Thursday, 5 June 2025

जीविका BRLPS में क्षेत्रीय समन्वयक एवं सामुदायिक समन्वयक के कार्य एवं दायित्व...

"जब एक विचार जमीनी हकीकत बनता है, तब बदलाव की असली शुरुआत होती है।

बिहार सरकार की एक ऐसी ही क्रांतिकारी पहल है बिहार ग्रामीण जीविकोपार्जन प्रोत्साहन समिति (BRLPS), जिसे आम लोग 'जीविका' के नाम से जानते हैं। यह केवल एक सरकारी योजना नहीं, बल्कि गरीबी उन्मूलन और महिला सशक्तिकरण का सामाजिक आंदोलन है।

इस आंदोलन की असली ताकत वे लोग हैं, जो रोज़ाना गाँव की धूल में अपने पाँव गंदे करते हैं – सामुदायिक समन्वयक (CC) और क्षेत्रीय समन्वयक (AC)। वे किसी फिल्मी हीरो की तरह चमकते नहीं, परन्तु बदलाव के असली नायक हैं।

भाग 1: सामुदायिक समन्वयक (CC) – बदलाव की पहली किरण

कल्पना कीजिए: एक युवा महिला या पुरुष, जो दो-तीन पंचायतों में सुबह से शाम तक घूमता है, SHG की बैठकों में भाग लेता है, दीदियों को बचत की महत्ता समझाता है, और बैंक से ऋण दिलवाने के लिए दिनभर दौड़ता है। यही है Community Coordinator, जिसे हम प्यार से CC कहते हैं।

1. विश्वास और नेतृत्व का सूत्रधार

CC का सबसे पहला काम होता है विश्वास पैदा करना। गाँव की महिलाएँ, जो पहले कभी घर से बाहर नहीं निकलीं, आज SHG की बैठकों में बोलती हैं, निर्णय लेती हैं और छोटी-छोटी बचत से बड़ा सपना देखती हैं – और यह सब CC की वजह से संभव हो पाता है।

2. समूह निर्माण और पंचसूत्र

SHG बनाना केवल कागजों का काम नहीं है। CC को यह देखना होता है कि समूह की दीदियाँ हर हफ्ते मिलें, बचत करें, आपसी ऋण लें-दें, समय पर चुकाएं और अपने रिकॉर्ड सही रखें। यही पंचसूत्र हैं – जीविका का आधार। CC इन सिद्धांतों को दीदियों के जीवन का हिस्सा बनाता है।

3. ग्राम संगठन (VO) की नींव

जब गाँव में कई SHG तैयार हो जाते हैं, तो उन्हें एक मंच पर लाकर ग्राम संगठन (VO) बनाया जाता है। इसमें CC की भूमिका गाइड और मार्गदर्शक की होती है, जो SHG को VO की शक्ति समझाता है और नेतृत्व विकसित करता है।

4. बैंकिंग और वित्तीय शिक्षा

SHG का खाता खुलवाना, बैंक से लोन दिलवाना और CIF फंड को सही तरीके से उपयोग करना, CC के ही जिम्मे होता है। लेकिन इससे भी बढ़कर, वह दीदियों को बैंकिंग और वित्तीय साक्षरता सिखाता है – ताकि वे आत्मनिर्भर बन सकें।

5. आजीविका का समर्थन

CC केवल समूह बनाकर छोड़ नहीं देता। वह दीदियों की आर्थिक गतिविधियों में मदद करता है – जैसे बकरी पालन, सब्जी उत्पादन, सिलाई, पापड़ बनाना आदि। साथ ही, उन्हें कृषि सखी, पशु सखी जैसे समुदाय कैडर से जोड़कर तकनीकी मदद भी दिलवाता है।

