने ही परेशान हैं।
वयस्क दृष्टिकोण अपनाइए। सोच-समझ कर व्यवहार कीजिए।
दूसरों को “मजे में” समझने से पहले उनकी स्थिति को समझने की कोशिश कीजिए।
🎯 अंत में...
आप भी ठीक हैं।
वो भी ठीक हैं।
हर कोई अपनी-अपनी लड़ाइयाँ लड़ रहा है, अपनी-अपनी मंज़िल की ओर बढ़ रहा है।
तो अगली बार जब आपको लगे – “सामने वाला कितना खुश है और मैं कितना परेशान”,
तो बस मुस्कुराइए और कहिए —
“मैं भी ठीक हूँ, तू भी ठीक है – Let’s both be OK.” 😊🌼