Monday, 30 September 2013

🔄 “मैं परेशान, तू मजे में!” – एक भ्रम या हकीकत? 🤔

हम सभी कभी न कभी ऐसा महसूस करते हैं कि दूसरों की ज़िंदगी बड़ी आसान है और हमारी… बस पूछो मत!
कभी ऑफिस में, कभी घर में, कभी पड़ोस में — लगता है जैसे हम ही दुखों की गठरी हैं और सामने वाला चैन की बंसी बजा रहा है।

लेकिन क्या वाकई ऐसा है?
या ये केवल हमारे सोचने का तरीका है जो हमें ऐसा महसूस कराता है?

🧂 थाली में घी ज़्यादा क्यों दिखता है?

बचपन से आपने ये कहावत सुनी होगी —
“दूसरे की थाली में घी ज़्यादा दिखता है।”

बात बिल्कुल सही है।

दफ्तर का बाबू सोचता है – “मैं सुबह से शाम तक खटता हूँ, लेकिन साहब को देखो, AC में बैठे हैं और मोटी सैलरी खा रहे हैं।”

घर की गृहिणी सोचती है – “मैं दिनभर पसीना बहाकर खाना बनाती हूँ, और साहब बिना तारीफ के सिर्फ नुक्स निकालते हैं।”

नौकरीपेशा व्यक्ति व्यापारी को देखकर जलता है – “इसको रोज कैश मिलता है, मेरी तनख्वाह तो चार दिन में उड़ जाती है।”

और व्यापारी सोचता है – “कमाल है! महीने में एक बार सैलरी और टेंशन फ्री ज़िंदगी! यहां तो ग्राहक के पीछे भागो, फिर भी बिक्री नहीं होती।”


यानी हर कोई किसी और को "मजे में" मान रहा है और खुद को "परेशान"।

👀 “मैं परेशान तू मजे में” — सोच की गलती!

यह सिर्फ परिस्थिति की बात नहीं है, बल्कि दृष्टिकोण की बात है।
हमें जो दिखाई देता है, वही सच नहीं होता। दरअसल, हमारे व्यवहार और सोच के तरीके ही ये भ्रम पैदा करते हैं।

🔍 व्यवहार की 4 स्थितियाँ – किसमें हो आप?

मानव व्यवहार को 4 प्रकारों में बाँटा गया है:

1. मैं मजे में, तू भी मजे में (I’m OK, You’re OK)
➤ यह सबसे आदर्श स्थिति है। दोनों व्यक्ति संतुष्ट, समझदार और शांत।


2. मैं मजे में, तू परेशान (I’m OK, You’re not OK)
➤ अहंकार, आलोचना और श्रेष्ठता की भावना।


3. मैं परेशान, तू मजे में (I’m not OK, You’re OK)
➤ खुद को हीन मानना, जलन, आत्म-दया।


4. मैं परेशान, तू भी परेशान (I’m not OK, You’re not OK)
➤ सबसे खतरनाक स्थिति, जहां दोनों ही निगेटिव सोच में डूबे रहते हैं।


📘 “I’m OK, You’re OK” – एक किताब, जो सोच बदल दे!

अमेरिकन लेखक थॉमस एंथनी हैरिस ने इसी विषय पर एक मशहूर किताब लिखी है —
“I’m OK, You’re OK”, जो Transactional Analysis (व्यवहार विश्लेषण) पर आधारित है।

इस किताब में बताया गया है कि इंसान तीन तरह से सोचता है:

1. बचकाना (Child Thinking) – भावनाओं से भरा, कल्पनाशील सोच
➤ उदाहरण: “काश मैं उड़ सकता!”, “मुझे सब छोड़ दें!”


2. पालक जैसा (Parent Thinking) – सीखी हुई बातें, परंपराओं पर आधारित
➤ उदाहरण: “बड़ों की बात नहीं टालनी चाहिए”, “ऐसे कपड़े नहीं पहनते”


3. वयस्क (Adult Thinking) – तर्कसंगत, सोच-समझ कर निर्णय लेना
➤ उदाहरण: “मुझे क्या विकल्प उपलब्ध हैं?”, “क्या इसका कोई हल है?”

🤝 आदर्श व्यवहार – वयस्क सोच के साथ संतुलन

👉 जब दोनों व्यक्ति वयस्क तरीके से सोचते हैं, तब ही “मैं मजे में, तू भी मजे में” वाली स्थिति बनती है।

लेकिन...

अगर एक व्यक्ति वयस्क, और दूसरा बचकाना या पालक सोच में है — तो टकराव होता है।

और अगर दोनों ही भावनाओं या परंपराओं के सहारे जीते हैं — तो टकराव तय है।


इसलिए संतुलन ज़रूरी है।
बचकाने सोच की भी जरूरत है — कल्पनाएं, नए विचार, रचनात्मकता वहीं से आती है।
पालक सोच भी जरूरी है — समाज को अनुशासन, मूल्य और मर्यादा वहीं से मिलती है।
लेकिन निर्णय — तर्क से होना चाहिए।

🧠 तो अब क्या करें?

दूसरों से जलना छोड़िए। शायद आप उन्हें जितना सुखी समझते हैं, वे अंदर से उतने ही परेशान हैं।

वयस्क दृष्टिकोण अपनाइए। सोच-समझ कर व्यवहार कीजिए।

दूसरों को “मजे में” समझने से पहले उनकी स्थिति को समझने की कोशिश कीजिए।

🎯 अंत में...