6. सामाजिक परिवर्तन का वाहक

स्वास्थ्य, शिक्षा, पोषण, स्वच्छता, बाल विवाह, घरेलू हिंसा – ये सब CC की कार्यसूची में शामिल होते हैं। वह SHG बैठकों में इन मुद्दों पर चर्चा करवाता है, सरकारी योजनाओं की जानकारी देता है और जरूरत पड़ने पर सशक्त हस्तक्षेप भी करता है।

7. रिपोर्टिंग और MIS अपडेट

CC अपने पूरे क्षेत्र का रिकॉर्ड रखता है – SHG की मीटिंग, लोन स्टेटस, ट्रेनिंग, फंड यूज़ आदि। यह सब MIS में दर्ज कर वह ब्लॉक और जिले को रिपोर्ट करता है। इस डेटा के आधार पर नीति बनती है।

भाग 2: क्षेत्रीय समन्वयक (AC) – रणनीति और मार्गदर्शन का शिल्पकार

जहाँ CC मैदान में है, वहीं AC है उसका कप्तान। एक AC के पास 5–8 CC की टीम होती है और वह उन्हें प्रशिक्षण, मार्गदर्शन और निगरानी प्रदान करता है। यह जिम्मेदारी आसान नहीं होती।

1. फील्ड पर्यवेक्षण और मेंटरिंग

AC गाँव-गाँव जाकर यह देखता है कि CC द्वारा किए गए SHG और VO सही ढंग से काम कर रहे हैं या नहीं। वह CC के काम की गुणवत्ता परखता है, सुझाव देता है, और उनकी समस्याओं का समाधान करता है।

2. रणनीति और योजना निर्माण

AC, ब्लॉक कार्यालय से मिले लक्ष्य के आधार पर अपने क्लस्टर के लिए मासिक और वार्षिक योजना बनाता है। वह यह भी देखता है कि कहाँ पर काम धीमा चल रहा है और उसमें सुधार की क्या आवश्यकता है।

3. CLF की स्थापना और सशक्तिकरण

एक AC का सबसे बड़ा कार्य होता है Cluster Level Federation (CLF) बनाना – जो VOs का एक संघ होता है। AC इस संस्था को व्यवस्थागत, आर्थिक और प्रबंधकीय रूप से सक्षम बनाता है ताकि वह स्वयं निर्णय ले सके और विकास कर सके।

4. बैंक और विभागीय समन्वय

AC, बैंकों, कृषि, पशुपालन, स्वास्थ्य आदि विभागों के ब्लॉक-स्तरीय अधिकारियों से समन्वय करता है। वह यह सुनिश्चित करता है कि दीदियों को सरकारी योजनाओं और ऋण में कोई बाधा न आए।

5. डेटा विश्लेषण और रिपोर्टिंग

AC, अपने सभी CCs से मासिक रिपोर्ट लेकर उसे एकीकृत करता है, विश्लेषण करता है और मासिक प्रगति रिपोर्ट (MPR) बनाकर Block Project Manager (BPM) को देता है।

6. प्रेरक और नेतृत्वकर्ता

AC केवल पर्यवेक्षक नहीं होता, वह एक प्रेरणा स्रोत भी होता है। वह CCs को प्रेरित करता है, उन्हें सुधार की दिशा दिखाता है और टीम भावना को बढ़ावा देता है।


CC और AC: बदलाव के दो पहिए

जहाँ CC गहराई में काम करता है, वहीं AC विस्तार में।
जहाँ CC हर महिला से सीधा जुड़ता है, वहीं AC पूरे क्लस्टर को रणनीति से जोड़ता है।
ये दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। यदि CC नींव है, तो AC उसकी इमारत।


निष्कर्ष: मौन क्रांति के नायक

जीविका की सफलता की असली कहानी इन मौन क्रांतिकारियों की है – CC और AC।

CC वह दीया है, जो गाँव की अंधेरी गलियों में आशा की लौ जलाता है।
AC वह दिशा है, जो इन दीयों को एक उजाले में बदलने की रणनीति तय करता है।

उनकी मेहनत, समर्पण और निष्ठा ही जीविका को एक महिला सशक्तिकरण आंदोलन बनाती है – जो केवल आत्मनिर्भरता की बात नहीं करता, बल्कि सच्चे बदलाव की मिसाल भी पेश करता है।







Monday, 2 June 2025

जीविका (BRLPS) में प्रशिक्षण अधिकारी के कार्य एवं दायित्व...


बिहार के ग्रामीण जीवन में बदलाव की एक प्रमुख प्रेरणा है जीविका — बिहार ग्रामीण जीविकोपार्जन प्रोत्साहन समिति। यह कार्यक्रम न सिर्फ गरीब परिवारों के लिए आजीविका के अवसर प्रदान करता है, बल्कि महिलाओं और समुदायों को सामाजिक और आर्थिक रूप से सशक्त बनाकर उनके जीवन में स्थायी बदलाव लाने की कोशिश करता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस व्यापक परिवर्तन के पीछे कौन उसकी कमान संभाले हुए हैं? यही हैं जीविका के प्रशिक्षण अधिकारी — जो जमीनी स्तर पर ज्ञान, कौशल और सही दृष्टिकोण के माध्यम से ग्रामीणों को सक्षम बनाते हैं।

चलिए, विस्तार से जानते हैं कि क्यों प्रशिक्षण अधिकारी की भूमिका है जीविका की सफलता की नींव, और वे कैसे संपन्न करते हैं अपने बहुआयामी उत्तरदायित्व।

1. प्रशिक्षण आवश्यकताओं का सही आकलन: ज़मीन से जुड़ी समझ

प्रशिक्षण अधिकारी की सबसे पहली जिम्मेदारी हैं ग्रामीण समुदायों और जीविका से जुड़े सभी हितधारकों की प्रशिक्षण आवश्यकताओं को गहराई से समझना। इसके लिए वे:

  • डेटा इकट्ठा करते हैं — सर्वेक्षण, समूह चर्चा, साक्षात्कार और रिपोर्ट विश्लेषण के जरिए पता लगाते हैं कि किन क्षेत्रों में कौशल या जानकारी की कमी है।

  • समस्याओं का विश्लेषण करते हैं — कौन से ज्ञान या व्यवहार कार्यक्रम की सफलता में बाधक बने हुए हैं?

  • प्राथमिकताएँ तय करते हैं — उपलब्ध संसाधनों के अनुसार कौन से प्रशिक्षण ज़रूरी और तत्काल हैं।

यह काम एक मिसाल है कि बिना जमीन पर ठीक से समझे कोई योजना सफल नहीं हो सकती। इसलिए प्रशिक्षण अधिकारी से जुड़ी यह क्षमता बहुत जरूरी है।

2. प्रशिक्षण सामग्री का विकास और उसे स्थानीय भाषा में अनुकूलित करना

आवश्यकता पहचानने के बाद आता है उसका प्रभावी समाधान बनाने का कार्य:

  • वे प्रशिक्षण मॉड्यूल, मैनुअल, हैंडआउट्स और वीडियो आदि विकसित करते हैं, जो विषय वस्तु में व्यापक और सरल हों।

  • ये सामग्री केवल टेक्निकल न होकर ग्रामीण संस्कृति, भाषा और संदर्भ के अनुरूप बनती है। ताकि हर प्रतिभागी उसे आसानी से समझ सके।

  • नवीनता और शिक्षा के नए तरीकों को शामिल करते हैं — जैसे केस स्टडी, रोल-प्ले, समूह चर्चा, मोबाइल ऐप्स और डिजिटल शिक्षण उपकरण — ताकि प्रशिक्षण में रुचि बनी रहे और सीखना प्रभावशाली हो।