आप भी ठीक हैं।
वो भी ठीक हैं।
हर कोई अपनी-अपनी लड़ाइयाँ लड़ रहा है, अपनी-अपनी मंज़िल की ओर बढ़ रहा है।

तो अगली बार जब आपको लगे – “सामने वाला कितना खुश है और मैं कितना परेशान”,
तो बस मुस्कुराइए और कहिए —
“मैं भी ठीक हूँ, तू भी ठीक है – Let’s both be OK.” 😊🌼



जिसने मरना सीख लिया जीने का तरीका वह ही सीखेगा ...


      जीवन में संघर्ष आगे बढ़ाता है। हमें विपरित परिस्थितियों सबल सक्षम व सशक्त बनाती है। अन्धेरे के बाद प्रकाश आता है। कठिनाईयों से दुःख पैदा होता है एवं उसका सामना करने में संघर्ष है। संघर्ष करने वाला ही आगे बढ़ता है। चालर्स डार्विन ने संघर्ष करने वाले को ही जीवित रहने का पात्र माना है। कठिनाईयों को वह चुनौती के रुप में लेता है। तभी तो कहां जाता है कि जिसने मरना सीख लिया जीने का अधिकार उसी को है। संघर्ष अभिशाप नहीं, वरदान है। इससे भागने की जरुरत नहीं है। जो संघर्ष करते है वो पाते है। आगे बढ़ने वाले हार कर बैठते है नहीं है। जीतता वहीं है जो संघर्ष करता है। विजय बैठे-बैठे नहीं मिलती है। सफलता संघर्ष के बाद ही मिलती है। परिस्थितियों से, तन्त्र से, समस्याओं से जो लड़ नहीं सकते वे अन्तः हारते है। लड़ने वाले ही जीतते है। इसे न दर्शन माने ,न ही बनाएं। आगे बढ़ने का यह व्यावहारिक व सहज मार्ग है जिसे अपनाएँ। संघर्ष करने वालो की कमी नहीं है। जो भी गरीबी, को छोड़ अपने परिश्रम से आगे बढ़ा है। नेपोलियन जीवन भर लड़ता रहा तो एक दिन सम्राट बना। स्टीफन हांकिग, शरीर से अक्षम होते हुए भी ब्रह्याण्ड के रहस्य जानने में सफल हुए है।
जीवन में संघर्ष का योगदान
जीवन में कमजोर वहीं रह जाता है जिसने कभी कठिनाईयाँ न देखी हो। वह जीवन के सभी रंग नहीं देख पाता है। व्यक्ति अपनी सुख की दुनिया में रहने से अपनी सुप्त शक्तियों को जगा नहीं पाता है। जैसा कि हम जानते है कि तितली के कीड़े को यदि तितली बनने के उपक्रम में मदद करने पर वह मर जाता है। वह स्वयं से संघर्ष करने पर ही स्वस्थ तितली बनती है। संघर्ष के बिना जीवन में आनन्द नहीं है। जो संघर्ष नहीं करते है वे घर पर ही बैठे रहते है। आगे बढ़ने के लिए कठिन मार्ग चुनना पड़ता है। तभी तो चाणक्य चंद्रगुप्त मौर्य से कहता है कि किसी भी कार्य को करने के दो मार्ग होते है। सरल मार्ग मंजिल पर ले जाता है। लेकिन कठिन मार्ग धीरे पहुँचाता है लेकिन निश्चित पहुँचाता है। यह नए अनुभवों के साथ पहुँचाता है। जिस कार्य को करने में थोड़ा खतरा न हो, कोई चुनौती न हो, वह कार्य बड़ी सफलता नहीं दिला सकता है। संघर्ष से नई दृष्टि खुलती है, नए लोगों से मुलाकात होती है। अपनी लापरवाही या कमजोरी की पोल खुलती है। मन में उठती कायरता का ज्ञान होता है। स्वयं के आत्मविश्वास का नाप-तोल भी हो जाता है। स्वयं के व्यवहार व दूसरों के अपनत्व का पता चलता है।
मैं स्वयं अपने अनुभव से यह बात कह सकता हूँ कि मुझे बपचन में गरीबी, परिवार के झगड़े, पिता की डाट-फटकार व पिटाई, माता-पिता की सातवीं संतान होने से बहुत सी बातें सीखने को मिली, जिस कारण आगे बढ़ने का ज्ञान जन्मा। इसी से मैं मजबूत हुआ वह प्रेरित होता रहा तभी मैं आगे बढ़ पाया। मेरी बैचेनी, मेरी निराशा ने सदैव कुछ समय बाद मुझे आगे बढ़ने हेतु धक्का दिया। उन्हीं की बदोलत संघर्ष की प्रेरणा मिली व मार्ग खोजा। तभी तो स्वेट मार्डन ने लिखा है कि जो बैठे रहते है उनका भाग्य भी बैठे रहता है। जो प्रयत्न करते है उनका भाग्य भी साथ देता है। जिसने मरना सिख लिया है जीने का अधिकार उसी को। जो डर गया वो मर गया। हार से ही जीत का मार्ग प्रशस्त होता है। ऐसे में आलसी व्यक्ति पलायन करने की सोचता है। लेकिन इनसे बचा नहीं जा सकता। संघर्ष से बचना आत्महत्या है। स्वयं को कमजोर ही बनाए रखना है। कमजोरी किसी भी समस्या का समाधान नहीं है। कमजोरी किसी भी समस्या का नहीं। पीछे हटने में समाधान नहीं है।  ❤❤❤❤