इस प्रकार वे प्रशिक्षण को रोचक, सजीव और ग्रामीण जीवन से मेल खाने वाला बनाते हैं।

3. प्रशिक्षण कार्यक्रम की योजना, आयोजन और संचालन

प्रशिक्षण अधिकारी सिर्फ तैयारी नहीं करते, बल्कि खुद प्रशिक्षण का आयोजन भी करते हैं:

  • व्यापक योजना बनाते हैं — प्रशिक्षण कब, कहाँ होगा, कौन प्रशिक्षक होगा, लॉजिस्टिक्स कैसे संभाली जाएगी, ये सभी सुनिश्चित करते हैं।

  • स्वयं प्रशिक्षण सत्रों का नेतृत्व करते हैं, जहां वे प्रतिभागियों को तथ्यों और तकनीकों से लैस करते हैं, सवाल-जवाब और सक्रिय बातचीत के माध्यम से सीखने की प्रक्रिया को सजीव बनाते हैं।

  • प्रशिक्षकों का प्रशिक्षण (ToT) भी संचालित करते हैं, जिससे कि गांव-गांव, ब्लॉक-जनपद तक प्रशिक्षित व्यक्ति स्थानीय स्तर पर प्रशिक्षण दे सकें।

  • सीखने का प्रोत्साहित करने वाला वातावरण बनाते हैं, जहां सभी जबर्दस्त उत्साह और सहभागिता के साथ अपने अनुभव साझा करते हैं।

यह वह मंच होता है जहां ग्रामीण लोगों की सोच बदलती है और उन्हें बदलाव की दिशा में कदम उठाने की हिम्मत मिलती है।

4. प्रशिक्षण की निगरानी, मूल्यांकन और सुधार

प्रशिक्षण संपन्न होने के बाद काम खत्म नहीं होता, बल्कि असली चुनौती होती है उसका असर देखना।

  • वे नियमित रूप से प्रशिक्षण की प्रगति की निगरानी करते हैं — क्या कार्यक्रम समय पर हो रहे हैं, लक्ष्यों को पूरा कर रहे हैं?

  • प्रशिक्षा का प्रभाव मापते हैं — प्रतिभागियों की क्षमता, ज्ञान और व्यवहार में कैसे बदलाव आए? इससे पता चलता है कि प्रशिक्षण उद्देश्य तक पहुंच रहा है या नही।

  • फीडबैक एकत्रित कर भविष्य के कार्यक्रमों को बेहतर बनाने के सुझाव देते हैं।

  • सभी गतिविधियों की रिपोर्टिंग करते हैं ताकि अधिकारी और प्रबंधन निर्णय ले सकें।

इस प्रक्रिया से प्रशिक्षण अधिकारी ट्रेनिंग को निरंतर बेहतर बनाते हैं और कार्यक्रम की गुणवत्ता बनाए रखते हैं।

5. सामुदायिक क्षमता निर्माण और ज्ञान प्रबंधन

प्रशिक्षण अधिकारी की भूमिका सिर्फ तकनीकी शिक्षा तक सीमित नहीं:

  • वे स्वयं सहायता समूहों (SHGs), ग्राम संगठनों (VOs), और संकुल स्तरीय संघों (CLFs) की नेतृत्व क्षमता, प्रबंधन कौशल और वित्तीय साक्षरता विकसित करने में भी मदद करते हैं।

  • सर्वोत्तम प्रथाओं और अनुभवों को दस्तावेजित कर उसे साझा करते हैं, जिससे सीखने की प्रक्रिया पूरे कार्यक्रम में फैलती है।

  • वे अन्य प्रशिक्षण संस्थानों, विशेषज्ञों और विकास संगठनों से जुड़ते हैं ताकि नवीनतम शिक्षण विधि और संसाधन उपयोग में लाएं।

  • डिजिटल युग में, वे e-learning, मोबाइल ऐप्स, वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग जैसे प्रौद्योगिकी के उपकरणों का उपयोग कर प्रशिक्षण को और अधिक पहुंच योग्य बनाते हैं।

यह काम ग्रामीण स्तरीय संगठन को आत्मनिर्भर और सक्षम बनाता है।

6. प्रशासनिक और समन्वयक कार्य: सफलता के पीछे की नींव

प्रशिक्षण अधिकारी संगठन के प्रशासनिक दायित्वों का भी ध्यान रखते हैं:

  • प्रशिक्षण से जुड़े बजट का प्रबंधन करते हैं, ताकि धन का सही और प्रभावी उपयोग हो।

  • सरकारी विभागों, अन्य योजनाओं और NGOs के साथ समन्वय स्थापित कर संसाधनों का बेहतर उपयोग सुनिश्चित करते हैं।

  • सभी प्रशिक्षण से संबंधित दस्तावेजों और रिपोर्टों का संग्रहण और सुरक्षित रखरखाव करते हैं।

  • यह समन्वय प्रशिक्षण की सफलता और प्रभाव को बढ़ाता है, बाधाओं को दूर करता है।

7. आवश्यक कौशल और गुण: प्रशिक्षण अधिकारी की सफलता के सूत्र

प्रशिक्षण अधिकारी के लिए निम्नलिखित गुण और कौशल अत्यंत महत्वपूर्ण होते हैं:

  • प्रभावी संचार कौशल — स्पष्ट और समझने योग्य भाषा में जानकारी देना और प्राप्त करना।

  • प्रस्तुति और सुविधा कौशल — समूह चर्चा, गतिविधि संचालन में दक्षता।

  • विषय वस्तु की गहरी समझ — आजीविका, वित्तीय समावेशन, सामाजिक विकास जैसे पक्षों का ज्ञान।

  • विश्लेषणात्मक क्षमता — प्रशिक्षण आवश्यकताओं और परिणामों का आंकड़ा विश्लेषण।

  • व्यवस्थित सोच और संगठन कौशल — प्रशिक्षण सत्रों का प्रबंधन।

  • समस्या समाधान क्षमता — प्रशिक्षण के दौरान आने वाली बाधाओं का निराकरण।

  • लचीलापन और अनुकूलनशीलता — विभिन्न सामाजिक-सांस्कृतिक परिवेश के अनुसार कार्य करना।

  • नवाचार — नए प्रयोग और तरीकों को अपनाना।

  • टीम वर्क और नेतृत्व कौशल — टीम के साथ मेलजोल और सामूहिक कार्य।

  • प्रेरणा और उत्साह — सदैव सशक्त और प्रभावित करने वाला रवैया।

निष्कर्ष: 

जीविका के विशाल और प्रभावी आंदोलन में प्रशिक्षण अधिकारी वह कड़ी हैं जो ज्ञान और कौशल के माध्यम से समूचे ग्रामीण समुदाय को बदलाव के लिए तैयार करते हैं। वे न केवल प्रशिक्षण के आयोजक हैं, बल्कि प्रेरक, मार्गदर्शक, संरक्षक और सुधारक भी हैं। उनकी मेहनत से स्वयं सहायता समूहों के सदस्य, ग्राम संगठन और परियोजना कर्मचारी सशक्त होते हैं, जो उनके अपने जीवन और समुदाय की दिशा बदलने में समर्थ होते हैं।

प्रशिक्षण अधिकारी के बिना जीविका की यह सामाजिक-आर्थिक क्रांति संभव नहीं। यह जानना गर्व की बात है कि बिहार के ग्रामीणों के विकास की कहानी उनके समर्पण और नेतृत्व की जादूगरी से लिखी जा रही है।

अंततः, प्रशिक्षण अधिकारी ही जीविका के उन नायक हैं जो पर्दे के पीछे से बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों में उज्ज्वल भविष्य का निर्माण कर रहे हैं।

क्या आप चाहेंगे कि मैं जीविका के प्रशिक्षण अधिकारी के काम के अनुभव, चुनौतियों, और सफलता की कहानियों पर भी विस्तार से लिखूं?